लॉकडाउन से सुधरी वसुंधरा की सेहत

कोरोना के खिलाफ भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश में 21 दिनों के लॉकडाउन की घोषणा कर लोगों से घरों में रहकर लड़ाई लड़ने की अपील की है। इस निर्णय से देशवासियों को दो मामलों में राहत मिली है।
लॉकडाउन से सुधरी वसुंधरा की सेहत
लॉकडाउन से सुधरी वसुंधरा की सेहतNeha Shrivastava - RE
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राज एक्सप्रेस। एक नए अध्ययन में पता चला है कि हमारे ग्रह पृथ्वी की सुरक्षा की चादर कही जाने वाली ओज़ोन परत की सेहत में तेजी से सुधार हो रहा है। स्टडी में संकेत मिले हैं कि ओज़ोन लेयर में लगातार और तेजी से परिवर्तन हो रहा है और उसमें इतनी शक्ति है कि वो पूर्ण रूप से खुद को ठीक कर सके।

CIRES की रिसर्च :

पर्यावरण विज्ञान में अनुसंधान के लिए सहकारी संस्थान CIRES (कोऑपरेटिव इंस्टीट्यूट फॉर रिसर्च इन एनवायर्नमेंटल साइंस) की अतिथि विद्वान अंतरा बनर्जी ने यूनिवर्सिटी ऑफ कोलोराडो बोल्डर में इस बात की जानकारी दी। उन्होंने कहा “हमें पृथ्वी के दक्षिणी गोलार्द्ध पर पर्यावर्णीय बदलाव के संकेत मिले हैं। ये बदलाव खास तौर पर वायु परिसंचरण प्रणाली में देखे गए हैं। यह बदलाव मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल के कारण ओज़ोन परत छिद्र के सिकुड़ने की वजह से निर्मित हुए हैं।”

मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल क्या है?

मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल अंतर राष्ट्रीय स्तर की एक संधि है। इस संधि में ओज़ोन की परत को कमजोर करने वाले तत्वों का उत्सर्जन रोकने के बारे में धरती के राष्ट्रों ने सहमति जताई है। इसे ओज़ोन परत के संरक्षण के लिए वियना सम्मलेन में प्रोटोकॉल के तौर पर पारित किया गया था। इस संधि पर 16 सितंबर 1987 को हस्ताक्षर हुए जबकि यह 1 जनवरी 1989 में प्रभावी तौर पर लागू हुई। इसमें अब तक सात संशोधन हो चुके हैं। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि इस संधि का पूर्णतः पालन करने पर साल 2050 तक ओज़ोन परत के छिद्र को भरने में सफलता मिल सकती है।

लॉकडाउन से मदद :

कोविड 19 (COVID 19) यानी कोरोना वायरस डिसीज़ 2019 के संक्रमण से निपटने दुनिया के तमाम देशों में लागू तालाबंदी (LOCKDOWN) के कारण भी पर्यावरण में तेजी से सुधार के सार्थक संकेत मिले हैं। धरती की चारों दिशाओं में यातायात के सभी साधनों पर विराम लगने, कारखानों के बंद होने से विकसित, अर्धविकसित देशों की प्रदूषण उत्सर्जन मात्रा में बहुत कमी दर्ज की गई है।

भारत में सुधार :

कोरोना के खिलाफ भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश में 21 दिनों के लॉकडाउन की घोषणा कर लोगों से घरों में रहकर लड़ाई लड़ने की अपील की है। इस निर्णय से देशवासियों को दो मामलों में राहत मिली है।

पहली तो यह कि, तीन सप्ताह के लॉकडाउन में से एक सप्ताह का वक्त गुजर चुका है, इस दौरान दुनिया के संपन्न राष्ट्रों की तुलना में भारत में कोरोना संक्रमित मृत्यु दर काफी कम है। दूसरी यह कि सड़क, रेल, वायु यातायात रोके जाने और कारखानों में तालाबंदी से प्रदूषण का ग्राफ भी भारत में तेजी से नीचे आया है।

सांस लेना आसान :

जारी आंकड़ों के मुताबिक भारत के 90 शहरों में नाममात्र वायु प्रदूषण दर्ज हुआ, जिससे सांस लेना आसान हुआ है। इन शहरों में दिल्ली जैसा व्यस्ततम यातायात वाला शहर भी शामिल है। समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक सप्ताह के पिछले कुछ दिनों के दौरान यह सुकून भरी स्थिति निर्मित हुई।

पर्यावरणविद् का मानना है कि सरकार को पर्यावरण की कीमत पर विकास के मामले में इस संकेत को खतरे की घंटी के तौर पर लेना चाहिए। गौरतलब इस समय तकरीबन 130 करोड़ लोगों के साथ भारत में लॉकडाउन के जरिए कोरोना से लड़ाई लड़ी जा रही है। नाममात्र के ट्रैफिक और लोगों के घरों में रहने के कारण भी प्रदूषण की मात्रा में एकदम से कमी आई है।

SAFAR ने माना :

केंद्र द्वारा संचालित वायु एवं मौसम अनुमान और अनुसंधान संस्थान यानी सिस्टम ऑफ एयर क्वालिटी एंड वेदर फोरकास्टिंग एंड रिसर्च (SAFAR) के मुताबिक कोरोनो वायरस प्रकोप के कारण किए गए उपायों के प्रभाव से दिल्ली में PM2.5 (फाइन पार्टिकुलेट पॉल्यूटैंट) में 30 प्रतिशत और अहमदाबाद एवं पुणे में 15 फीसदी की गिरावट आई है।

नॉक्स में कमी :

श्वसन तंत्र को प्रभावित करने वाले नाइट्रोजन ऑक्साइड (NOx) के प्रदूषण के स्तर में भी कमी आई है। NOx प्रदूषण मुख्य रूप से बड़े मोटर वाहनों के यातायात के कारण होता है। पुणे में NOx प्रदूषण में 43 फीसदी, मुंबई में 38 फीसदी और अहमदाबाद में 50 फीसदी की कमी आई है।

आम तौर पर मार्च में प्रदूषण "मध्यम" श्रेणी (एयर क्वालिटी इंडेक्स रेंज: 100-200) में होता है, जबकि वर्तमान में यह "संतोषजनक" (AQI 50-100) या अच्छे (AQI 0-50) की श्रेणी में है।

गुफरान बेग, वैज्ञानिक, SAFAR

AQI को समझें :

AQI यानी एयर क्वालिटी इंडेक्स की बात करें तो 0-50 के बीच AQI अच्छा माना जाता है, 51 से 100 का मानक संतोषजनक, 101-200 मध्यम, 201-300 खराब, 301-400 बहुत खराब और 401-500 गंभीर की श्रेणी मानी जाती है।

बेग का मानना है "यह लॉकडाउन प्रभाव है। उद्योगों, निर्माण और यातायात को बंद करने जैसे स्थानीय कारकों ने वायु की गुणवत्ता को सुधारने में योगदान दिया है। बारिश भी मदद कर रही है, लेकिन स्थानीय उत्सर्जन पर अंकुश एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।

CPCB के आंकड़े :

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड CPCB यानी सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड के आंकड़ों के अनुसार, राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में हवा की गुणवत्ता वर्तमान में "अच्छी" श्रेणी में है। कानपुर जिसका प्रदूषण स्तर बहुत अधिक रहता है, फिलहाल यह "संतोषजनक" श्रेणी में है। इसके अलावा 92 अन्य शहरों में CPCB मॉनीटरिंग सेंटर्स में न्यूनतम वायु प्रदूषण दर्ज हुआ है। इसमें हवा की गुणवत्ता "अच्छी" से "संतोषजनक" की श्रेणी में पाई गई। इनमें से 39 शहरों में वायु गुणवत्ता अच्छी जबकि 51 शहरों में इसकी रिपोर्ट संतोषजनक श्रेणी में प्राप्त हुई है।

पर्यावरणविदों की राय :

पर्यावरण विद्वानों का कहना है कि कोरोना त्रासदी के कारण लागू लॉकडाउन में प्रदूषण घटने के संकेत सरकार के लिए प्रदूषण कम करने की चेतावनी और उपाय की सलाह जैसे हैं। हालांकि उनका मानना है कि अर्थव्यवस्था को इस हद तक धीमा करके पर्यावरण संतुलन करना आदर्श तरीका नहीं है, लेकिन इससे यह तो साबित हो जाता है कि प्रौद्योगिकी और ट्रैफिक में कम प्रदूषण उत्सर्जन से पर्यावरण को संतुलित रखा जा सकता है।

कोरोना वायरस महामारी एक तरह से मनुष्य जाति को नींद से झकझोरने की तरह है। संकेत हैं कि अब हमें न केवल स्वास्थ्यगत व्याधियों के लिए तैयार रहना होगा बल्कि हमारी प्यारी वसुंधरा को खोखला करने के बजाए उसके संवर्धन के लिए भी सतत और कारगर प्रयास करना होंगे।

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