हाइलाइट्स –
अतल शांत कलरव का कहर
क्यों जानलेवा हिमालयन ग्लेशियर्स?
देखने में सुंदर झीलें कितनी हैं खतरनाक?
राज एक्सप्रेस। उत्तराखंड के चमौली में घटित प्राकृतिक आपदा ने हिमालय क्षेत्र के अनुसंधान अध्येताओं के पिछले सबक को याद दिला दिया। हिम शिखरों, बर्फीली घाटियों संबंधी आपदाओं के कारणों पर हिम शिखर क्षेत्र अनुसंधानकर्ता चीन, नेपाल और भारत की सरकारों को पहले ही चेता चुके हैं। आपदा के कारणों, अनुसंधान और चेतावनियों के बारे में सविस्तार जानिये @rajexpress पर....
खतरा क्यों टाला नहीं जा सका? -
उत्तराखंड में ग्लेशियर जनित बाढ़ (Uttarakhand Flood) से मची तबाही अपने पीछे तमाम सवाल छोड़ गई। इस अवश्यंभावी आपदा के बारे में शोधकर्ता समय से काफी पहले एशियाई देशों को आगाह कर चुके हैं। बावजूद इसके खतरे को टाला नहीं जा सका!
आशंका जताई जा रही है कि खतरा अभी भी बरकरार है, वो भी इस बार दोगुनी ताकत वाला! निश्चित ही उत्तराखंड आपदा (Uttarakhand disaster) का कारण अंतर्संबंधों के कारण भूस्खलन या फिर हिमस्खलन में से कोई एक हो सकता है।
हालांकि इसका एक पहलू अंतरराष्ट्रीय राजनीति (Geopolitics) भी है जिसके कारण तमाम रिसर्च/जानकारियों पर पर्दा डाला जा रहा है। जिससे हिमालयन रीजन के मिजाज को समझने से जुड़ा संग्रहित रिसर्च डेटा अनुपयोगी होकर ब्लैक होल में तब्दील होता जा रहा है।
ऋषिगंगा नदी क्षेत्र में झील की आशंका -
इस बीच उत्तराखंड (Uttarakhand) राज्य के चमोली जिले (Chamoli) में सात फरवरी को ग्लेशियर टूटने के बाद ऋषिगंगा नदी (Rishiganga river) के नजदीक झील निर्मित होने की आशंकाओं के समाधान (रिसर्च डेटा कलेक्शन) के लिए एक दस्ता खोजबीन के लिए रवाना हुआ है।
उत्तराखंड सरकार ने शुक्रवार के दिन एक टीम को इस जांच का जिम्मा सौंपकर रवाना किया। आशंका बलवती हो रही है कि ऋषिगंगा नदी जलसंचय इलाके में ग्लेशियर बर्स्ट होने के बाद प्राकृतिक झील निर्मित हुई है।
दल में शामिल सदस्य –
डेटा कलेक्शन के लिए रवाना हुए दल में एनडीआरएफ यानी नेशनल डिजास्टर रिस्पॉन्स फोर्स (National Disaster Response Force-NDRF) मतलब “राष्ट्रीय आपदा अनुक्रिया/मोचन बल” और एसडीआरएफ यानी स्टेट डिजास्टर रिस्पॉन्स फोर्स (SDRF-State Disaster Response Force) अर्थात “राज्य आपदा अनुक्रिया/मोचन बल” के सदस्य शामिल हैं।
टीम का टारगेट –
रवाना हुई टीम डेंजरस जोन में झील बनी है अथवा नहीं एवं उसके संभावित खतरों का अध्ययन करेगी। जांच के केंद्र बिंदु तक पहुंचने के लिए टीम को हिमालय के उच्चतम हिम शिखरों वाले दुर्गम इलाकों में ट्रैक करना होगा। स्थल तक पैदल चलकर पहुंचने के बाद टीम अपनी जांच रिपोर्ट केंद्र एवं राज्य सरकार को प्रस्तुत करेगी।
जैसा मीडिया को बताया –
“वाकई में कोई झील बनी है अथवा नहीं? इस तथ्य की जांच के लिए यह टीम झील की असल जगह को देखने के लिए ट्रैक करेगी। जांच के बाद टीम इस विषय पर अपनी रिपोर्ट सौंपेगी।”
नीलेश आनन्द भरणे, उप महानिरीक्षक (डीआईजी), मुख्य प्रवक्ता, राज्य पुलिस मुख्यालय, राज्य- उत्तराखंड
सैटेलाइट संकेत –
राष्ट्रों के मध्य राजनीति से प्रेरित मानव जनित प्राकृतिक आपदा कहर बनकर टूट रही है। क्षेत्र में आपदा से पहले और बाद के उपग्रह चित्रों (Satellite Images) का अध्ययन करने वाले अंतरराष्ट्रीय भूवैज्ञानिकों (Geologists) एवं ग्लेशियोलॉजिस्ट्स (Glaciologists) यानी हिमनद विज्ञानियों ने उत्तराखंड के चमोली में प्राकृतिक आपदा के बाद डेंजर जोन में झील के निर्माण के संकेत दिये हैं।
उपग्रह चित्रों में झील -
उपग्रह छवियों (Satellite Images)पर स्टडी करने वाले जानकारों ने आपदा के बाद संबंधित क्षेत्र में खतरनाक झील बनने के संकेत दिये हैं। इन झीलों से दूसरी आपदा आने का भी खतरा जताया जा रहा है। एक्सपर्ट्स की राय है कि पानी का दबाव बढ़ने पर इलाके में दूसरी बार फ्लैश फ्लड के खतरे से इनकार नहीं किया जा सकता। सैटेलाइट तस्वीरें देखिये स्लाइड शो में – सौजन्य- planet, social media
तलाशी अभियान प्रभावित -
NTPC के 520 मेगावाट की तपोवन-विष्णुगाड जलविद्युत परियोजना की सुरंग के अंदर भी तलाशी अभियान प्रभावित हुआ है। सुरंग में फंसे लोगों को निकालने सर्च ऑपरेशन जारी है। सनद रहे; धौलीगंगा नदी की सहायक नदी ऋषिगंगा पर तपोवन परियोजना (Tapovan Project) का काम किया जा रहा है।
झील का भय -
ऋषिगंगा प्रोजेक्ट (Rishiganga project) के पास रेणी गांव की बसाहट आपदा के बाद इलाके में झील बनने की आशंका से डरी हुई है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार भयाक्रांत लोगों को अपने घरों में न जाकर ऊंचाई वाले इलाकों में सर्द रातें गुजारना मंजूर है।
आपको बता दें चमोली जिले की दो जलविद्युत परियोजनाओं को प्रभावित करने वाली जल प्रलय के बाद यहां 200 से ज्यादा लोग लापता बताये जा रहे हैं।
इनने भांप लिया था खतरा -
उत्तराखंड ग्लेशियर डिज़ास्टर (Uttarakhand Glacier Disaster)घटित होने के संकेत पहले ही मिल चुके थे। दरअसल कुछ माह पहले हिमालय क्षेत्र (Himalayan Region) में बन रही झीलों (Himalayan Glacial Lakes) के खतरे को पहचानकर रिसर्चर्स ने वार्निंग भी दी थी।
47 झील बेहद खतरनाक! -
उन्होंने चेताया था कि हिमालय में बन रहीं कई ग्लेशियल झीलों (हिमनदी झीलों) में से 47 बेहद खतरनाक हैं। शोधकर्ताओं ने वार्न किया था कि इन 47 ग्लेशियल लेकमें से कोई भी झील ब्रेक हो सकती हैं, जिससे नेपाल (Nepal), चीन (China) और भारत (India) में बाढ़ जैसे हालात पैदा हो सकते हैं।
3624 ग्लेशियल झीलों का चला पता -
एक अध्ययन के मुताबिक तीनों देशों में कोशी, गंडकी और करनाली नदियों के बेसिन में कुल 3624 ग्लेशियल झीलों का पता चला। रिसर्चर्स ने पाया कि कुल ग्लेशियल झीलों में से 1410 झीलों का दायरा 0.02 वर्ग किलोमीटर या उससे अधिक था।
अध्ययनकर्ताओँ ने तब इनमें से 47 झीलों के मामले में तत्काल निवारक कदम उठाते हुए शमन कार्रवाई संबंधी जरूरत की वकालत की थी।
इनकी रिसर्च -
पड़ोसी राष्ट्र नेपाल में जारी संयुक्त राष्ट्र (united nations-UN) के विकास कार्यक्रम और द इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट (The International Centre for Integrated Mountain Development) (ICIMOD) यानी एकीकृत पर्वत विकास के लिए अंतर्राष्ट्रीय केंद्र (इकिमोड) के विशेषज्ञों ने यह रिसर्च की थी।
इन खतरनाक मानी गईं 47 झीलों में से 25 तिब्बत, 21 नेपाल जबकि 1 झील भारतीय क्षेत्र में चिह्नित की गई थी।
आपदा,रिसर्च और देश -
इकिमोड (CIMOD) यानी एकीकृत पर्वत विकास के लिए अंतर्राष्ट्रीय केंद्र चीन, नेपाल और भारत के बीच ग्लेशियल झीलों पर आधारित शोध और निगरानी संबंधी सहयोग की वकालत करता रहा है। लेकिन इकिमोड के प्रयासों को इन राष्ट्रों के मध्य अंतरराष्ट्रीय संबंधों की तल्खी के कारण पूरी तरह सफलता नहीं मिल पाई।
पहले से रहे चेता -
वर्ष 2007 में जलवायु परिवर्तन (Climate change) पर इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (Intergovernmental Panel on Climate Change) (IPCC) यानी जलवायु परिवर्तन से संबंधित अंतर-सरकारी पैनल ने कहा था कि “हिमालय क्षेत्र डेटा के लिए 'ब्लैक होल' बन गया है।” इतना ही नहीं IPCC ने हिमालयन रीजन के तापमान में औसत से अधिक वृद्धि को खतरा माना था।
विषय संबंधित महत्वपूर्ण डेटा और सूचनाओं के अभाव के कारण खतरनाक झीलों के खतरों की विभीषिका के अनुमान-समाधान की दिशा में भी यथेष्ठ कदम नहीं उठाए जा पा रहे। उम्मीद है कि राष्ट्रों के मध्य मतभेदों की बर्फ पिघलेगी और मानव हित में सकारात्मक कदम हिम शिखर की ओर अग्रसर होंगे...
सीरीज के अगले आलेख में चर्चा करेंगे चीन की रिवर डिप्लोमेसी (river diplomacy of china) के बारे में जिससे बदल रही नेपाल-तिब्बत की प्राकृतिक संरचना और कैसे पैदा हो रहा प्राकृतिक आपदा का खतरा।
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सैटेलाइट चित्रों से मिले संकेत, उत्तराखंड आपदा का कारण हिमस्खलन नहीं बल्कि यह था!
डिस्क्लेमर – आर्टिकल प्रचलित रिपोर्ट्स पर आधारित है। इसमें शीर्षक-उप शीर्षक और संबंधित अतिरिक्त प्रचलित जानकारी जोड़ी गई हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं। इसमें प्रकाशित तथ्यों की जिम्मेदारी राज एक्सप्रेस की नहीं है।
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