समय की मांग है हेट स्पीच पर लगाम
समय की मांग है हेट स्पीच पर लगामRaj Express

समय की मांग है हेट स्पीच पर लगाम

सुप्रीम कोर्ट ने हेट स्पीच को लेकर चेताया था कि हेट स्पीच की नाव के सहारे चुनावी नैय्या पार लगाने और देश की भोलीभाली जनता को बहकाना भारत जैसे राष्ट्र के हित में कतई नहीं है।
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हाइलाइट्स :

  • सर्वोच्च न्यायालय ने नफरत फैलाने वाले भाषणों को गंभीर अपराध बताया है।

  • हेट स्पीच के बढ़ते मामलों को देखते हुए इस पर सख्ती से लगाम लगाना जरूरी है।

  • 2014 में केवल 323 मामले दर्ज किये गए थे, जो वर्ष 2020 में बढ़कर 1804 हो गये।

राज एक्सप्रेस। मणिपुर हिंसा से सबक लेते हुए राजनीतिक दलों और राजनेताओं का दायित्व है कि पांच राज्यों में होन जा रहे विधानसभा चुनाव में हेट स्पीच और बिगड़े बोल को लेकर काफी हद तक सतर्कता बरतें। गौरतलब है कि कुछ दिनों पहले ही सुप्रीम कोर्ट ने हेट स्पीच को लेकर एक बार फिर चेताया था कि हेट स्पीच की नाव के सहारे चुनावी नैय्या पार लगाने और देश की भोलीभाली जनता को बहकाना भारत जैसे राष्ट्र के हित में कतई नहीं है। सर्वोच्च न्यायालय ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को नफरती भाषण देने वालों के खिलाफ मामला दर्ज करने के निर्देश दिया था। सर्वोच्च न्यायालय ने नफरत फैलाने वाले भाषणों को गंभीर अपराध बताया है जो देश के धार्मिक ताने-बाने को नुकसान पहुंचा सकते हैं। हेट स्पीच को मुख्य रूप से नस्ल, जातीयता, लिंग, यौन, धार्मिक विश्वास आदि के खिलाफ नफरत को भड़काने के रूप में देखा गया है। भारतीय संविधान ने अनुच्छेद-19 के तहत प्रत्येक भारतीय को अपनी बात कहने की आजादी तो दी है साथ ही देश की एकता, अखंडता व शांति भंग करने वाले बयानों पर पाबंदी भी लगाई है।

समय-समय पर इन कानूनों का उपयोग और दुरुपयोग दोनों की चर्चा होती रहती है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार समाज में हेट स्पीच को बढ़ावा देने और असहिष्णुता को बढ़ावा देने वाले दर्ज मामलों में भारी वृद्धि हुई है। 2014 में केवल 323 मामले दर्ज किये गए थे, जो वर्ष 2020 में बढ़कर 1804 हो गये। हेट स्पीच के बढ़ते मामलों को देखते हुए इस पर सख्ती से लगाम लगाना जरूरी है। पिछले कुछ सालों की राजनीति पर गौर करें तो धार्मिक भावनाओं को भड़काने वाली स्पीच के मामले बढ़े हैं। खासतौर से वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में तो महंगाई, बेरोजगारी, आर्थिक, समाजिक विकास जैसे मुद्दे पूरी तरह से गायब दिखने लगे हैं। हमें उम्मीद करनी चाहिए कि सर्वोच्च न्यायालय का निर्देश शायद नेताओं की बेलगाम होती जुबान पर कुछ हद तक लगाम लगाने में कामयाब होगा और नेता धर्म के नाम पर नहीं कर्म के नाम पर वोट मांगते नजर आएंगे।

मणिपुर की सामुदायिक हिंसा, आगजनी और मानवता को शर्मिंदा करने वाले आपराधिक कृत्य के बाद हमारे राजनेताओं का दायित्व है कि वह क्षणिक लोकप्रियता या तालियों की गड़गड़ाहट के लिए कोई भी ऐसी बयानबाजी न करें जिससे दुनिया में भारत की धर्म निरपेक्ष छवि को आघात पहुंचे। वैसे भी हेट स्पीच के बढ़ते मामलों के चलते अल्पसंख्यक व बहुसंख्यक के बीच खाई पटने की जगह बढ़ रही है। ऐसे में यह विचारणीय है कि क्या सच में कोई भारत के सामाजिक तानेबाने को विघटित करने की कोशिश कर रहा है। क्या कोई देश में नफरत की खेती कर रहा है या सांप्रदायिकता का जहरीला पौधा अपने आप उग आया है। आज के तकनीक के दौर में यदि राजनीतिक दल और नेता इमानदारी से सजग हो जाएं तो निश्चित रूप से विविधता में एकता की हमारी संस्कृति की मूल भावना कभी विघटित नहीं होगी।

हालांकि बहुदलीय लोकतांत्रिक व्यवस्था वाले देश में यह इतना आसान नहीं, लेकिन राजनीतिक पार्टियों को यह समझ लेना चाहिए कि सांप्रदायिकता भारत के राष्ट्रीय एकीकरण की दिशा में सबसे बड़ी बाधा है। राजनीतिक पार्टियां वाकई में देश को एकता के सूत्र में बांधना चाहती हैं तो सभी को वैचारिक मतभेद भुलाकर एक मंच पर ना केवल आना होगा, बल्कि धर्म, जाति को राजनीति से दूर रखने के लिए कुछ अंकुश स्वयं पर लगाने होंगे। साथ ही संविधान की रक्षा के लिए धर्म की आड़ में साम्प्रदायिक सद्भाव को खराब करने का प्रयास करने वालों पर ईमानदारी से कानून का डंडा चलाना होगा। संविधान के संघीय ढांचे के अनुसार कानून और व्यवस्था राज्य सरकार का अधिकार क्षेत्र है। ऐसे में जरा सोचिए, अगर राज्य सरकारें कानून और व्यवस्था को निष्पक्ष तरीके से कायम रखने के अपने दायित्व का पालन करें तो हेट स्पीच के चलते देश की फिजा को खराब होने से काफी हद तक बचाया जा सकता है। पिछले दिनों सर्वोच्च न्यायालय ने अपने निर्देश में साफ-साफ संदेश दिया है कि सांप्रदायिकता का अंधेरा तभी दूर हो सकता है जब राजनेता समाज में सद्भावना का दीपक जलाये रखने में मददगार बने। सरकार को चाहिए कि वह राजनेताओं से शांति, अहिंसा, धर्मनिरपेक्षता और मानवतावाद के मूल्यों को प्रचारित करने वाले भाषणों की ही इजाजत दे।

अगर देश को वास्तव में एक सूत्र में पिरोना है तो धर्म को राजनीति से अलग करना ही होगा। दुनिया में भारत की पहचान धार्मिक और सांस्कृतिक विविधता की है और हमें अपनी पहचान नहीं खोनी चाहिए। प्राचीन भारत की बात करें तो विभिन्न धर्मों के लोग यहां शांतिपूर्वक एक साथ रहते थे। बुद्ध पहले भारतीय थे जिन्होंने धर्मनिरपेक्षता का विचार दिया था। इसके बाद अशोक जैसे राजाओं या नेताओं ने धार्मिक सहिष्णुता का पालन किया। रामचरित मानस की एक चौपाई परहित सरिस धर्म नहीं भाई...अर्थात इंसानियत से बड़ा कोई धर्म नहीं है। भारतीय संविधान ने भी काफी हद तक इसी विचार को अंगीकार किया है। जहां विभिन्न धर्मों के प्रति आदर और सम्मान का भाव रखा गया है। लेकिन वर्तमान में विभिन्न मुद्दों से जनता का ध्यान हटाने और खुद की नाकामियों को छुपाने राजनेता हैट स्पीच की आड़ ले रहे हैं, जिससे दुनिया में न केवल धर्म निरपेक्ष राष्ट्र की हमारी छवि धूमिल हो रही है, बल्कि देश की अस्मिता पर भी खतरा पैदा हो रहा है।

भारतीय संविधान ने लोकतंत्र के माध्यम से जनता के शासन को मान्यता तो दी है, साथ ही यह प्रावधान भी किया है कि जनता सांप्रदायवाद, जातिवाद, दबाव समूह, क्षेत्रवाद की भावना से ऊपर उठकर अपने मत का प्रयोग करते हुए जनप्रतिनिधि चुने और यदि कोई धार्मिक, जातिगत टिप्पणी करके किसी धर्म विशेष को मानने वालों की भावनाओं को भड़काने का कार्य करता है तो उसे विधि अनुसार सजा का प्रावधान भी भारतीय संविधान में किया गया है। आने वाले महीनों में पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में चुनावी समर में एक बार फिर नेताओं की जुबान फिसलने और बिगड़े बोल का बोलबाला रहेगा। साल 2023 एक बार फिर चुनावी मैदान में हमारे देश के कर्णधार विजयी पताखा फहराने के लिए साम, दाम, दंड, भेद की राजनीति में न केवल एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाते नजर आएंगे, बल्कि जोर-जोर से चिल्ला-चिल्लाकर तब तक झूठ बोलेंगे, जब तक की जनता उन्हें सच न मान ले। चुनावी रणभेरी में हमारे नेताओं का सिर्फ एक ही लक्ष्य होता है, किसी भी कीमत पर विजयी सेहरा बांधना।

चुनावों में हर कोई नियम भंग करते हुए जमकर बिगड़े बोल बोलता नजर आएगा और हेट स्पीच के सहारे बड़ी चालाकी से जनता का ध्यान जमीनी मुद्दों से भटकाने का काम करेगा। इन देश के कर्णधारों पर सुप्रीम कोर्ट की हेट स्पीच को लेकर गाइडलाइन भी लगाम लगाने में नाकाम रहती है। वास्तव में चुनावी मैदान में हर पार्टी के नेता लोकलाज को भूलकर अपनी मर्यादा को लांघने के लिए उतारू हो जाते हैं। ठीक वैसे ही जैसे कुरुक्षेत्र युद्ध में कौरव और पांडवों ने भीष्म पितामह द्वारा बनाए गए युद्ध नियमों को तार-तार करते हुए मनमर्जी से युद्ध लड़ा। पिछले कुछ सालों से भारतीय लोकतंत्र में चुनाव आते-आते नेताओं का हाल भी कुछ ऐसा ही हो जाता है, जहां वे संविधान द्वारा निर्धारित नीतियों और मर्यादों, राजनीतिक सुचिता और नैतिकता की बली देकर सत्ता का स्वाद चखने के लिए आतुर दिखाई देते हैं। लेकिन इस बार मणिपुर की हिस्सा और सर्वोच्च न्यायालय के हालिया निर्देश को ध्यान में रखते हुए पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में हेट स्पीच और सामप्रदायिक सौहाद्रपूर्ण वातावरण को बिगड़ने वाले बयानों से बचकर सही मायने में लोकतांत्रिक मूल्यों को ध्यान में रखकर राजनीतिक दल चुनाव लड़ेंगे। सर्वोच्च न्यायालय के हालिया निर्देश को ध्यान में रखते हुए हेट स्पीच और सामप्रदायिक सौहाद्र्रपूर्ण वातावरण को बिगड़ने वाले बयानों से बचकर लोकतांत्रिक मूल्यों को ध्यान में रखकर राजनीतिक दल चुनाव लड़ेंगे। हेट स्पीच पर लगाम इसलिए भी जरूरी है क्योंकि इससे न सिर्फ देश का सामाजिक तानाबाना बिखर जाता है, बल्कि कभी न खत्म होने वाली कटुता जन्म ले लेती है।

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