तैय्यप एर्दोगान एक बार फिर बने तुर्किए के राष्ट्रपति
तैय्यप एर्दोगान एक बार फिर बने तुर्किए के राष्ट्रपतिSyed Dabeer Hussain - RE

तैय्यप एर्दोगान एक बार फिर बने तुर्किए के राष्ट्रपति, जानिए इसका भारत पर क्या होगा असर?

एर्दोगान की जीत को भारत के परिपेक्ष में देखें तो इसे सकारात्मक तो बिल्कुल नहीं कहा जा सकता। एर्दोगान अपने भारत विरोधी रुख के लिए जाने जाते रहे हैं।
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राज एक्सप्रेस। तुर्किए (Turkey) में हुए राष्ट्रपति चुनाव (Presidential Election) में रेचेप तैय्यप एर्दोगान (Recep Tayyip Erdogan) ने एक बार फिर से जीत हासिल की है। तैय्यप एर्दोगान ने दूसरे चरण के मतदान में करीब 52 फीसदी मत हासिल किया, वहीं उनके प्रतिद्वंदी कमाल कलचदारलू को करीब 48 फीसदी मत मिले। तैय्यप एर्दोगान की जीत पर भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी ट्वीट करके उन्हें बधाई दी है। पीएम मोदी ने ट्विटर पर लिखा है कि, ‘मुझे विश्वास है कि आने वाले समय में हमारे द्विपक्षीय संबंध और वैश्विक मुद्दों पर सहयोग बढ़ता रहेगा।’ हालांकि एर्दोगान की जीत को भारत के परिपेक्ष में देखें तो इसे सकारात्मक तो बिल्कुल नहीं कहा जा सकता। एर्दोगान अपने भारत विरोधी रुख के लिए जाने जाते रहे हैं। तो चलिए जानते हैं कि एर्दोगान के एक बार फिर से तुर्किए का राष्ट्रपति बनने से भारत पर क्या प्रभाव पड़ेगा।

कश्मीर मुद्दा

बीते दिनों तुर्किए में आए विनाशकारी भूकंप (Earthquake) के बाद भारत उन देशों में से एक था, जिसने सबसे पहले तुर्किए को मदद पहुंचाई। इसके बावजूद बीते दिनों श्रीनगर में हुई G20 की बैठक (G-20 Summit) में तुर्किए ने हिस्सा नहीं लिया। एर्दोगान हमेशा से कश्मीर मुद्दे (Kashmir Issue) को उठाते रहे हैं। वह इस मुद्दे पर पाकिस्तान (Pakistan) का खुला समर्थन करते आए हैं। ऐसे में एर्दोगान के वापस राष्ट्रपति बनने से वह फिर से ऐसा करेंगे और इससे दोनों देशों के बीच संबंध तनावपूर्ण बने रहेंगे।

कट्टरपंथियों को समर्थन

दरअसल एर्दोगान पूरी दुनिया के मुसलमानों की आवाज बनना चाहते हैं। इसलिए वह इस्लामिक कट्टरपंथियों को समर्थन देने से भी बाज नहीं आते हैं। उन पर आरोप लगता है कि वह हमेशा से भारत विरोधी इस्लामिक समूहों का समर्थन करते आए हैं। पाकिस्तान की आतंकी गतिविधियों को भी तुर्किए से मदद मिलती है। ऐसे में एर्दोगान के राष्ट्रपति बनने से यह सिलसिला भी जारी रहेगा।

क्षेत्रीय हितों को चुनौती

एर्दोगान की जीत को दक्षिण एशिया में भारत के हितों को चुनौती के रूप में भी देखा जा रहा है। इस्लाम के नाम पर स्थापना होने के चलते पाकिस्तान और तुर्किए दोनों के ही संबंध अच्छे रहे हैं। तुर्किए भारी मात्रा में पाकिस्तान को हथियार भी बेचता है। दोनों देश मिलकर सुरक्षा से सम्बंधित कई प्रोजेक्ट पर साथ काम कर रहे हैं।

आर्थिक संबंधों पर भी असर

पिछले कुछ सालों में भारत सरकार की नीति स्पष्ट रही है कि दो देशों के संबंधों का आधार केवल आर्थिक नहीं हो सकता। ऐसे में एर्दोगान कश्मीर मुद्दे को उठाते रहेंगे, भारत विरोधी गतिविधियों को समर्थन देते रहेंगे तो तय है कि इसका असर दोनों देशों के आर्थिक संबंधों पर भी पड़ेगा।

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