कहानी मणिपुर की
कहानी मणिपुर कीSyed Dabeer Hussain - RE

कहानी मणिपुर की : जंगल, जमीन और आरक्षण (अध्याय 2)

कहानी मणिपुर की : मणिपुर को लेकर हमारे 4 भाग लेख का यह दूसरा अध्याय उन तीन कारणों पर रोशनी डालने का काम करेगा जिसकी वजह से भारत का मणि राज्य आज हिंसा की आग में जल रहा है।
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हाइलाइट्स :

  • हिंसा की आग में आज भी जल रहा भारत का 'मणि राज्य'

  • इस अध्याय में देखने मिलेंगे 'मुख्य तीन कारण'

  • राज्य सरकार का सस्पेंशन ऑफ ऑपरेशन समझौते से पीछे हटना

  • मणिपुर सरकार का निष्कासन अभियान

  • मणिपुर उच्च न्यायालय का निर्णय

राज एक्सप्रेस। मणिपुर को लेकर हमारे 4 भाग लेख का यह दूसरा अध्याय उन तीन कारण पर रोशनी डालने का काम करेगा जिसकी वजह से भारत का मणि राज्य आज हिंसा की आग में जल रहा है (Manipur Violence)। अगर संक्षेप में बताएं तो इसके तीन कारण है 'जंगल, जमीन और आरक्षण' (Forest, Land and Reservation)। इन तीनों ही कारणों को विस्तृत में जानने से पहले यह जानना बहुत जरूरी है कि, कैसी है मणिपुर की जनांकिकी?और आखिर क्या है इन दंगो की जड़।

मणिपुर की जनसंख्या:

मणिपुर भारत का विशिष्ट पूर्वी राज्य है जो म्यांमार देश (Myanmar) से लगभग 400 किलोमीटर की सीमा साझा करता है। 2011 की जनगणना के हिसाब से मणिपुर की जनसंख्या 27 लाख 21 हज़ार है, जिसमे से 60% से ज्यादा मैतेई और 30% कुकी है। मैतेई,हिंदू बहुल समाज है, जिसमे से कुछ ईसाई धर्म को भी मानते है। वही कुकी, समाज में ईसाई धर्म को मुख्य रूप से मानते है जिसमे से कुछ इस्लाम धर्म को भी मानने वाले भी है। मणिपुर राज्य 2 हिस्सों में बंटा है, पहला पहाड़ी और दूसरा घाटी। मणिपुर का 90% हिस्सा पहाड़ी क्षेत्र है, जहां 30% कुकी वास करते है। वही, बाकी बचा 10% हिस्सा घाटी है जिसमें 60% मैतेई रहते है। मणिपुर की राजनीति में सबसे ज्यादा दबदबा मैतेई समाज का है। राज्य की 60 विधानसभा सीटों (Manipur Assembly) में से 40 सीट मैतेई समाज के लोगों ने जीती है। वहीं, बाकी बची 20 सीटें एसटी आरक्षित (ST Reserved) है।

राज्य सरकार का सस्पेंशन ऑफ ऑपरेशन समझौते से पीछे हटना (जंगल) :

राज्य में हो रही इस हिंसा की नीव सबसे पहले मार्च 2023 में रखी गई थी। जब मणिपुर की सरकार ने त्रिपक्षीय सस्पेंशन ऑफ ऑपरेशन (SoO) समझौते से अपना हाथ वापिस खींच लिया था। यह समझौता केंद्र सरकार, मणिपुर सरकार और कुकी समुदाय के उग्रवादी ग्रुप यूनाइटेड पीपुल्स फ्रंट (UPF) और कुकी नेशनल ऑर्गनाइजेशन (KNO) के बीच हुए था। यह समझौता साल 2008 में मणिपुर के कुकी समुदाय वाले विद्रोही समूहों से राजनीतिक बातचीत करने और शांति स्थापित करने के लिएं किया गया था जिसकी कुशल कार्यान्वयन की निगरानी के लिए जॉइंट मॉनिटोरिन ग्रुप (JMG) का भी गठन किया गया था। इस समझौते के अंतर्गत, राज्य में सक्रिय 32 में से 25 कुकी विद्रोह समूह आते थे। इस समझौते की अवधि एक वर्ष की था जिसे हर वर्ष बढ़ाया जाता था।

इस समझौते के अंतर्गत 25 कुकी समुदाय के उग्रवादी संगठनों को भारत के संविधान (Constitution of India), भारतीय भूमि कानून (Indian land law) और मणिपुर की क्षेत्रीय अखंडता का पालन करना होता है। इस समझौते के बारे में म विस्तार में आपको अगले भाग में बताएंगे लेकिन अभी के लिए बस यह जानना जरूरी है कि इस समझौते की वजह से मैतेई समाज और कुकी समाज दोनो के बीच की दूरियां बढ़ी है। एक तरफ मैतेई लोग इस समझौते को रद्द करना चाहते है क्योंकि उनके अनुसार, समझौते ने उग्रवादी संगठनों को मजबूत करने के लिए अनुकूल माहौल बनाया है। वह अपने शिविरों में भाषा और युद्ध प्रशिक्षण (Combat Training) के साथ-साथ पोस्ता की खेती (Poppy Cultivation), हथियार चलाने और नशीली दवाओं की तस्करी (Drug-Trafficking) के लिए अवैध अप्रवासियों (Illegal Immigrants) को श्रम शक्ति के रूप में उपयोग करते हैं।

मैतेई समाज का यह भी मानना है कि कुकी उग्रवादी म्यांमार से अवैध प्रवास के लिए भी जिम्मेदार है जिसकी वजह से मणिपुर में अलगाववाद (Separatism) की स्थिति पैदा होती रहती हैं। वहीं दूसरी तरफ कुकी लोगों के लिए यह समझौता इसलिए जरूरी है क्योंकि समझौते पर ऐसे माहौल को बढ़ावा देने के लिए हस्ताक्षर किए गए थे जो कुकी समुदाय से संबंधित सभी राजनीतिक मुद्दों को हल करने के लिए राजनीतिक बातचीत की अनुमति देगा और इससे राज्य में शांति भी स्थापित हुई है। लेकिन मैतेई लोगो की मांग पर मणिपुर सरकार इस समझौते से पीछे हट गई। इस घटना के बाद से ही मणिपुर में बिरेन सिंह की सरकार (CM N.Biren Singh) का विरोध शुरू हो गया और राज्य में तनाव बढ़ने लगा।

मणिपुर सरकार का निष्कासन अभियान (जमीन) :

मणिपुर की बिरेन सिंह सरकार ने फरवरी माह में एक अभियान चलाया था जिसके तहत राज्य के जंगल और पहाड़ियों को बचाने एवं पोस्ता की अवैध खेती को रोकने के लिए निष्कासन अभियान की शुरुआत की थी। जैसा की लेख की शुरआत में बताया गया था कि कुकी समुदाय मणिपुर के जंगल और पहाड़ियों में ही वास करते है। राज्य सरकार के इस अभियान विरोध में कुकी विद्यार्थी संघ (Kuki Student Union) और जोमी विद्यार्थी महासंघ (Zomi Student Federation) ने एक शांतिपूर्ण प्रदर्शन किया था और चुराचंदपुर जिले (Churachandpur District) में 8 घंटे का बंद का ऐलान किया था हालांकि, यह शांतिपूर्ण प्रदर्शन अचानक उग्र हो गया और सीएम बिरेन सिंह की रैली में तोड़फोड़ के साथ ही वह जिस जिम का उद्घाटन करने का रहे थे उसे भी प्रदर्शनकारियों ने क्षति पहुंचाई थी। चुराचंदपुर जिले के कुछ इलाकों में पुलिसकर्मियों और प्रदर्शनकारियों के बीच झड़प भी देखी गई थी।

राज्य सरकार ने इस प्रदर्शन को अवैध घोषित करते हुए बताया कि जो भी अभियान चलाया गया है वह संरक्षित वन भूमि (Protected Forest Land) के एक भूमि सर्वेक्षण और सारे नियमों के हिसाब से किया जा रहा हैं l स्थानीय मीडिया के अनुसार, अब तक इस अभियान में 280 से ज्यादा गांव को हटाया जा चुका हैं। इस मुद्दे पर केंद्रीय वन मंत्री भूपेंद्र यादव (Union Forest Minister Bhupendra Yadav) ने भी अप्रैल में कहा था कि ''वन भूमि का स्वामित्व हमेशा राज्य का होता है। वन अधिनियम 1927 के अनुसार, आजादी के बाद जंगल राज्य का विषय था लेकिन 1976 में संशोधन के बाद इसे समवर्ती केंद्र और राज्य सूची में शामिल कर दिया गया था।"

मणिपुर सरकार के वन भूमि सर्वेक्षण (Manipur Government's Forest Land Survey) और बेदखली अभियान पर प्रतिक्रिया देते हुए केंद्रीय मंत्री ने कहा, ''सरकार नियम, कानून, और संविधान के अनुसार अपने कर्तव्यों का पालन कर रही है। इस घटना के बाद पूरे मणिपुर राज्य में आदिवासियों विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिए जिसमे आग में घी डालने का काम मणिपुर उच्च न्यायालय (Manipur High Court) के एक निर्णय ने किया।

मणिपुर उच्च न्यायालय का निर्णय (आरक्षण) :

27 मार्च को मणिपुर उच्च न्यायालय की कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश एमवी मुरलीधरन (Acting Chief Justice MV Muraleedharan) की पीठ ने मैतेई जनजाति संघ (Meitei ribal association), के कुछ सदस्यों द्वारा दायर एक याचिका की थी, जिसमें मणिपुर राज्य को मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल करने के लिए याचिकाकर्ताओं के मामले पर शीघ्रता से विचार करने का निर्देश दिया, और मैतेई को एसटी का दर्जा देने की मांग पर केंद्र के 2013 के पत्र पर राज्य सरकार से जवाब मांगा। मणिपुर उच्च न्यायालय का यह निर्णय राज्य की वर्तमान स्थिति का सबसे बड़ा कारण माना जा रहा है। मैतेई समाज में कुछ आई भी जाति है जिन्हे अनुसूचित जाति (Scheduled Castes)और अन्य पिछड़ा वर्ग (Other Backward Classes).दायरे में भी रखा गया है।

इसके बाद भी मैतेई समाज की साल 2013 से यह मांग थी कि उन्हे एसटी का दर्जा दिया जाए क्योंकि मणिपुर के भारत संघ में विलय करते समय से ही मैतेई जनजाति ने अपनी पहचान खो दी है और इसलिए, उक्त समुदाय को संरक्षित करने और पैतृक भूमि, परंपरा, संस्कृति और भाषा को बचाने के लिए मैतेई को मणिपुर की जनजातियों के बीच एक जनजाति के रूप में शामिल किया जाना चाहिए। वही, दूसरी तरफ कुकी समुदाय के संगठनों ने उच्च न्यायालय के इस निर्णय के बाद एकजुटता मार्च (Solidarity March) निकाला जिसके बाद से पहले चुराचंदपुर सभी कुकी बहुल सहित प्रदेश भर में हिंसा फैल गई। हिंसा फैल जाने के कुछ दिन बाद अनुच्छेद 355 (Article 355) का उपयोग करते हुए केंद्र सरकार ने राज्य की सुरक्षा अपने हाथ में ले ली थी।

राज्य में भारतीय सेना के साथ सीआरपीएफ के जवानों को हिंसा रोकने के लिए राज्य में तैनात किया गया हैं। बहरहाल, 18 मई को मुख्य न्यायाधीश जस्टिस चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने मणिपुर उच्च न्यायालय के निर्णय को तथ्यात्मक और संविधान के निर्धारित सिद्धांतो के खिलाफ है। कुकी समाज, उच्च न्यायालय के निर्णय को लेकर इसलिए आक्रोशित हुआ था क्योंकि उनके अनुसार, मैतेई समाज प्रदेश की हर सुख सुविधा का लाभ लेती चाहे वो राजनीतिक हो, कृषि भूमि हो या नौकरी हो और अगर मैतेई को एसटी का दर्जा मिल जाता है तो वह हमारी जमीनों पर भी कब्जा करने लगेंगे।

लगभग 4 महीने से चल रही इस हिंसा में सरकारी आंकड़ों के हिसाब से अब तक, 181 लोगों की जाने जा चुकी है, 60 हजार से ज्यादा लोग विस्थापित हो चुके है। वही, 400 से ज्यादा गिरजाघर और 17 से ज्यादा हिंदू मंदिरों को आग के हवाले कर दिया गया है। लेकिन इन दोनों समुदाय के बीच की यह नफरत और हिंसा कोई आज की नहीं बल्कि दो शताब्दी पुरानी है, जिसे हम तीसरे भाग में कवर करेंगे।

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