Uttarakhand Flood: जानिये हिमनद झीलों के बदल रहे मिजाज से भारत को कितना खतरा

आपदा पर आधारित साल 2011 के एक अध्ययन के मुताबिक पिछले चार दशकों में नेपाल 24 दफा इन हिमनद झीलों की वजह से बाढ़ के कहर का मूक गवाह बना है।
1-  नेपाल की पोंकर झील (Ponkar Lake), 2- थोरथोर्मी झील (Thorthormi Lake), भूटान. - File - Courtesy: - ICIMOD & NCHM.
1- नेपाल की पोंकर झील (Ponkar Lake), 2- थोरथोर्मी झील (Thorthormi Lake), भूटान. - File - Courtesy: - ICIMOD & NCHM.Syed Dabeer Hussain - RE
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हाइलाइट्स :

  • ग्लेशियल लेक का संकट

  • हिमालय से बाढ़ का खतरा?

  • बढ़-घट रहीं हिमनद झीलों पर शोध

राज एक्सप्रेस। उत्तराखंड के चमौली में घटित प्राकृतिक आपदा ने हिमालय पर्वत-माला के नैसर्गिक स्वभाव से जुड़े तमाम अध्ययनों की ओर एक बार फिर ध्यान खींचा है।

हमने आपसे इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (IPCC) यानी जलवायु परिवर्तन से संबंधित अंतर-सरकारी पैनल को क्यों कहना पड़ा कि “हिमालय क्षेत्र डेटा के मामले में 'ब्लैक होल' बन गया है? विषय पर जानकारी साझा की थी। विस्तार से पढ़ने शीर्षक कैसे 'ब्लैक होल' बनता जा रहा हिमालयन डेटा पर क्लिक/स्पर्श करें -

चीन की रिवर डिप्लोमेसी से पैदा जलवायु/राजनीतिक/भौगोलिक संकट पर गौर करने के पहले हमें नेपाल-भारत के लिए मुहाने पर खड़ी ग्लेशियल झीलों की बढ़ती/घटती संख्या और उनके खतरों पर गौर करना होगा।

हिम शिखरों, बर्फीली घाटियों संबंधी आपदाओं के कारकों पर अनुसंधानकर्ता चीन, नेपाल और भारत को पहले से चेताते आए हैं। संभावित खतरों के आधार पर हिमनद झीलों (glacial lakes) के वर्गीकरण के बारे में सविस्तार जानिये @rajexpress पर...

नेपाल की आपदाएं -

नेपाल में आपदा पर आधारित साल 2011 के एक अध्ययन के मुताबिक पिछले चार दशकों में नेपाल 24 दफा इन हिमनद झीलों की वजह से बाढ़ के कहर का मूक गवाह बना है।

पिघलते ग्लेशियर खतरे की घंटी -

ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण हिमालय के ग्लेशियर के पिघलने की रफ्तार से अनुमान लगाया गया है कि हिमालय क्षेत्र के तापमान में वर्ष 2100 तक 1.5 डिग्री सेंटीग्रेड तक वृद्धि हो सकती है। स्टडी कहती है कि; ग्लेशियर पिघलने से झीलों का दायरा भी विस्तृत होता है।

ग्लेशियल झीलों का सबसे बड़ा खतरा यह है कि इनसे निचले मैदानी इलाकों में भयानक बाढ़ का अक्सर खतरा मंडराता रहता है।

नासा की रिपोर्ट -

दुनिया भर में ग्लेशियल झीलों से होने वाले खतरों की थाह लेने के लिए साल 2020 में किए गए नासा के शोध में चौंकाने वाली बात का पता चला। शोध के मुताबिक दुनिया भर में वर्ष 1990 से 2018 के दौरान ग्लेशियल झीलों की संख्या में 50 प्रतिशत तक की वृद्धि हुई।

गंगा में बढ़ता दायरा -

गंगा नदी से संबद्ध तीन नदियों के बेसिन में ग्लेशियल झीलों का आकार वर्ष 2000 से 2015 के बीच के पांच सालों के कालखंड में 179 वर्ग किलोमीटर से बढ़कर 195 वर्ग किलोमीटर तक विस्तृत हुआ है।

खतरनाक झीलों का वर्गीकरण -

बेहद खतरनाक मानी गईं 47 झीलों को उनके खतरों के मान से रिसर्चर्स ने तीन श्रेणियों में वर्गीकृत किया है। शोध करने वालों ने 31 झीलों को पहली श्रेणी,12 को दूसरी और 4 झीलों को तीसरी श्रेणी में विभाजित किया है। ऐसा इसलिए ताकि श्रेणीवार विभाजित झीलों के आधार पर उनके खतरे की प्राथमिकता को समझने में आसानी हो।

बिहार का अभिशाप -

प्रकाशित रिपोर्ट्स में गंगा की सहायक नदी बिहार का अभिशाप ‘कोशी’ के बेसिन में ग्लेशियल झीलों के हॉट स्पॉट को शोधकर्ताओं ने खतरा माना है। रिसर्च रिपोर्ट्स के अनुसार इस बेसिन में सबसे अधिक लगभग 42 खतरनाक झीलों की संभावना है।

कोशी/गंडकी/करनाली बेसिन -

कोशी नदी बेसिन क्षेत्र में खतरनाक मानी जा रही झीलों का दायरा वर्ष 2000 से 2015 के बीच 12% बढ़ने जबकि गंडकी रिवर बेसिन में इसमें 8% की वृद्धि होने का दावा रिसर्चर्स ने किया है। करनाली नदी के बेसिन में भी 1.27 फीसद वृद्धि की बात कही गई है।

शोध कहता है कि साल 2000 की तुलना में वर्ष 2015 में करीब 50 झीलें संख्या में भले ही कम हुईं प्रतीत हों लेकिन हकीकत में इन झीलों का विलय दूसरी झील में होने से धरती पर झीलों के कुल दायरे में वृद्धि हुई है; जो कि एक खतरनाक संकेत है।

तिब्बत में सबसे ज्यादा झील -

खतरनाक श्रेणी की झीलों में से 50 फीसदी झीलें तिब्बत क्षेत्र में निर्मित हुई हैं। पिछले साल 2020 में की गई चीनी रिसर्चर्स की स्टडी में तिब्बत में उभरीं 654 ग्लेशियल झीलों में से 246 झीलों को डेंजर जोन में रखा गया था।

इन तमाम शोधों के आधार पर विषय विशेषज्ञों ने इन झीलों के खतरों के समाधान के लिए सभी राष्ट्रों को मिलकर कार्य करने की जरूरत पर बल दिया था।

अवसरवादी ड्रेगन -

वर्ष 2007 में जलवायु परिवर्तन (Climate change) पर इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (Intergovernmental Panel on Climate Change) (IPCC) यानी जलवायु परिवर्तन से संबंधित अंतर-सरकारी पैनल की रिपोर्ट बेअसर रही क्योंकि संबंधित अवसरवादी राष्ट्र चीन ने कूटनीति के तहत मानवहित के इस प्रयोजन में सहयोगात्मक कदम नहीं उठाए।

एक बार फिर 2014 में IPCC की रिपोर्ट में इन खतरों के बारे में आगाह किया गया, लेकिन संबंधित राष्ट्रों के मध्य सकारात्मक कदमों का अभाव रहा।

IPCC या ICIMOD की रिसर्च से जुटाया गया डेटा नेपाल-भारत में आपदाओं की हकीकत बयान करने के लिए काफी है। ड्रेगन की असहयोगात्मक चाल के कारण हिमालय क्षेत्र के ग्लेशियर और उससे बनने वाली झीलों के डेटा संकलन में असुविधा हो रही है।

बचाव कार्य जारी -

पुष्ट सूत्रों के मुताबिक 15 फरवरी 2021 तक उत्तराखंड आपदा में 56 लोगों की मौत की पुष्टि हुई है जबकि 150 से अधिक लापता लोगों की तलाश जारी है।

अगले आर्टिकल में चर्चा करेंगे चीन की रिवर डिप्लोमेसी (river diplomacy of china) के बारे में जिससे बदल रही नेपाल-तिब्बत की प्राकृतिक संरचना से कैसे पैदा हो रहा प्राकृतिक आपदा का खतरा?

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डिस्क्लेमर आर्टिकल प्रचलित रिपोर्ट्स पर आधारित है। इसमें शीर्षक-उप शीर्षक और संबंधित अतिरिक्त प्रचलित जानकारी जोड़ी गई हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं। इसमें प्रकाशित तथ्यों की जिम्मेदारी राज एक्सप्रेस की नहीं है।

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