हाइलाइट्स –
यूएसए पर हमले का खामियाजा!
अल-कायदा ने बनाया था निशाना
ओसामा बिन लादेन था मास्टर माइंड
राज एक्सप्रेस (Raj Express)। अफगानिस्तान से नाटो और अमेरिका की सेना ने अहम डील के बाद वतन वापसी की शुरूआत की तो यहां तालिबान ने फिर तेजी से पैर जमा लिये।
9/11 से लेकर जमीन पर हुई भीषण लड़ाई तक, और अब अमेरिकी नेतृत्व वाली सेना की पूरी वापसी तक, यहां क्या हुआ?
11 सितंबर 2001
अफगानिस्तान से ओसामा बिन लादेन के नेतृत्व में अल-कायदा ने अमेरिकी धरती पर अब तक के सबसे बड़े आतंकी हमले को अंजाम दिया। हमले के कारण वर्ल्ड ट्रेड सेंटर मलबे में दब गया।
इस आतंकी घटना में चार वाणिज्यिक विमानों को कब्जे में ले लिया गया। दो की न्यूयॉर्क के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर से टक्कर हुई इसमें इमारत ढह गई।
एक विमान वाशिंगटन में पेंटागन की इमारत से टकराता है, जबकि एक विमान पेंसिल्वेनिया के एक खेत में दुर्घटनाग्रस्त हो गया। इस दिल दहला देने वाले हादसे में लगभग 3,000 लोग मारे गए।
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पहली बार एयर स्ट्राइक्स -
7 अक्टूबर 2001 - अमेरिका के नेतृत्व वाले गठबंधन ने अफगानिस्तान में तालिबान और अल-कायदा के ठिकानों पर बमबारी की। इस बमबारी का लक्ष्य काबुल, कंधार और जलालाबाद रहे।
एक दशक लंबे सोवियत कब्जे के बाद सत्ता संभालने वाले तालिबान ने गृहयुद्ध के बाद बिन लादेन को सौंपने से इनकार कर दिया। इसके बाद उनके हवाई सुरक्षा और लड़ाकू विमानों के छोटे बेड़े नष्ट कर दिये गए।
काबुल में पतन -
13 नवंबर 2001 - गठबंधन बलों द्वारा समर्थित तालिबान विरोधी विद्रोहियों के एक समूह नॉर्दर्न एलायंस ने काबुल में प्रवेश किया। इस आमद से तालिबानी शहर से भाग निकले।
13 नवंबर 2001 तक, सभी तालिबानी या तो भाग गए या निष्प्रभावी हो गए। एक तरह से अधिकांश ने जल्द शहर छोड़ दिया।
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नया संविधान -
26 जनवरी 2004- "लोया जिरगा" या भव्य सभा में लंबी बातचीत के बाद, नए अफगान संविधान कानून पर हस्ताक्षर किए गए। संविधान ने अक्टूबर 2004 में राष्ट्रपति चुनाव का मार्ग प्रशस्त किया।
हामिद करजई बने राष्ट्रपति -
7 दिसंबर 2004 में राष्ट्रपति बनने से पहले हामिद करजई ने कंधार के आसपास तालिबान विरोधी समूहों का नेतृत्व किया।
पोपलजई दुर्रानी जनजाति (Popalzai Durrani tribe) के नेता हामिद करजई नए संविधान के तहत पहले राष्ट्रपति बने। उन्होंने राष्ट्रपति के रूप में पांच साल के दो कार्यकाल पूर्ण किये।
यूके ट्रूप हेलमंड में तैनात
मई 2006 में ब्रिटिश सैनिक देश के दक्षिण में तालिबान के गढ़ हेलमंड प्रांत पहुंचे। पैराशूट रेजिमेंट के सैनिकों ने हेलमंड में ब्रिटेन की पहली तैनाती का नेतृत्व किया।
उनका प्रारंभिक मिशन पुनर्निर्माण परियोजनाओं का समर्थन करना था। हालांकि, वे जल्द ही लड़ाकू अभियानों में शामिल हो गए।
बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक संघर्ष के दौरान अफगानिस्तान में 450 से अधिक ब्रिटिश सैनिकों की जान चली गई।
ओबामा का सर्ज
17 फरवरी 2009- अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने अफगानिस्तान भेजे गए सैनिकों की संख्या में बड़ी वृद्धि को मंजूरी दी। एक समय अपने चरम पर, उनकी संख्या लगभग 140,000 रही।
यह "उछाल" इराक में अमेरिकी रणनीति पर आधारित रही। इसमें अमेरिकी सेना ने नागरिक आबादी की रक्षा के साथ-साथ विद्रोही लड़ाकों को मारने पर ध्यान केंद्रित किया।
ओसामा बिन लादेन मारा गया -
2 मई 2011 - बिन लादेन का पता एक पाकिस्तानी सैन्य अकादमी से एक मील से भी कम दूरी पर स्थित एक परिसर में लगाया गया।
इसके बाद अल-कायदा का सरगना पाकिस्तान के एबटाबाद में एक परिसर में अमेरिकी नौसेना के जवानों के हमले में मारा गया।
बिन लादेन के शव को समुद्र में दफना दिया गया। इसी तरह सीआईए (CIA) के नेतृत्व में 10 साल चले ऑपरेशन का भी अंत हुआ।
बिन लादेन के पाकिस्तान की जमीन पर रहने की बात की पुष्टि ने आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में पाकिस्तान की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े किये।
मुल्ला उमर की मौत -
23 अप्रैल 2013 - तालिबान के संस्थापक मुल्ला मोहम्मद उमर (Mullah Mohammed Omar) की मौत हो गई। इस जानकारी को दो साल से अधिक समय तक गुप्त रखा गया। माना जाता है कि 1980 के दशक में तालिबान नेता की दाहिनी आंख में घाव हो गया था।
अफगान की खुफिया जानकारी के अनुसार, पाकिस्तान के शहर कराची के एक अस्पताल में स्वास्थ्य समस्याओं के कारण मुल्ला उमर की मौत हो गई। इस बात से पाकिस्तान हमेशा इनकार करता रहा कि मुल्ला उमर उसके देश में है।
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नाटो का युद्ध अभियान समाप्त -
28 दिसंबर 2014 - काबुल में एक समारोह में, नाटो ने अफगानिस्तान में अपने युद्ध अभियान को समाप्त कर दिया। अमेरिका के भी हजारों सैनिकों की वतन वापसी हुई।
तालिबान की सुगबुगाहट -
साल 2015 में तालिबान ने आत्मघाती हमलों, कार बम विस्फोटों और अन्य हमलों की एक श्रृंखला शुरू कर दी।
काबुल (Kabul) में संसद भवन और कुंदुज (Kunduz) शहर पर हमला किया गया। इतना ही नहीं इस्लामिक स्टेट के आतंकवादियों ने अफगानिस्तान में अभियान शुरू कर दिया। इस कारण 10 अगस्त 2015 को काबुल का अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा बंद करना पड़ा।
मृतक संख्या जारी -
25 जनवरी 2019 - अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी का कहना है कि 2014 में उनके नेता बनने के बाद से उनके देश के सुरक्षा बलों के 45,000 से अधिक सदस्य मारे गए हैं। यह आंकड़ा पहले की तुलना में कहीं अधिक है।
डिस्क्लेमर – आर्टिकल प्रचलित रिपोर्ट्स पर आधारित है। इसमें शीर्षक-उप शीर्षक और संबंधित अतिरिक्त प्रचलित जानकारी जोड़ी गई हैं। इस आर्टिकल में प्रकाशित तथ्यों की जिम्मेदारी राज एक्सप्रेस की नहीं होगी।
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