चीन से आर्थिक मदद लेने वाले देशों का आज बुरा हाल, जानिए क्या है उन देशो की वर्तमान स्थिति...
राज एक्सप्रेस। फोर्ब्स मैगजीन की एक रिपोर्ट में बताया गया था कि चीन ने दुनियाभर के लगभग 97 देशों को ऋण जाल में फंसा रखा है। जिसमे भारत से सीमा साझा करने वाले देशों के अलावा सभी महाद्वीपों के गरीब और मजबूर देशों ने चीन से ऋण लिया है और इनमे से कुछ देशों में चीन अपनी कॉलोनी भी बना रहा है और कुछ देशों बंदरगाहों को हथिया भी रहा है जिससे भारत को खतरा होगा। आइए जाने की इन देशों की चीन से ऋण लेने के बाद की दशा क्या है?
ऋण जाल कूटनीति (Debt Trap Diplomacy)
चीन से ऋण लेने वाले देशों को जानने से पहले हमें यह जानना जरूरी है कि आखिर चीन की यह ऋण जाल वाली कूटनीति असल में क्या हैं? ऋण-जाल कूटनीति एक अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संबंध है जहां एक लेनदार देश उधार लेने वाले राष्ट्र को आंशिक रूप से या पूरी तरह से ऋणदाता के राजनीतिक उत्तोलन को बढ़ाने के लिए ऋण देता है। जब ऋणी देश अपने पुनर्भुगतान दायित्वों को पूरा करने में असमर्थ हो जाता है तो लेनदार देश को आर्थिक या राजनीतिक रियायतें निकालने के इरादे से ऋणी देश को अत्यधिक ऋण देने के लिए कहा जाता है। ऋण की शर्तों को अक्सर प्रचारित नहीं किया जाता है। चीन की इस तरह की जमीनी राजनीति और कूटनीति देख भारतीय अकादमिक ब्रह्मा चेलानी ने Debt Trap Diplomacy टर्म को गढ़ा था।
वह देश जो चीन से मदद लेकर हो रहे बर्बाद
पाकिस्तान:
स्टेट बैंक के आंकड़ों के अनुसार, साल 2017 में पाकिस्तान पर चीन का कर्ज 7.2 बिलियन डॉलर था जो अप्रैल 2018 तक आते-आते 19 बिलियन डॉलर और 2020 तक 30 बिलियन डॉलर तक बढ़ गया था। वर्तमान में फोर्ब्स मैगजीन के हवाले से बताया गया है कि पाकिस्तान ने चीन से 2022 तक लगभग 78 बिलियन डॉलर का ऋण ले रखा है। विशेषज्ञों द्वारा बताया गया कि पाकिस्तान को चीन द्वारा दिया गया अपना कर्ज चुकाने में लगभग 40 साल लगेंगे, पाकिस्तान की आर्थिक मंदी और वर्तमान में उजड़ी हुई स्थिति का कारण कुछ हद तक CPEC यानी China-Pakistan Economic Corridor है जिसने पाकिस्तान के हितों को चीन के अधीन कर दिया है।
CPEC और चीन पर पाकिस्तान की बढ़ती आर्थिक निर्भरता पाकिस्तान की संप्रभुता के लिए खतरा बन चुकी है। CPEC के तहत ही पाकिस्तान ने अपने दो बड़े बंदरगाहों (कराची और ग्वादर) को चीन की COPH कंपनी को लीज पर दे दिया है। 2021 में आई खबर के अनुसार चीन कराची बंदरगाह में 3.5 बिलियन डॉलर का निवेश करेगा जिसमे 4 बड़े प्रोजेक्ट्स होंगे।
चीन, पाकिस्तान के ग्वादर में 5 लाख चीनी लोगों के लिए अलग शहर भी बसाएगा जो CPEC के अधीन होगा। पाकिस्तान की आर्थिक हालत CPEC परियोजना की वजह से बद से बदतर बनती जा रही है और चीन द्वारा दिए ऋण के भार के कारण अब पाकिस्तान धीरे-धीरे चीन की कॉलोनी बनने जा रहा है।
श्रीलंका:
चीन ने श्रीलंका के पूर्व प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे और उनके भाई गोटबाया की रक्षा की थी जिन पर कथित तौर पर द लिबरेशन टाइगर्स ऑफ़ तमिल ईलम (LTTE) के साथ युद्ध के दौरान मानवाधिकारों के उल्लंघन का आरोप लगाया गया था। महिंदा राजपक्षे ने 2005 से 2015 तक सत्ता में रहने के दौरान कई चीनी बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के लिए अपनी स्वीकृति दी थी। श्रीलंका के बड़े और अहम हंबनटोटा अंतर्राष्ट्रीय बंदरगाह और मट्टाला राजपक्षे अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे के निर्माण के लिए चीन के एक्ज़िम बैंक द्वारा श्रीलंका को ऋण दिया जाना ऋण-जाल कूटनीति के उदाहरण हैं। श्रीलंका ने चीन से अबतक लगभग 8 से 10 बिलियन डॉलर का ऋण लिया है।
2007 में, राज्य के स्वामित्व वाली चीनी फर्म चाइना हार्बर इंजीनियरिंग कंपनी और सिनोहाइड्रो कॉर्पोरेशन को 361 मिलियन डॉलर में बंदरगाह बनाने के लिए काम पर रखा गया था। चीनी बैंक एक्जिम (Exim) ने 6.3 प्रतिशत की वार्षिक ब्याज दर पर परियोजना का 85 प्रतिशत वित्त पोषित किया था। परियोजना शुरू होने के बाद पैसा खोना शुरू हुआ और श्रीलंका के ऋण-सेवा का बोझ बढ़ गया, जिसके दबाव में आकर श्रीलंका ने अपने सबसे बड़े बंदरगाह को 99 साल के पट्टे पर चीन के स्वामित्व वाले चीन मर्चेंट्स पोर्ट (China Merchants Port Company) को पट्टे पर देने का फैसला किया।
चीनी कंपनी को 1.12 बिलियन डॉलर की लीज़ का उपयोग श्रीलंका द्वारा भुगतान संतुलन के मुद्दों को हल करने के लिए किया गया था। श्रीलंका के इस कदम ने संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान और भारत में चिंता जताई कि देश के भू-राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों को शामिल करने के लिए बंदरगाह को चीनी नौसैनिक अड्डे के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। श्रीलंका की आर्थिक और राजनीतिक स्थिति पर चीन की आंख मूंदने से भ्रष्टाचार और स्थानिक उधारी का प्रसार हुआ। लंका को चीनी निवेश के लिए बंधक बना लिया गया है जिसने अर्थव्यवस्था में संरचनात्मक कमजोरियों को और खराब कर दिया और मौजूदा संकट में योगदान दिया है।
मालदीव (Maldives):
चीन का मालदीव पर लगभग 1.5 बिलियन डॉलर का ऋण है जो उनके सकल राष्ट्रीय कमाई (Gross National Income) का 20 प्रतिशत है। इसपर मालदीव के पूर्व राष्ट्रपति और मालदीव की संसद के अध्यक्ष मोहम्मद नशीद ने कहा था कि उनका देश हमेशा 'इंडिया फर्स्ट' की नीति का पालन करता रहा है और चीन को "जमीन हड़पने और कर्ज के जाल" की योजना से देश भरी तबाही हुई है। मालदीव में चीन की दिलचस्पी उसकी 'वन बेल्ट वन रोड' पहल के संदर्भ में बढ़ी है। मालदीव अपने बड़े समुद्री क्षेत्र के कारण निशाने पर है। मालदीव की मौजूदा सरकार ने जमीन हड़पने में मदद करने वाले सभी कानूनों को वापिस से स्थापित कर दिया जिसे पहले रद्द कर दिया गया था। मालदीव की मीडिया रिपोर्ट अनुसार, चीन मालदीव के राजनीतिक, आर्थिक और लोकतांत्रिक मामलो में हस्तक्षेप कर रहा है, 2013 और 2018 के बीच, मालदीव सरकार ने चीनी सरकार के स्वामित्व वाली कंपनियों को पर्यटक रिसॉर्ट बनाने के लिए एक दर्जन से अधिक द्वीप दिए थे , लेकिन अभी तक कुछ भी नहीं बनाया गया है।
लाओस (Laos):
विश्व बैंक के अनुसार, 2021 के अंत तक, लाओस का सार्वजनिक ऋण सकल घरेलू उत्पाद के 88% तक पहुंच गया था, जिसमें चीनी लेनदारों का विदेशी ऋण का 47% हिस्सा था। इसके अलावा, लाओस को द्विपक्षीय ऋण से चीन के लिए अपने ऋण का 11% बकाया है। बैंक ऑफ़ द लाओ P.D.R के गवर्नर सोनेक्से सिटफैक्से ने जून 2022 में आर्थिक संकट और घबराहट का संकेत दिया था। चीन ने लाओस के बिजली ग्रिड और, विस्तार से, इसके जल संसाधनों पर प्रभावी नियंत्रण कर लिया है। केवल सात मिलियन नागरिकों वाली लाओस की अर्थव्यवस्था के छोटे आकार को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि चीन अपने संसाधनों का अत्यधिक शक्ति का प्रयोग कर लाओस के संसाधनों को कब्जे में ले सकता हैं।
अफ्रीकी देश (African Countries):
विश्व बैंक के रिकॉर्ड के अनुसार, 2015–2017 के बीच कई अफ्रीकी देशों पर चीन का बड़ा कर्ज है। चीन के लिए अफ्रीकी ऋण 2010 में 10 बिलियन डॉलर से बढ़कर 2016 में $30 बिलियन से अधिक हो गया। चीन ने 2000 और 2017 के बीच अफ्रीकी सरकारों और राज्य के स्वामित्व वाले उद्यमों को कुल 143 बिलियन डॉलर का ऋण दिया है। 2020 में, सबसे बड़े चीनी ऋण वाले अफ्रीकी देश है
अंगोला- 25 बिलियन डॉलर
इथियोपिया- 13.5 बिलियन
जाम्बिया- 7.4 बिलियन
कांगो गणराज्य- 7.3 बिलियन
सूडान- 6.4 बिलियन।
चीन का अफ्रीकी देशों में तांडव कुछ इस प्रकार का है जिसे इस लेख में नही लिखा जा सकता है। चीन द्वारा अफ्रीकी देशों पर अत्याचार के लिए एक अलग लेख लिखा जा सकता है, क्योंकि चीन ने गरीब बहुत से अफ्रीकी देशों की GDP का 50 प्रतिशत तक ऋण दे रखा है। अफ्रीकी देशों के ऋण ना चुकाने पर, चीन ने उनके संसाधनों पर कब्जा कर लिया है।
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