हाइलाइट्स –
क्या है चीन की रिवर डिप्लोमेसी?
नेपाल की जमीन पर चीनी शिकंजा!
भारत के लिए चौंकाने वाली है रिपोर्ट
राज एक्सप्रेस। उत्तराखंड के चमौली में घटित प्राकृतिक आपदा के कारकों के बारे में नेपाल में जारी चीन की रिवर डिप्लोमेसी पर भी गौर करना होगा। चाईना की नदी संबंधी कूटनीति के संभावित भौगोलिक-राजनीतिक खतरों के बारे में सविस्तार जानिये @rajexpress पर....
देश-विदेश के स्थापित समाचार माध्यमों की रिपोर्ट्स/समीक्षा में उल्लेख है कि चीन की इस चालाकी के कारण पर्यावरणीय संतुलन प्रभावित हो रहा है। इस कारण भू-हिम स्खलन जैसी प्राकृतिक घटनाएं नेपाल-भारत के लिए चिंता का कारण बनती जा रहीं हैं।
चीन का बढ़ता दखल -
हिमालय पर्वत-माला से जुड़ी नेपाल-चीन की सीमाओं के आसपास चीन का बढ़ता दखल न केवल नेपाल बल्कि भारत के लिए भी प्राकृतिक आपदाओं संबंधी परेशानी का सबब बन सकता है। विषय पर आगे बढ़ने के पहले आपदा के हिमालयन डेटा कनेक्शन पर गौर करना जरूरी है।
हमने आपके साथ हिमालय पर्वत श्रृंखला के स्वभाव अध्ययन संबंधी लगभग ब्लैक होल बनते जा रहे अथाह डेटा के संदर्भ में जानकारी साझा की थी। क्या है हिमालयन डेटा के ब्लैक होल बनने का मामला? इस सवाल का जवाब विस्तार से जानने शीर्षक कैसेकैसे 'ब्लैक होल' बनता जा रहा हिमालयन डेटा -पर क्लिक/स्पर्श करें -
चाइनीज कूटनीति के खतरे -
चीन की रिवर डिप्लोमेसी से न केवल जलवायु बल्कि भौगोलिक संकट भी गहरा रहा है। चीन ने नदियों की कूटनीति (River diplomacy) का जो दांव खेला है उससे नेपाल और भारत के भौगोलिक नक्शे में भी बदलाव संभव है!
ऐसे में सिर पर मंडरा रहे भौगोलिक संकट से देशों के मध्य राजनीतिक संकट भी पैदा हो सकता है। चीन की वजह से गहरा रहे जलवायु परिवर्तन के खतरे के कारण ग्लेशियल झीलों की बढ़ती/घटती संख्या से हिमनद झीलों से भी नेपाल और भारत में संकट व्याप्त होगा।
भारत-चीन संबंध -
भारत और चीन के बीच लद्दाख बॉर्डर पर टेंशन के बीच पड़ोसी देश नेपाल में चीन के जमीन हथियाने के तरीके ने भी दुनिया का ध्यान आकृष्ट किया है। भारत सरकार भी चीन के इस दुस्साहसिक कदम के रणनीतिक असर की समीक्षा कर रही है।
फिलहाल भारत सरकार का ध्यान नेपाल की उस जमीन के भौगोलिक समीकरण को समझने पर है जिस पर चीन का नियंत्रण अप्रत्यक्ष तौर पर होता जा रहा है। नेपाल में चीन के कब्जे में आ रही जमीन की भारत की भौगोलिक सीमा से कुल दूरी और उससे भारत में पड़ने वाले भौगोलिक-राजनीतिक एवं पर्यावरणीय प्रभाव के मंथन पर भी भारत का जोर है।
ET की खबर -
इकोनॉमिक टाइम्स (ईटी/ET) ने चीन की रिवर डिप्लोमेसी के संदर्भ में विस्तार से खबर जारी की है। न्यूज़ के मुताबिक भारत यह समझने प्रयासरत है कि चीन ने नेपाल की जमीन हथियाई है या फिर उसे इस काम में नेपाल सरकार की सहमति हासिल है।
खबर में चीन की अपने पड़ोसी देशों की जमीन पर अतिक्रमण कर संबंधित राष्ट्रों के समक्ष चुनौतियां पैदा करने की रणनीति का जिक्र है। इसमें चीन के कूटनीतिक कदम से भारत-चीन के रिश्तों में खटास आने की भी आशंका जताई गई है।
ईटी की रिपोर्ट में नेपाल से जुड़े मामलों को समझने वाले विशेषज्ञों के हवाले से नेपाली राजनीतिक नेतृत्व की चीन से नजदीकी के नुकसानदायक होने का जिक्र है। जिओपॉलिटिक्स यानी भूमंडलीय राजनीति के जानकारों का मानना है कि अपनी कुर्सी बचाने की जुगत में भिड़े ओली के निर्णयों से भारत-नेपाल रिश्तों पर गंभीर असर पड़ेगा।
ट्राइ-जंक्शन बॉर्डर -
इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के हवाले से बीबीसी के प्रेस रिव्यू में नेपाल-भारत-चीन के मध्य ट्राइ-जंक्शन बॉर्डर प्वॉइंट का उल्लेख है। इसके अनुसार वर्ष 1954 में भारत और चीन ने भारतीयों की आस्था के केंद्र कैलाश मानसरोवर धार्मिक स्थल तक जाने लिपुलेख से होकर गुजरने की अनुमति दी थी।
रिपोर्ट कहती है कि; वर्ष 2015 में भारत के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साझा बयान में लिपुलेख को चाइना-इंडिया बॉर्डर पास का दर्ज दिया गया। इस स्थल से दोनों देशों के मध्य व्यापार की सहमति बनी।
चीन का पैंतरा -
इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट में नेपाल सरकार की एक रिपोर्ट के हवाले से उल्लेख है कि नेपाल की जमीन पर कब्जा करने के लिए चीन कूटनीति के तहत तिब्बत में सड़क निर्माण की आड़ ले रहा है। रिपोर्ट में आशंका जताई गई है कि चीन इस इलाके में बॉर्डर चेक पोस्ट भी बना सकता है।
नदियों का रुख –
ईटी की रिपोर्ट के अनुसार नेपाल कृषि मंत्रालय की सर्वे रिपोर्ट में 11 स्थानों को चिह्नित किया गया है। इन चिह्नित 11 में से 10 जगहों पर चीन ने कब्जा कर लिया है।
रिपोर्ट कहती है कि इन स्थानों पर चीन ने प्राकृतिक सीमाओं का निर्धारण करने वाली नदियों के बहाव को मोड़कर जमीन पर कब्जा किया है। इसे चीन की रिवर डिप्लोमेसी (River diplomacy) यानी नदी से जुड़ी कूटनीति बताया जा रहा है।
नेपाल की ओर बहाव -
इकोनॉमिक टाइम्स ने दस्तावेज के आधार पर खुलासा किया है कि, तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र में चीन अपने रोड नेटवर्क को तेजी से बढ़ा रहा है। ड्रैगन के इस मिशन के कारण कई नदियों एवं उनकी सहायक नदियों ने रास्ता बदल लिया है। रास्ते में चीन की बाधाओं के कारण प्रभावित नदियां अब मूल दिशा से भटक कर नेपाल की ओर प्रवाहित हो रही हैं।
बदलते प्रवाह का परिणाम -
मूल दिशा से भटककर नेपाल की ओर प्रवाहित होने वाली इन नदियों के कारण नेपाल में भूमि का क्षरण हो रहा है। भूमि के क्षरण से नेपाल की भौगोलिक सीमा सिकुड़ रही है जिससे नेपाल देश के मानचित्र की बुनावट पर भी असर पड़ सकता है।
रिपोर्ट में आशंका जताई गई है कि अगर जारी रफ्तार से चीन के इन प्रयासों को हवा मिलती रही तो नेपाल का एक बड़ा भूभाग तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र का अंग होगा।
इन नदियों पर असर -
ईटी की रिपोर्ट के अनुसार तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र में सड़क निर्माण के कारण संखुवासभा जिले की समजंग, काम खोला, और अरुण नदियों के बहाव की दिशा बदल गई है। इस बदलाव के कारण नेपाल की लगभग 9 हेक्टेयर की भूमि पर चीन का अतिक्रमण हो गया है।
चीन की योजना -
रिपोर्ट में आशंका जताई गई है कि चीन की योजना तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र एवं नेपाल के बीच एक बफर जोन बनाने की है ताकि तिब्बत आंदोलन की मांग का दमन किया जा सके।
रिपोर्ट में चिंता जताई गई है कि नेपाल सरकार के दस्तावेज के अनुसार यदि नदियों के बदले रुख से जमीन का क्षरण इसी रफ्तार से जारी रहा तो नेपाल की सैकड़ों हेक्टेयर जमीन प्राकृतिक रूप से तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र का हिस्सा बन जाएगी।
साथ ही रिपोर्ट में इस बात की संभावना भी जताई गई है कि क्षरण की दशा में चीन बनने वाले इन नए इलाकों में अपनी सशस्त्र पुलिस टुकड़ियों के साथ कब्जा कर हक भी जता सकता है।
नेपाल की हीलाहवाली -
रिपोर्ट में नेपाल की चीन के साथ लगने वाली सीमा की सुरक्षा को लेकर भी चिंता जताई गई है। गौरतलब है कि एकमात्र ऑस्ट्रेलिया को छोड़कर चीन का अन्य देशों के साथ सीमा और अधिकार का विवाद गहरा रहा है।
दक्षिण चीन सागर में वियतनाम और मलेशिया के अलावा ताइवान से भी उसके राजनीतिक रिश्ते तल्ख हैं। अर्ध-स्वायत्त शहर हॉन्ग-कॉन्ग में तमाम विरोध के बावजूद चीन के नियंत्रण करने के काले प्रयासों की अन्य देशों ने भर्त्सना की है।
रिवर डिप्लोमेसी के दुष्परिणाम -
दरअसल नदियों का रुख मोड़कर चीन जिस तरह नेपाल की जमीन पर कब्जा करना चाहता है उसका दुष्परिणाम पर्यावरण पर पड़ना लाजिमी है। नदियों की दिशा बदलने से पर्यावरणीय चक्र असंतुलित हो रहा है। असंतुलित चक्र के कारण हिमालय पर्वत श्रृंखला के तापमान में वृद्धि होने से हिम/भू स्खलन का खतरा पैदा हुआ है।
इन दो प्रमुख खतरों की प्रतिक्रिया से बनने वाली ग्लेशियल लेक्स (glacial lakes) यानी हिमनद झीलों के कारण नदियों में बाढ़ का खतरा भी पैदा हुआ है।
ऐतिहासिक गलती -
विषय के जानकारों ने भारत के उत्तराखंड की नदी में आई बाढ़ की विपदा को चीन की अमानवीय कूटनीति का अप्रत्यक्ष परिणाम बताया है। ग्लेशियोलॉजिस्ट्स का मानना है कि नदियों के प्रवाह के साथ ही प्राकृतिक संरचना से छेड़छाड़ मानवीय इतिहास के लिए काला अध्याय साबित हो सकता है।
हाल ही में उत्तराखंड में आई हिमस्खलन जनित बाढ़ और पिछले साल दुनिया को चपेट में लेने वाली कोरोना वायरस महामारी जैसी आपदायें इस बारे में मानव जाति के लिए एक तरह से खतरे की घंटी ही हैं।
इस बारे में मुज़फ्फर रिज़्मी कैरानवी की ताकीद भरी एक ग़ज़ल का एक मिसरा भी है जो एक शेर में आया है, “ये जब्र भी देखा है तारीख़ की नज़रों ने, लम्हों ने ख़ता की थी सदियों ने सज़ा पाई।” तो हम सभी को पर्यावरण के प्रति अपने आचरण को सुधारना होगा, नहीं तो हमारे गलत व्यवहार की सजा हमारी आगामी पीढ़ियों को भुगतना पड़े, इसमें जरा भी संदेह नहीं।
डिस्क्लेमर – आर्टिकल प्रचलित रिपोर्ट्स पर आधारित है। इसमें शीर्षक-उप शीर्षक और संबंधित अतिरिक्त प्रचलित जानकारी जोड़ी गई हैं। यह लेखक के विचार हैं। इसमें प्रकाशित तथ्यों की जिम्मेदारी राज एक्सप्रेस की नहीं है।
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