क्या है 'SWIFT'? रूस पर 'SWIFT' से बाहर होने का क्या होगा असर

रूस के लिए SWIFT बहुत अहम है, लेकिन इन दिनों रूस और यूक्रेन के बीच चल रही जंग के चलते अमेरिका ने रूस को SWIFT से बाहर कर दिया है। जानिए, क्या है SWIFT और रूस पर SWIFT से बाहर होने का असर।
क्या है 'SWIFT'? रूस पर 'SWIFT' से बाहर होने का क्या होगा असर
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राज एक्सप्रेस। रूस के लिए SWIFT बहुत अहम है, लेकिन इन दिनों रूस और यूक्रेन के बीच चल रही जंग के चलते अमेरिका ने रूस को SWIFT से बाहर कर दिया है। अमेरिका ने रूस को SWIFT से क्यों बाहर किया है और इससे रूस पर क्या असर पड़ने वाला है। इन सभी सवालों के उत्तर जानने के लिए आपको पहले यह जानना बहुत जरूरी होगा कि, आखिर SWIFT है क्या? तो चलिए जानें, क्या है SWIFT और रूस पर SWIFT से बहार होने का असर।

क्या है SWIFT ?

दरअसल, पिछले दिनों रूस द्वारा यूक्रेन के खिलाफ उठाए गए क़दमों के चलते रूस पर कई तरह के बैन लग चुके हैं, जो अलग-अलग देशों द्वारा लगाए गए है। इन्हीं में अमेरिका द्वारा रूस को SWIFT से बाहर कर दिया है। बता दें, स्विफ्ट का मतलब 'Society for Worldwide Interbank Financial Telecommunication' है। इसे शार्ट में SWIFT कहा जाता है। यह दुनिया का सबसे बड़ा इंटरनेशनल पेमेंट गेटवे स्विफ्ट SWIFT है। यह रूस के लिए SWIFT काफी अहम है। इसकी मुख्य वजह यह है कि, रूस दुनिया में एनर्जी का बहुत बड़ा सप्लायर है। वह कई देशों को अरबों डॉलर के ऑयल एंड गैस का एक्सपोट (Export) करता है। इसका भुगतान (पेमेंट) लेने के लिए वह SWIFT प्लेटफार्म का इस्तेमाल करता है।

क्यों उठाया गया यह कदम ?

बताते चलें, रूस हर तरह से मजबूत देश है और अमेरिका और यूरोपीय देशों ने रूस को अर्थिक कमजोर करने के लिए SWIFT से बाहर करने का कदम उठाया है। रूस के कई बैंकों को स्विफ्ट SWIFT के इस्तेमाल करने से रोक दिया गया है। इस फैसले को अमेरिका और यूरोपीय देशों के सबसे सख्त कदम के रूप में देखा जा रहा है। इस फैसले ने रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को परेशान कर दिया है। इसके अलावा SWIFT से बाहर होने से रूस पर काफी असर भी पड़ेगा। क्योंकि, दुनिया का सबसे बड़ा इंटरनेशनल पेमेंट गेटवे स्विफ्ट SWIFT ही है और अब रूस के बैंक अब SWIFT का इस्तेमाल नहीं कर सकेंगे। अमेरिका और यूरोप ने रूस को इंटरनेशनल फाइनेंशियल सिस्टम से अलग-थलग करने के लिए यह कदम उठाया है। SWIFT से बाहर करे जाने के फैसले से रूस के राष्ट्रपति पुतिन बहुत गुस्से में नजर आए थे। ऐसा माना जा रहा है कि, यही कारण कि, पुतिन ने परमाणु हथियार के इस्तेमाल की चेतावनी तक दे डाली थी।

रूस पर SWIFT से बाहर होने का प्रभाव :

रूस के SWIFT से बाहर होने पर रूस की आर्थिक हालत कुछ कमजोर हो सकती है क्योंकि, रूस दुनिया में एनर्जी का बड़ा सप्लायर है और ऐसे में रूस कई देशों को अरबों डॉलर के ऑयल एंड गैस का एक्सपोर्ट करता है। जिसका पेमेंट लेने के लिए वह SWIFT प्लेटफार्म का ही इस्तेमाल करता था। क्योंकि यह पेमेंट का बहुत आसान तरीका है। सबसे बड़ी बात यह है कि, इस प्लेटफॉर्म को बहुत ज्यादा सुरक्षित माना जाता है। इससे अलग होने का मतलब फाइनेंशियल सिस्टम से अलग होना है। स्विफ्ट से बाहर करने का मतलब फाइनेंशियल वर्ल्ड में उसी तरह से है, जैसे किसी देश को Social Media या Internet से दूर कर देना है।

अभी कुछ रूस बैंकों पर लगी पाबंदी :

जानकारी के अनुसार, अभी रूस के कुछ बैंकों पर ही पाबंदी लगाई गई है। जबकि, कुछ बैंक SWIFT इस्तेमाल कर सकेंगे। अमेरिका और यूरोप ने रूस के सभी वित्तीय क्षेत्र में ये पाबंदी नहीं लगाई है। उनका मानना है कि, अगर रूस अपनी मनमानी ऐसा ही करता रहा और यूक्रेन से अपनी सैनिक को वापस नहीं बुलाएगा तो हो सकता है ये पाबंदी रूस के सभी बैंकों पर लगा दी जाए।

रूस की इकोनॉमी पर पड़ेगा बड़ा असर :

बताते चलें, रूसी बैंकों को स्विफ्ट से अलग करने से रूस की इकोनॉमी पर बड़ा असर पड़ेगा। इससे रूस को दुनिया में पेमेंट लेने और देने के लिए दूसरे उपायों का इस्तेमाल करना होगा। इससे ट्रांजेक्शन पूरा होने में काफी समय लगेगा। इसका असर दूसरे देशों के साथ रूस के व्यापारिक संबंधों पर पड़ेगा। खासकर एनर्जी की सप्लाई के मामले में ज्यदा परेशानी पैदा होगी। यही वजह है कि, इस कदम का रूस की मुद्रा पर बड़ा असर पड़ा है। रूस के रूबल में 30 फीसदी गिरावट देखने को मिली है।

SWIFT कैसे काम करता है ?

SWIFT सिस्टम का इस्तेमाल दुनिया के 200 देश और 11,000 बैंक कर रहे हैं। यह ट्रांजेक्शन की डिटेल को पहले वेरिफाय करता है। इसके लिए वह फाइनेंशियल मैसेजिंग सर्विसेज का इस्तेमाल करता है। वेरिफाय होने के बाद ही यह ट्रांजेक्शन पूरा करता है। बता दें, SWIFT का ऑफिस बेल्जियम में स्थित है। इसकी मॉनिटरिंग 11 देश के सेंट्रल बैंक करते हैं। इनमें कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, नीदरलैंड्स, स्वीडन, स्विट्जरलैंज, इंग्लैंड, बेल्जियम और अमेरिका शामिल हैं।

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