आर्थिक बाधाओं को लांघकर एशिया-ओशियानिया चैंपियनशिप के लिये रवाना हुई कोर्फबॉल टीम
नई दिल्ली। भारतीय कोर्फबॉल टीम आर्थिक बाधाओं को पार करते हुए एशिया-ओशियानिया कोर्फबॉल चैंपियनशिप में हिस्सा लेने के लिये गुरुवार को थाईलैंड रवाना हो गई है। यह चैंपियनशिप 28 नवंबर से शुरु होगी और इसमें 12 टीमें हिस्सा ले रही हैं। ग्रुप-ए में भारत, मलेशिया, थाईलैंड, जापान, ऑस्ट्रेलिया और चीनी ताइपे हैं, हालांकि भारत को चैंपियनशिप में पहुंचने से पहले कई चुनौतियों से गुजरना पड़ा। भारतीय कोर्फबॉल टीम के कोच राजेश कुमार सैनी ने यूनीवार्ता को बताया कि खिलाड़ियों को राज्यों की ओर से सुविधा नहीं मिलना इस तरह की बहुराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भारत के सामने सबसे बड़ा संघर्ष होता है। भारतीय कोर्फबॉल संघ प्रतियोगिताओं में जाने के लिये टीम को तैयार करता है, लेकिन राज्य स्तर पर उनके लिये कोई ठोस योजना मौजूद नहीं है। एशिया-ओशियानिया चैंपियनशिप में भारत पांच में से चार बार तीसरे स्थान पर रह चुका है।
सैनी ने बताया कि दूसरी टीमों से खेलने के कम अवसर मिलने के कारण भारत के पास बड़े मैचों में प्रदर्शन का अनुभव नहीं है। उन्होंने कहा, “अन्य देश आपस में चैंपियनशिप आयोजित करते हैं। हमारे पास इतने संसाधन या प्रायोजक नहीं हैं कि हम हर दूसरे महीने हॉलैंड जायें, या किसी क्लब को भारत बुलायें। खिलाड़ियों को यह सुविधा न मिलना (नॉकआउट मुकाबलों में हार का) सबसे बड़ा कारण है।” उन्होंने कहा, “हमें इसी महीने छह तारीख को हॉलैंड के लिये निमंत्रण आया था। वहां के क्लब ने प्रतियोगिता का आयोजन किया था, लेकिन हम यात्रा का खर्च वहन नहीं कर सकते थे।” चार महिलाओं और चार पुरुषों से बनी एक कोर्फबॉल टीम बास्केटबॉल की तरह ही विपक्षी खेमे के बास्केट में बॉल डालने का प्रयास करती है। कोर्फबॉल एक रोमांचक खेल है, लेकिन भारत में इसकी लोकप्रियता न होने के कारण राष्ट्रीय टीम को प्रायोजक मिलना मुश्किल है। ऐसे में खिलाड़ियों के लिये अच्छी गुणवत्ता की डाइट, प्रशिक्षण, बॉल, जूते आदि हासिल करना बड़ा सिरदर्द है। भारतीय कोर्फबॉल टीम के कप्तान नितेश ने बताया कि वह जिस बॉल से अभ्यास करते हैं उसकी कीमत 300 से 400 रुपये के बीच है, जबकि अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में प्रयोग होने वाली बॉल की कीमत 3000-4000 रुपये है, जिसे एक आम खिलाड़ी नहीं खरीद सकता। इस सबके बावजूद हरियाणा से आने वाले नितेश का मानना है कि उनकी टीम एशिया-ओशियानिया चैंपियनशिप में पदक जीतकर लायेगी। भारतीय टीम की उपकप्तान बलविंदर कौर भी नितेश के हौसले से इत्तेफाक रखती हैं। हिमाचल प्रदेश की रहने वाली बलविंदर 2004 से 2011 तक बास्केटबॉल खेलती थीं, लेकिन 2015 में उन्होंने कोर्फबॉल का दामन थाम लिया। हिमाचल के पहाड़ी क्षेत्र में सुविधाओं के अभाव के कारण बलविंदर के लिये राष्ट्रीय टीम तक पहुंचने का रास्ता मुश्किल था, लेकिन उन्होंने अपनी मेहनत से यहां तक का सफर तय कर लिया।
बलविंदर ने कहा, “वहां (हिमाचल) में सुविधाएं ज्यादा नहीं हैं। वहां अभ्यास के लिये बहतु कम मैदान हैं, जो एक-दो इंडोर स्टेडियम हैं वहां भी अभ्यास की अनुमति नहीं मिलती।” उन्होंने कहा, “मैं अपना खेल बेहतर करने के लिये ज्यादा मेहनत करती थी। रविवार को जब सभी खिलाड़ी आराम करते थे, तब मैं जिम में समय बिताती थी। अपनी क्षमता बढ़ाने के लिये हम रोज़ सुबह 15 किमी दौड़ा करते थे। हम जब राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में देखते थे कि अन्य खिलाड़ी किस तरह तैयारी कर रहे हैं, तो हम उन्हें देखकर अपनी योजनाएं बनाते थे।” राष्ट्रीय चैंपियनशिप में सबसे ज्यादा स्कोर करने वाली बलविंदर ने कहा कि वह टीम की विशेष शूटर हैं और देश के लिए इस बार पदक जीतने के लक्ष्य के साथ थाईलैंड जा रही हैं। कोच सैनी ने भी पदक के लक्ष्य के साथ चैंपियनशिप में जाने की बात कही। उन्होंने कहा कि भारतीय कोर्फबॉल संघ ने पिछले आयोजनों से सबक लिये हैं और इस बार वह पहले से बेहतर प्रदर्शन का पूरा प्रयास करेंगे। सैनी ने कहा, “पहले खेल 40 मिनट का होता था, अब इसे 10-10 मिनट के चार क्वार्टर में बांट दिया गया है। हमने अपने खिलाड़ियों को इन 10 मिनट के सत्रों में अपना शत-प्रतिशत देने के लिये तैयार किया है। इसके अलावा शूटिंग, देर तक खेलने की क्षमता आदि पर काम किया गया है।” उन्होंने कहा, “भारतीय कोर्फबॉल फेडरेशन ने सभी खिलाड़ियों को बास्केट और बॉल मुफ्त मुहैया करवाये हैं। हमने क्षेत्रीय प्रतियोगिताओं का आयोजन करके देश भर से अच्छे खिलाड़ी चुने हैं। हम इस चैंपियनशिप में पदक के लिये खेलेंगे। पूरी टीम ने फाइनल खेलने का लक्ष्य बनाया है। चीन, ऑस्ट्रेलिया और चीनी ताइपे मजबूत टीमें हैं, लेकिन हम इनके लिये तैयार हैं।”
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