अमेरिका की इस यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने लैब में ही कर डाला कोरोना वायरस का निर्माण
अमेरिका, दुनिया। देश में बीते ढाई साल से भी ज्यादा समय से जिस एक चीज ने सबसे ज्यादा आतंक मचा रखा है वह अब देश दुनिया का बच्चा-बच्चा भी जानता है क्योंकि, यह जानलेवा चीज और कुछ नहीं 'कोरोना वायरस' है। कई देशों में अब भी कोरोना का कहर देखने को मिल रहा है। हालांकि, वैक्सीन ने इन मामलों में काफी राहत दी है। कोरोना का खतरा टला भी नही है और एक और ज्यादा डराने वाली खबर अमेरिका की एक यूनिवर्सिटी से सामने आ गई है। इस यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने लैब में कोरोना वायरस का निर्माण कर डाला है।
यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने तैयार किया कोरोना वायरस :
आपको यह खबर पढ़कर काफी हैरानी हो रही होगी, लेकिन यह खबर बिल्कुल सही है। क्योंकि, अमेरिका की बोस्टन यूनिवर्सिटी ने बताया है कि, वहां वैज्ञानिकों ने लैब में कोरोना वायरस का आर्टिफिशियल फॉर्म बनाया है। हालांकि, यह खबर हंगामा होने पर सामने आई है। इस खबर ने एक बार फिर सभी को बुरी तरह डरा दिया है। इस खबर से हड़कंप सा मच गया। जिसके बाद अमेरिकी हेल्थ अधिकारियों ने जांच शुरू कर दी है। नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ ने बताया है कि, 'हमारे अधिकारी इस बात की जांच कर रहे हैं कि, क्या स्टडी, जिसे आंशिक रूप से अमेरिकी सरकार द्वारा वित्त पोषित किया गया था, को आगे बढ़ने से पहले अतिरिक्त जांच से गुजरना चाहिए था।'
यूनिवर्सिटी ने बताया :
सामने आई इस स्टडी को लेकर यूनिवर्सिटी ने बताया है कि, 'फाइंडिंग्स के शुरुआती वर्जन, जिसमें रिसर्चर्स ने कोरोना के मूल स्ट्रेन के एक लैब में तैयार किए गए वर्जन को ओमिक्रोन संस्करण से स्पाइक प्रोटीन के साथ जोड़ा, पिछले शुक्रवार को प्रकाशित की गई थी। नए आर्टिफिशियल स्ट्रेन ने 80 प्रतिशत चूहों को मार डाला, जो इसके संपर्क में आए। उसने यह देखने के लिए परीक्षण नहीं किया कि क्या यह मूल स्ट्रेन से अधिक तेजी से फैलता है या नहीं।'
NIH ने शुरू की मामले की जाँच :
स्टडी के सामने आने के बाद NIH ने मामले की शुरुआत कर दी है। साथ ही NIH ने कहा है कि, 'आगे बढ़ने से पहले काम की समीक्षा नहीं की थी, भले ही शोधकर्ता सरकारी पैसों का इस्तेमाल कर रहे थे।' वहीं, एक प्रवक्ता का कहना है कि, "NIH इस मामले की जांच कर रहा है, ताकि यह तय किया जा सके कि किया गया शोध एनआईएच ग्रांट पॉलिसी स्टेटमेंट के अधीन था या नहीं। उधर, बोस्टन यूनिवर्सिटी ने बताया कि उसे काम करने से पहले एनआईएच को सतर्क करने की आवश्यकता नहीं थी क्योंकि सरकारी पैसा सीधे प्रयोगों को फंड नहीं देता है। हालांकि, इसका इस्तेमाल उपकरणों और तकनीकों के लिए किया जाता था।"
विश्वविद्यालय के प्रवक्ता का कहना :
विश्वविद्यालय के प्रवक्ता ने कहा, "अनुसंधान की समीक्षा की गई और इंस्टीट्यूशनल बायोसेफ्टी कमेटी द्वारा अप्रूव किया गया, जिसमें वैज्ञानिकों के साथ-साथ स्थानीय समुदाय के सदस्य भी शामिल हैं। बोस्टन पब्लिक हेल्थ कमीशन ने भी शोध को मंजूरी दी।"
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