सड़क हादसों की संख्या कम होनी जरूरी

क्यों नही देश में कम हो रही सड़क हादसों की संख्या? यातायात व्यवस्था जिम्मेदार है या नागरिक। देश इस बड़ी चुनौती से कैसे निपटेगा? यह सवाल है।
सड़क हादसों की संख्या कम होनी जरूरी
सड़क हादसों की संख्या कम होनी जरूरीSocial Media
Published on
Updated on
5 min read

राज एक्सप्रेस। राज्यसभा में सड़क हादसों पर जो तस्वीर सामने रखी गई, वह चिंताजनक है। करीब चार महीने पहले ही सरकार ने हादसों में कमी लाने के लिए सड़क सुरक्षा के वास्ते कठोर प्रावधानों से लैस मोटर वाहन (संशोधन) विधेयक को मंजूरी दी थी। पर हकीकत में कुछ नहीं बदला है। दरअसल, ऐसे नियम और कानून तब काम आएंगे, जब लोग अपनी जिम्मेदारी समझेंगे और वाहन सावधानी से चलाएंगे।

राज्यसभा में प्रश्नकाल के दौरान सड़क हादसों पर जो तस्वीर सामने रखी गई, उससे फिर यह सवाल उठा है कि, क्या केवल कानूनों को ज्यादा सख्त बनाना किसी मसले से निपटने का अकेला जरिया हो सकता है। करीब चार महीने पहले ही सरकार ने हादसों में कमी लाने के मकसद से सड़क सुरक्षा के लिए कठोर प्रावधानों से लैस मोटर वाहन (संशोधन) विधेयक को मंजूरी दी थी। मकसद यही था कि, कानूनी सख्ती से लोगों में वाहन चलाते समय भय काम करेगा और इस तरह सड़क दुर्घटनाओं पर काबू पाया जा सकेगा, पर हकीकत यही है कि, लोग वाहन चलाते समय मनमानी करते हैं और कानूनी सख्ती का भय उनमें कम ही होता है। ऐसे चालकों की संख्या काफी है, जो यातायात नियमों का पालन करना अपनी शान के खिलाफ और मनमाने तरीके से गाड़ी चलाना अपना अधिकार समझते हैं। पर सवाल है कि, इस तरह की गैरजिम्मेदारी और लापरवाही से वाहन चलाने पर आखिर हासिल क्या होता है?

सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने राज्यसभा में कहा कि, पिछले साल के मुकाबले इस साल सड़क हादसों में मामूली कमी दर्ज की गई है, लेकिन अफसोसजनक यह है कि, जितनी भी दुर्घटनाएं हुईं, उनमें मरने वाले लोगों की संख्या में बढ़ोतरी दर्ज की गई। उनके मुताबिक इसकी मुख्य वजह सड़क इंजीनियरिंग संबंधी खामियां हैं। उनका यह आकंलन सही हो सकता है। सड़क पर जो लोग वाहन चलाते हैं, उन्हें उन खामियों के मद्देनजर सावधानी बरतनी चाहिए। लेकिन क्या यह जरूरी नहीं था कि, अगर सड़कों में ही ऐसी गड़बड़ियां हैं, जो हादसों की वजह बनती हैं, तो उनके बारे में हर स्तर पर जागरूकता फैलाई जाए, जानकारी सार्वजनिक की जाए, ताकि लोग सावधानी बरतें? सड़कों पर ऐसी कई जगहें होती हैं, जहां पर विशेष सावधानी बरतने की सलाह दी जाती है, सड़क किनारे बोर्ड पर निर्देश भी लिखा होता है, लेकिन कई वाहन चालकों को उन निर्देशों पर गौर करना जरूरी नहीं लगता।

हमारी इसी बेहद मामूली लापरवाही भी बड़े हादसे की वजह बन जाती है और उसमें लोगों की नाहक जान चली जाती है। पिछले साल जनवरी से सितंबर के बीच देश भर में होने वाले सड़क हादसों में कुल एक लाख बारह हजार चार सौ उनसठ लोगों की मौत हो गई और साढ़े तीन लाख से ज्यादा लोग घायल हुए। विचित्र है कि, भारत में दुनिया भर के कुल वाहनों का केवल तीन फीसद है, लेकिन सड़क हादसों में मरने वालों की तादाद के मामले में यह अव्वल है। दरअसल, एक बड़ी विडंबना वाहन चलाने वालों के भीतर खुद है। तय रफ्तार के नियम का पालन करना, शराब पीकर वाहन न चलाना, लेन में रहना, वाहन चलाते समय सजग रहना जैसे कुछ यातायात नियमों का ही पालन कर लिया जाए, तो सड़क हादसों में काफी कमी लाई जा सकती है। फिर दुर्घटना की स्थिति में अगर सरकार समय पर घायलों को इलाज मुहैया कराने की व्यवस्था कर दे, तो बहुत सारे लोगों की जान बचाई जा सकती है। इसके अलावा, वाहन चालकों को यह भी समझने की जरूरत है कि, नियमों का पालन न केवल सुचारू यातायात व्यवस्था के लिए जरूरी है, बल्कि सड़क पर चलने वाले अन्य लोगों के साथ-साथ खुद का जीवन भी सुरक्षित रहने के लिहाज से अनिवार्य है। अच्छी सड़कें आधुनिक यातायात व्यवस्था के लिए जरूरी हैं, लेकिन उन पर वाहन चलाने का सलीका अगर न हो तो जानलेवा बन जाती हैं।

देश में हर मिनट एक सड़क दुर्घटना होती है, हर चार मिनट में एक मौत हो जाती है। सालाना करीब 1.35 लाख सड़क हादसों का शिकार होते हैं। सड़क दुर्घटनाओं का यह आंकड़ा दुनिया में सबसे बड़ा है। देश इस बड़ी चुनौती से कैसे निपटेगा? यह सवाल है। शराब पीकर गाड़ी चलाना इन सड़क हादसों का सबसे बड़ा कारण हैं। दुर्घटनाओं के मामले में राजधानी दिल्ली सबसे आगे है। यहां हर रोज पांच जानें ऐसे ही चली जाती हैं। जान गंवाने वालों में से 72 फीसदी लोग 15 से 44 साल की उम्र के होते हैं। अनुमान के मुताबिक देश में हर साल तकरीबन 1.35 लाख लोग सड़क दुर्घटनाओं की बलि चढ़ते हैं। ये सारे आंकड़ें देश की बिगड़ती परिवहन व्यवस्था और सुरक्षा की एक चिंताजनक तस्वीर पेश करते हैं। सड़क सुरक्षा विशेषज्ञ कहते हैं, सड़क दुर्घटना के मामले न तो केंद्र स्तर पर और न ही राज्य स्तर पर किसी विशिष्ट एजेंसी से जुड़े हुए हैं। वाहन परीक्षण, सड़क डिजाइन व शहरी योजना का काम हर स्तर पर अलग-अलग एजेंसी के पास है। अगर इस दिशा में ठोस कदम और नई पहल नहीं की गई तो रोड एक्सीडेंट के चलते होने वाली मौतों का आंकड़ा साल 2025 तक 2.50 लाख को पार कर जाएगा।

भारत में दुनिया के कुल वाहनों का महज तीन फीसदी हिस्सा है लेकिन सड़क हादसों में इसका हिस्सा 12 फीसदी का है। कुल मिलाकर देश के रोड नेटवर्क को दुनिया में सबसे असुरक्षित करार दिया जा सकता है। यूनाइटेड नेशंस इकोनॉमिक एंड सोशल कमीशन फॉर एशिया एंड पैसिफिक की एक स्टडी के मुताबिक, देश में होने वाली सड़क दुर्घटनाएं जीडीपी पर तकरीबन तीन फीसदी का बोझ डालती है, मतलब 58 अरब डॉलर का नुकसान। तेज रफ्तार, शराब पीकर गाड़ी चलाना, हेलमेट व सीट बेल्ट की अनदेखी इन दुर्घटनाओं में बड़े जिम्मेदार हैं। हालांकि खराब सड़कें, कम रखरखाव वाले वाहन, निम्न दर्जे की सड़क डिजाइन और इंजीनियरिंग क्वालिटी भी ऐसे कई कारण हैं जो इन एक्सीडेंट्स को बढ़ावा देते हैं। दिल्ली की सड़कें पूरे देश में सबसे खतरनाक और जानलेवा हैं। केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय के द्वारा पिछले साल देशभर में हुए सड़क हादसों के विश्लेषण से जुड़ी एक रिपोर्ट जारी की गई है। रिपोर्ट के मुताबिक, दिल्ली में पिछले साल सबसे ज्यादा लोगों को सड़क हादसों में अपनी जान गंवानी पड़ी।

चिंताजनक बात यह है कि तमाम कोशिशों के बावजूद राजधानी में सड़क हादसे कम होने के बजाय और बढ़ रहे हैं। देशभर में सड़क हादसों में कमी लाने के लिए काम कर रही संस्था सेव लाइफ फाउंडेशन के मुताबिक, ट्रांसपोर्ट मिनिस्ट्री ने 2018 में हुए रोड क्रैश और उनमें हुई मौतों से जुड़ी जो रिपोर्ट जारी की है। इस रिपोर्ट ने सवाल खड़ा कर दिया है। दिल्ली में 2017 के मुकाबले दुर्घटना की तादाद में 5.88 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है, जबकि सड़क हादसों में होने वाली मौतों के मामलों में 6.69 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है, जो बेहद चिंताजनक है। ओवर स्पीडिंग और खराब सड़कें इसके पीछे की दो प्रमुख वजहें रही हैं। हर बार की तरह इस बार भी सड़क हादसों के सबसे ज्यादा (45.86 प्रतिशत) शिकार पैदल चलने वाले ही हुए हैं, जबकि दूसरा नंबर (33.72 प्रतिशत) दोपहिया वालों का है। दिल्ली में सबसे ज्यादा 15.26 प्रतिशत हादसों को कार चालकों ने अंजाम दिया, जबकि ट्रकों व अन्य भारी वाहनों से 11 प्रतिशत हादसे हुए। मारे जाने वाले सबसे ज्यादा 48 प्रतिशत लोग 18 से 35 साल के थे, जबकि 35 से 45 साल वाले लोगों की तादाद भी 21.6 प्रतिशत रही। ओवर स्पीडिंग ने सबसे ज्यादा 64.4 प्रतिशत जानें लीं।

रिपोर्ट के अनुसार पिछले साल देशभर में सड़क हादसों की तादाद में बढ़ोतरी हुई है, जो बेहद चिंताजनक है। ऐसी व्यवस्था का निर्माण करने की जरूरत है, जिससे सड़क पर हादसों की गुंजाइश ही न बचे।

ताज़ा ख़बर पढ़ने के लिए आप हमारे टेलीग्राम चैनल को सब्स्क्राइब कर सकते हैं। @rajexpresshindi के नाम से सर्च करें टेलीग्राम पर।

ताज़ा समाचार और रोचक जानकारियों के लिए आप हमारे राज एक्सप्रेस वाट्सऐप चैनल को सब्स्क्राइब कर सकते हैं। वाट्सऐप पर Raj Express के नाम से सर्च कर, सब्स्क्राइब करें।

और खबरें

No stories found.
logo
Raj Express | Top Hindi News, Trending, Latest Viral News, Breaking News
www.rajexpress.com