राज एक्सप्रेस। हरियाणा के कुरूक्षेत्र इलाके के संत निश्चल सिंह विद्यालय में बच्चों ने एड्स के प्रति जागरूकता का प्रतीक रेड रिबन बनाया। यह मानव श्रंखला विश्व एड्स दिवस, 1 दिसंबर 2019 को बनाई गई। इसे बनाने के लिए विद्यालय के पांचवी से बारह्वीं कक्षा के 1300 बच्चों ने भाग लिया। साथ ही एड्स के बारे में बच्चों को जागरूक करने के लिए संगोष्ठी का आयोजन भी हुआ।
आज देश-विदेश के कई संस्थानों में एड्स के बारे में लोगों को जागरूक करने के लिए विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन हो रहा है। साल 1988 से 1 दिसंबर को शुरू हुए विश्व एड्स दिवस को आज 31 साल हो गए हैं।
यह दुनिया भर के लोगों के लिए एचआईवी के खिलाफ लड़ाई में एकजुट होने, एचआईवी से पीड़ित लोगों के लिए समर्थन दिखाने और एड्स के कारण मरने वाले लोगों को याद करने का अवसर है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यू.एच.ओ.) के मुताबिक, साल 2018 के अंत तक दुनिया भर में 37.9 करोड़ लोग एड्स की बीमारी से प्रभावित थे। वहीं अब तक यह बीमारी 3 करोड़ 20 लाख से ज़्यादा लोगों की जान ले चुकी है।
साल 2018 में विकासशील देशों के एड्स से प्रभावित 62 प्रतिशत वयस्कों और 54 प्रतिशत बच्चों को एंटीरेट्रोवाइरल थैरेपी (ए.आर.टी) का लाभ मिला तो वहीं 82 प्रतिशत गर्भवती महिलाओं को भी इस उपचार से मदद मिली।
एचआईवी वायरस (ह्यूमन इम्यूनोडिफ़िशिएंसी वायरस) मानव शरीर की रोग प्रतिरोधी क्षमता को प्रभावित कर उसे कमज़ोर कर देता है। इसकी सबसे आखिरी स्टेज इम्यूनोडिफ़िशिएंसी सिंड्रोम (एड्स) है, जो कि इलाज नहीं होने पर 2 से 15 साल में हो सकती है।
इस वायरस (एचआईवी) की खोज फ्रेंकोइस बैरे-सिनौसी और ल्यूक मॉन्टैग्नियर शोधकर्ताओं द्वारा की गई थी। जनवरी 1983 में उन्हें एचआईवी के बारे में पता चला था।
एचआईवी संक्रमण का कोई पूर्ण इलाज अब तक नहीं है। हालांकि, प्रभावी एंटीरेट्रोवायरल ड्रग्स (ए.आर.वी) इस वायरस को नियंत्रित कर सकते हैं। साथ ही आगे अन्य लोगों तक इसके पहुंचने को रोकने में मदद करते हैं।
एंटीरेट्रोवायरल थेरेपी रोज़ाना लेने वाली दवाएं हैं जो एचआईवी को शरीर में बढ़ने से रोकती हैं। ये रक्त में वायरस की मात्रा को काफी हद तक कम कर सकती हैं।
साल 2000 से 2018 के मध्य, एचआईवी के संक्रमण फैलने में 37 प्रतिशत की कमी आई है। साथ ही इसके होने से मरने वालों की संख्या भी 45 प्रतिशत घटी है। इस बीच 1 करोड़ 36 लाख लोगों को ए.आर.टी की मदद से बचाया गया है।
डब्ल्यू.एच.ओ. के अनुसार, किशोर युवतियां एचआईवी के संक्रमण से अधिक प्रभावित होती हैं। हर घंटे लगभग 30 लड़कियों को यह वायरस अपनी चपेट में ले लेता है। वहीं हर रोज़ लगभग 400 बच्चे एचआईवी संक्रमण के साथ पैदा होते हैं।
राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन की साल 2017 में प्रकाशित हुई रिपोर्ट के अनुसार, भारत में एचआईवी एड्स संक्रमण के फैलने में 46 प्रतिशत की कमी आई है। वहीं साल 2010 के बाद से इससे मरने वालों की संख्या 22 प्रतिशत घटी है।
यह रिपोर्ट बताती है कि भारत में 21.4 लाख लोग एचआईवी एड्स से ग्रसित हैं। भारत में सबसे अधिक ड्रग्स लेने वाले लोग एचआईवी का शिकार होते हैं। वहीं, ट्रांसजेंडर्स, सेक्स वर्कर्स और समलैंगिक लोगों में भी इसका प्रतिशत अधिक पाया गया है।
साल 2000 से 2015 के बीच एचआईवी से संक्रमित होने वाले लोगों की संख्या में 66 प्रतिशत की कमी आई है। साल 2024 तक एचआईवी एड्स के संक्रमण को 80 प्रतिशत तक कम करना भारत का लक्ष्य है। साथ ही 95 प्रतिशत संक्रमित लोगों को उनकी बीमारी की स्टेज, उनके इलाज और उससे होने वाली राहत के बारे में पता हो यह लक्ष्य भी भारत सरकार पाने की कोशिश कर रही है।
नवंबर 2019 में एचआईवी पॉजिटिव डोनर्स के लिए न्यूजीलैंड में दुनिया का पहला स्पर्म बैंक शुरू हुआ। इसका उद्देश्य बीमारी के स्टिग्मा से लड़ना था।
तीन एचआईवी पॉजिटिव पुरुषों ने पहले से ही दान करने के लिए साइन अप किया था। इन्हें एचआईवी एड्स हुआ था और इलाज के बाद ये सामान्य लोगों की तरह जीवन जी रहे हैं। इनके रक्त में एचआईवी वायरस का स्तर इतना कम है कि यौन संबंधों या प्रसव के माध्यम से ये संक्रमण दूसरों तक नहीं जाएगा।
स्पर्म बैंक ने कहा कि, यह लोगों को बताएगा कि सभी डोनर्स एचआईवी पॉजिटिव हैं लेकिन सफल उपचार के बाद उनसे दूसरों तक संक्रमण नहीं होगा। यह बैंक फर्टिलिटी क्लिनिक की तरह काम नहीं करता है। स्पर्म पॉजिटिव संस्था की मदद से यह लोगों को स्थानीय फर्टिलिटी क्लीनिक्स के संपर्क में रखेगा, यदि वे मैच के लिए सहमत होते हैं।
हाल के वर्षों में एचआईवी के इलाज में कई प्रगति हुई हैं। जिसमें मार्च 2019 में हुआ एक एचआईवी-पॉजिटिव रोगी द्वारा पहला किडनी प्रत्यारोपण शामिल है।
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