International Day of Action for Rivers : क्यों मनाया जाता है यह दिवस? क्या है इसका इतिहास?
राज एक्सप्रेस। नदियां हमारे जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा है। नदियों के बिना जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। खासकर भारत में सदियों से नदियों को पूजने की परम्परा रही है। हालांकि यह भी सच है कि बीते कुछ दशकों में मानव विकास के चलते दुनियाभर में नदियों पर गंभीर संकट खड़ा हो गया है। ऐसे में नदियों के अस्तित्व को बचाने और लोगों को इस बारे म जागरूक करने के लिए हर साल 14 मार्च को पूरी दुनिया में International Day of Action for Rivers यानि नदियों के लिए कार्रवाई का अंतर्राष्ट्रीय दिवस मनाया जाता है।
कैसे हुई शुरुआत?
14 मार्च 1997 को कूर्टिबा ब्राजील में बांधों से प्रभावित हुए लोगों की एक अंतर्राष्ट्रीय बैठक हुई। इस बैठक का उद्देश्य विनाशकारी जल विकास परियोजनाओं के खिलाफ एकजुट होकर आवाज उठाना और नदियों का संरक्षण करना था। बैठक में शामिल 20 देशों के प्रतिनिधियों ने इस दिन नदियों के लिए कार्रवाई करने का अंतर्राष्ट्रीय दिवस मनाने का फैसला लिया। आज 100 से भी अधिक देश इससे जुड़ चुके हैं।
नदियां क्यों महत्वपूर्ण?
दरअसल मानव के साथ-साथ जानवरों के लिए भी नदियां अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं। यह साफ और ताजे पानी का महत्वपूर्ण स्त्रोत है। पशु-पक्षी भी नदियों से ही पानी पीते हैं। इसके अलावा नदियां जैव विविधता को बनाए रखने में मदद करती हैं। इसके अलावा बड़ी संख्या में लोग अपनी आजीविका के लिए नदियों पर निर्भर हैं। कृषि कार्य, मछली पालन से लेकर जलमार्ग सहित कई जगहों पर नदियां एक महत्वपूर्ण किरदार अदा करती हैं।
नदियों के लिए खतरा बन रहे बांध :
एक रिपोर्ट के अनुसार दुनियाभर में मौजूद 91 ऐसी नदियां जिनकी लम्बाई 1000 किलोमीटर से अधिक है, उनमें से महज 21 नदियां ही अपने उद्गम स्थल से समुद्र तक पहुंच पाती हैं। 70 नदियां बीच में ही दम तोड़ देती हैं। दुनियाभर के विशेषज्ञ इसके लिए नदियों पर बने बांधों को जिम्मेदार मानते हैं। बांध ना केवल नदियों का मार्ग रोक रहे हैं बल्कि उनके पारिस्थितिकी तंत्र पर भी नकारात्मक प्रभाव डाल रहे हैं।
प्रदूषण सबसे बड़ी समस्या :
नदियों के लिए मनुष्यों द्वारा किया जाने वाला प्रदुषण सबसे बड़ा खतरा है। एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया की 50 प्रतिशत से अधिक नदियों पर मानव प्रदूषण का दुष्प्रभाव पड़ रहा है। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार मनुष्यों द्वारा 80 फीसदी से अधिक जल बिना किसी निपटन के नदियों या समुद्र में बहा दिया जाता है। इससे कई नदियों के अस्तित्व पर संकट आ गया है।
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