भारत में कोरोना की दूसरी लहर ने डरावने हालात बना दिए। स्थिति इतनी बदतर है कि बीते हफ्ते दुनिया में सबसे ज्यादा मामले अपने यहां मिले। दुनिया में हर दस में से छठा संक्रमित व्यक्ति भारत का है। आंकड़े देखें तो हफ्ते भर में देश में नौ लाख मरीज बढ़े। अचानक से साठ फीसद की बढ़ोतरी गंभीर खतरे का इशारा करती है। यह तब है जब देश में टीकाकरण का अभियान जोर-शोर के साथ चलने का दावा किया जा रहा है। पिछले साल जब महामारी ने दुनिया के ज्यादातर देशों को चपेट में लेना शुरू किया था तो अमेरिका और यूरोपीय देशों के मुकाबले भारत की स्थिति इतनी खराब नहीं थी। बचाव के रास्तों से संक्रमण को फैलने से रोक लिया था। लेकिन आज जिस तरह के हालात हैं, उसका एक बड़ा कारण भारत में लोगों और सरकारों की लापरवाही है। संक्रमितों की जांच से लेकर तमाम मामलों में सरकारों ने जैसी हीलाहवाली दिखाई, उससे तो स्थिति खतरनाक बननी ही थी। विशेषज्ञ चेताते रहे हैं कि कोरोना से बचाव के लिए मास्क, दो गज दूरी, बार-बार हाथ धोना और भीड़ से बचना सबसे ज्यादा जरूरी है।
भले ही किसी ने टीके की दोनों खुराक ले भी ली हों, तो भी बचाव के ये तरीके अपिरहार्य हैं, तभी संक्रमण का फैलाव रोका जा सकेगा। पर जिस तरह के नजारे भारत में देखने को मिल रहे हैं, वे हैरान करने वाले हैं। सबसे ज्यादा परेशान करने वाली तस्वीरें हरिद्वार और विधानसभा चुनाव वाले पांच राज्यों से सामने आईं। इन्हें देख कर कौन नहीं कहेगा कि हम खुद ही संक्रमण को गले लगा रहे हैं। हालांकि अब कुंभ खत्म होने का ऐलान हो चुका है, मगर यह सुपर स्प्रेडर का काम भी कर चुका है। गंगा स्नान की भीड़ ने संक्रमण प्रसार के लिए सबसे अनुकूल स्थितियां बना दी हैं। कोई संदेह नहीं कि कुंभ सदियों से चली आ रही आस्था से जुड़ा धार्मिक आयोजन है। लेकिन आज जब करोड़ों लोगों की जान पर बन आई है तो ऐसे में सरकारों का क्या फर्ज होना चाहिए था? इसी तरह चुनावों में संक्रमण से बचाव के नियमों का जो हाल हुआ, वह सबने देखा।
कोरोना के मारे सबसे बदहाल राज्यों से रोंगटे खड़े कर देने वाली तस्वीरें आ रही हैं। अस्पतालों के मुर्दाघरों और श्मशानों में लाशों के ढेर लगे हैं। अस्पतालों में भीड़ उमड़ रही है। एक-एक बिस्तर पर तीन-चार मरीज हैं। यहां तक कि अस्पतालों के बरामदे भी मरीजों से अटे पड़े हैं। रेमडेसिविर जैसी जरूरी दवा की कालाबाजारी हो रही है। भले लाखों लोगों की रोजाना जांच हो रही हो, लेकिन जिस कदर लोगों को जांच केंद्रों पर घंटों कतार में बिताने पड़ रहे हैं, वह व्यवस्था की नाकामी को बताने के लिए काफी है। दूसरी लहर से पैदा हालात बता रहे हैं कि हमने पिछले साल की घटनाओं से सबक नहीं लिया। होना यह चाहिए था कि बड़े और भीड़ खड़ी करने वाले आयोजनों पर शख्त पाबंदी रहती। संक्रमितों की जांच और इलाज का नेटवर्क मजबूत बनाया जाता। पर इन सब में हम नाकाम रहे।
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