म्यांमार में जारी सैन्य शासन के विरुद्ध हो रहे प्रदर्शनों में 91 की गयी जान

म्यांमार में पिछले महीने हुए सैन्य तख्तापलट के बाद से यहां सैन्य शासन के विरुद्ध प्रदर्शन किए जा रहे हैं। विरोध प्रदर्शनों के दौरान कम से कम 91 लोग मारे गये हैं।
म्यांमार में जारी सैन्य शासन के विरुद्ध हो रहे प्रदर्शनों में 91 को गवानी पड़ी जान
म्यांमार में जारी सैन्य शासन के विरुद्ध हो रहे प्रदर्शनों में 91 को गवानी पड़ी जानSyed Dabeer Hussain - RE
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म्यांमार। जहां, कई देश कोरोना से लड़ रहे हैं वहीं, म्यांमार सैन्य सरकार की क्रूरता से भी परेशान है। यहां 1 फरवरी को सत्ता पलटने के बाद से शुरु हुई सैन्य सरकार की क्रूरता लगातार जारी है। यहां सेना के शासन के खिलाफ हो रहे प्रदर्शन किए जा रहे हैं। जिसमें सेना अपने सैन्य बल का गलत फायदा उठाते हुए मासूमों को मार रही है। वहीं, इसी विरोध प्रदर्शनों के दौरान शनिवार को कम से कम 91 लोगों को अपनी जान गवानी पड़ी।

सैन्य कार्रवाई में गवानी पड़ी 91 को जान :

दरअसल, म्यांमार में पिछले महीने जो सत्ता पलटी है, उसके बाद से यहाँ एक बार फिर सेना का राज हो गया है। जिसके विरोध प्रदर्शन कर रहे प्रदर्शनकारियों के खिलाफ सेना ने शनिवार को सबसे बड़ी हिंसक कार्रवाई की। इस सैन्य कार्रवाई के दौरान 91 लोग मारे गये। खबरों की मानें, तो म्यांमार के हालात बाद से बदतर होते जा रहे हैं। शनिवार शाम तक सुरक्षाबलों की कार्रवाई में मरने वाले लोगों की संख्या बढ़ कर 91 तक पहुंच गई। जो 14 मार्च तक 74 से 90 थी। इसके अलावा यंगून में एक निगरानीकर्ता द्वारा जारी बताई गई मृतकों की संख्या दो दर्जन से अधिक शहरों में हो रहे प्रदर्शन में शाम होने तक 89 बताई गई थी। इन प्रदर्शनकारियों की मांग निर्वाचित सरकार को फिरसे सत्ता में लाने की है।


कैसे शुरू हुआ मामला ?

दरअसल, म्यांमार में आजादी के बाद से कई दशकों तक सेना का शासन चला है, हर मामले से जुड़ा फैसला के हाथों में रहा करता था, लेकिन यहाँ अचानक कुछ साल पहले ही चुनाव आयोग का गठन कर यहां चुनाव कराये गए और अन्य देशों की तरह यहाँ भी सरकार चुनी गई। इसके बाद से म्यांमार में सरकार का शासन चलने लगा, लेकिन यहां की सेना पूरे म्यांमार में खुद का कंट्रोल चाहती थी, इसी के चलते सेना ने चुनाव आयोग में कुछ उच्च पदों पर अपने विश्ववसनीय लोगों को नियुक्ति दिलवाई और धांधली करते हुए उच्च पदों पर अपने विश्वसनीय सूत्र को सेना अध्यक्ष के इशारे पे नियुक्ति दी गयी। आगे चल कर चुनाव से बनी सरकार को इन्होंने एक रणनीति बनाते हुए गिराने का काम किया और 1 फरवरी को पार्लिमेंट सत्र के दौरान सरकार गिरा दी गयी यह कह कर चुनाव में गड़बड़ी हुई थी। जिससे म्यांमार में एक बार फिर और सेना का शासन स्थापित हो गया। जिसका विरोध म्यांमार के राजनीतिक दल कर रहे हैं, लेकिन यहां की सेना अपने सैन्य और आर्थिक बल का गलत फायदा उठाते हुए इन प्रदर्शनकारियों पर सीधी गोलीबारी जैसी कार्रवाई कर रहे हैं और इसी के चलते यहां अब तक ससैंकड़ों लोगों की जान जा चुकी हैं।

सेना ने मनाया सशस्त्र बल दिवस :

बता दें, म्यांमार की सेना ने देश की राजधानी में शनिवार को परेड के साथ वार्षिक सशस्त्र बल दिवस का अवकाश मनाया। जुैटा प्रमुख वरिष्ठ जनरल मिन आंग ह्लाइंग ने इस सत्ता पलटने के खिलाफ राष्ट्रव्यापी प्रदर्शनों का प्रत्यक्ष जिक्र नहीं किया, लेकिन उन्होंने देश की राजधानी नेपीता के परेड मैदान में हजारों जवानों के समक्ष दिए भाषण में 'राज्य की शांति एवं सामाजिक सुरक्षा के लिए हानिकारक हो सकने वाले आतंकवाद' का जिक्र किया और इसे अस्वीकार्य बताया। गौरतलब है कि, इस साल के कार्क्रम को हिंसा भड़काने के तौर पर देखा जा रहा है।

यूरोपीय संघ के प्रतिनिधिमंडल का ट्विट :

इस मामले में म्यांमार के लिए यूरोपीय संघ के प्रतिनिधिमंडल ने ट्विटर पर कहा, '76वां म्यांमार सशस्त्र बल दिवस आतंक और असम्मान के दिन के तौर पर याद किया जाएगा। बच्चों समेत निहत्थे नागरिकों की हत्या ऐसा कृत्य है जिसका कोई बचाव नहीं है।'

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