दुनिया के ‘16 बच्चों’ ने 5 देशों के खिलाफ क्यों दर्ज़ की शिकायत?

अलग-अलग देशों के 16 बच्चों ने संयुक्त राष्ट्र में पांच ताकतवर देशों के खिलाफ शिकायत दर्ज की है। क्या है ये और क्यों राजधानी भोपाल में हो रहा है इसका समर्थन? 11वीं के आरूष क्यों कर रहे हैं प्रदर्शन?
यूनिसेफ की प्रेस कॉन्फ्रेंस
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राज एक्सप्रेस। एक तरफ जहाँ पॉलीथिन प्रतिबंधित कर हम जलवायु परिवर्तन से बचाव की ओर पहला कदम उठा रहे हैं; वहीं दूसरी तरफ हमारे विश्व के 16 बच्चों ने इस मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र में पांच ताकतवर देशों- अर्जेंटीना, ब्राज़ील, फ्रांस, जर्मनी और टर्की के खिलाफ शिकायत दर्ज़ की है। इनमें इस मुद्दे पर लगातार विरोध प्रदर्शन करने वालीं स्वीडिश टीनेजर 16 वर्षीय ग्रेटा थुनबर्ग और अमेरिका की 14 वर्षीय अलेक्जेंड्रिया विलसेनोर शामिल हैं। जलवायु संकट पर सरकारी कार्रवाई की कमी का विरोध ज़ाहिर करते हुए इन बच्चों ने 23 सितंबर 2019 को बाल अधिकार पर संयुक्त राष्ट्र समिति में अपनी शिकायत प्रस्तुत की।

बाल याचिकाकर्ताओं का आरोप है कि, संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देश जलवायु संकट से निपटने में विफल रहे हैं और ये बाल अधिकारों का उल्लंघन है। उन्होंने स्वतंत्र निकाय से आग्रह किया कि सदस्य देशों को इसके विनाशकारी प्रभावों से बच्चों की सुरक्षा करने के लिए कार्रवाई करने का आदेश दें।

“अगर हमें खतरनाक परिणामों से बचना है तो जल्द से जल्द बदलाव की आवश्यकता है। जलवायु संकट सिर्फ मौसम में बदलाव नहीं है। इसका अर्थ भोजन की कमी, पानी की कमी, रहने के लिए प्रतिकूल परिस्थियों का बढ़ना, जिसकी वजह से शरणार्थी बढ़ रहे हैं, भी है। यह भयावह स्थिति है।”

ग्रेटा थुनबर्ग, बाल जलवायु परिवर्तन कार्यकर्ता

संयुक्त राष्ट्र में शिकायत दर्ज कराने वाले ये बच्चे दुनिया के 12 अलग-अलग देशों से आते हैं। इनकी उम्र 8 से 17 साल के बीच है। ChildrenVsClimateCrisis नाम से इन्होंने एक वेबसाइट बनाई है। यहां आप इनके बारे में पढ़ सकते हैं। साथ ही जान सकते हैं कि क्यों इन बच्चों ने पर्यावरण संरक्षण के लिए लड़ाई शुरू की। ये बच्चे हैं-

  1. अलेक्जेंड्रिया विलसेनोर(Alexandria Villasenor), अमेरिका - 14 साल

  2. कॉर्ल स्मिथ(Carl Smith), अमेरिका - 17 साल

  3. कटरीना लौरेंज़ो(Catarina Lorenzo), ब्राज़ील - 12 साल

  4. कियारा साची(Chiara Sacchi), अर्जेंटीना - 17 साल

  5. ग्रेटा थुनबर्ग(Greta Thunberg), स्वीडन - 16 साल

  6. ऐलन ऐने(Ellen Anne), स्वीडन - 08 साल

  7. आईरिस ड्यूकेन(Iris Duquesne), फ्रांस - 16 साल

  8. रायना इवानोवा(Raina Ivanova), जर्मनी - 15 साल

  9. रसलीन जुबली(Raslene Joubali), तुनिशिया - 17 साल

  10. डेबरॉ डेगबील(Deborah Adegbile), नाईजीरिया - 12 साल

  11. अयाका मेलिथाफा(Ayaka Metihafa), दक्षिण अफ्रीका - 17 साल

  12. रिद्धिमा पाण्डेय(Ridhima Pandey), भारत - 12 साल

  13. कॉर्लोस मेनुएल(Carlos Manuel), पलाऊ - 17 साल

  14. लिटोकने कबुआ(Litokne Kabua), मार्शल आईलैंड - 16 साल

  15. डेविड एकले-3(David Ackley-3), मार्शल आईलैंड - 16 साल

  16. रैंटन अंजैन(Ranton Anjain), मार्शल आईलैंड - 17 साल

बच्चों द्वारा दर्ज़ की गई शिकायत की प्रति-

इन बच्चों की तरह हमारे शहर में भी एक बच्चा है जो जलवायु संकट के मुद्दे पर अपना विरोध दर्ज़ करा रहा है। ग्यारहवीं कक्षा के छात्र आरूष कुमार ने 6 सितंबर(शुक्रवार) को अकेले वल्लभ भवन के सामने पोस्टर लेकर विरोध किया।

इसके बाद से वे हर शुक्रवार को अपना विरोध प्रदर्शन जारी रखे हुए हैं। जलवायु शिखर सम्मेलन के पहले 20 सितंबर को हुए प्रदर्शन में भी आरूष शामिल हुए। इस प्रदर्शन में 50 से भी अधिक बच्चे शामिल हुए थे।

राज एक्सप्रेस से फोन पर बात करते हुए आरूष कहते हैं कि, जब भी भविष्य की बात होती है तो आप चिंता में आ जाते हैं और जिस तरह के पर्यावरण के हालात इस समय हैं, यह अपने आप में एक चिंता का विषय है। दुनिया का भविष्य खतरे में नज़र आ रहा है। बड़े लोग तो इसके लिए कुछ कर नहीं रहे हैं इसलिए हम बच्चों को ही कदम उठाना होगा।

"हर साल जहां एक तरफ गर्मी बढ़ती जा रही है, तो वहीं ठंड का तापमान भी बढ़ रहा है। जलवायु परिवर्तन कई लोगों की मौत का कारण है। हम अगर ये सोचते रहें कि हम सुरक्षित हैं तो ऐसा नहीं है, न ही यह इस समस्या का समाधान है।"

आरूष कुमार

आरूष बताते हैं कि उनके पहले प्रदर्शन के बाद नगर निगम के कमिश्नर ने उन्हें फोन कर बताया कि भोपाल शहर में प्लास्टिक कचरे को इकट्ठा कर रिसाइकल करने का काम किया जा रहा है। वे सवाल करते हैं कि, जवाब तो बहुत जल्द मिला लेकिन क्या ये बड़े स्तर पर हो रहा है? भोपाल शहर ही तो खाली पूरा देश या दुनिया नहीं है। भोपाल के इतर राज्य के बाकी शहरों और गांवों में क्या इसके लिए कुछ हो रहा है? हमारे देश में बाकी राज्यों के गांवों की क्या हालत है?

आरूष कुमार की माँ प्रीति खरे बताती हैं कि आरूष ग्रेटा थुनबर्ग को लगातार फॉलो करते हैं। लगभग दो साल पहले उन्होंने ग्रेटा थुनबर्ग का एक वीडियो देखा था। जिसमें स्वीडन नाम के एक देश में एक बच्ची अकेले संसद के सामने बैठ कर विरोध प्रदर्शन कर रही थी।

"ग्रेटा का वीडियो देखकर मुझे बड़ा अजीब लगा कि वो ये क्यों कर रही है पर बाद में मुझे एहसास हुआ कि वो सही है। उससे प्रेरणा लेकर ही मैं आगे आया हूँ। मैं चाहता हूँ कि हम केवल भोपाल या मध्यप्रदेश तक सीमित न रह जाएं। पूरे देश में व्यापक स्तर पर जलवायु परिवर्तन को लेकर काम किया जाना चाहिए।"

आरूष खरे

ग्रेटा थुनबर्ग शिखर सम्मेलन में दिए अपने भाषण को लेकर काफी लोकप्रिय हो रही हैं। न्यूयॉर्क स्थित संयुक्त राष्ट्र के मुख्यालय में 21 से 23 सितंबर 2019 तक जलवायु कार्रवाई शिखर सम्मेलन (Climate Action Summit) आयोजित हुआ। कार्यक्रम में ग्रेटा ने दुनिया की विभिन्न सरकारों से कहा कि, आप अब भी इतने समझदार नहीं हैं कि हमें जो स्थिति है वो सही-सही बता सकें। आप हमें पराजित कर रहे हैं पर युवा लोग आपके विश्वासघात को समझने लगे हैं। भविष्य की पीढ़ियों की नज़र आपके ऊपर है। अगर आप हमें निराश करते हैं तो हम आपको कभी माफ नहीं करेंगे।

“ये सब गलत है। मुझे यहां नहीं होना चाहिए था। मुझे समुद्र के उस पार अपने विद्यालय में होना चाहिए था। फिर भी आप सब लोग मेरे पास उम्मीद लेकर आए हैं? हिम्मत कैसे हुई आपकी! आपने अपने खोखले शब्दों से मेरे सपने, मेरा बचपन छीन लिया। फिर भी मैं सौभाग्यशाली हूं। लोग परेशानी में हैं। कई लोग मर रहे हैं। सम्पूर्ण पर्यावरण बर्बाद हो रहा है। हम बड़े पैमाने पर विलुप्त होने की शुरूआत में हैं और आपके पास बात करने के लिए केवल धन और आर्थिक विकास की परिकथाएँ हैं। हिम्मत कैसे हुई आपकी?”

ग्रेटा थुनबर्ग, जलवायु परिवर्तन कार्यकर्ता

ग्रेटा के दिए बयान के समर्थन में प्रियंका चोपड़ा ने इंस्टाग्राम पोस्ट किया। उन्होंने लिखा, शुक्रिया ग्रेटा, हमें आईना दिखाने के लिए।

क्रिकेटर रोहित शर्मा ने भी ग्रेटा थुनबर्ग को प्रेरणा बताते हुए एक ट्वीट किया। उन्होंने लिखा कि, हमारी धरती को बचाने की जिम्मेदारी बच्चों पर छोड़ना अनुचित है। अब कोई बहाना नहीं है। आने वाली पीढ़ियों के लिए धरती को सुरक्षित बनाना हमारी ज़िम्मेदारी है। ये बदलाव का समय है।

ग्रेटा थुनबर्ग ने साल 2018 में स्वीडिश संसद के सामने विरोध प्रदर्शन किया था। तब वे महज़ 15 साल की थीं। वे एक शुक्रवार विद्यालय न जाकर संसद के सामने विरोध प्रदर्शन करने पहुंचीं। इसके बाद कई विद्यार्थी ग्रेटा के इस आंदोलन में शामिल हुए। Fridays for Future नाम से उन्होंने हर शुक्रवार प्रदर्शन करना शुरू किया। इस ही साल संयुक्त राष्ट्र के जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में ग्रेटा के भाषण के बाद दुनिया भर में इस आंदोलन की पैठ बढ़ी।

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