जलियांवाला बाग नरसंहार बरसी : हजारों लोगों का नरसंहार करने वाले जनरल डायर की मौत कैसे हुई?

जलियांवाला बाग नरसंहार बरसी : 1919 को पंजाब में बैसाखी के दिन जो हुआ उसे आज भी लोग भूल नहीं पाए हैं और न ही कभी भूल पाएंगे ।
जलियांवाला बाग नरसंहार बरसी
जलियांवाला बाग नरसंहार बरसी Kirti Rajput - RE
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हाइलाइट्स :

  • बिना किसी चेतावनी के की गई थी लोगों पर फायरिंग।

  • 13 अप्रैल को बैसाखी पर मेले में आए थे कई लोग।

  • नरसंहार ने सामने ला दिया था ब्रिटिश हुकुमत का असली चेहरा।

जलियांवाला बाग नरसंहार बरसी : राज एक्सप्रेस। For General Dyer - The Man Who Saved India.... यह शीर्षक था उस लेख का जिसमें जनरल डायर के लिए लोगों से मदद की अपील की गई थी। 8 जुलाई 1920 को ब्रिटेन के The Morning Post में एक लेख छपा। इस लेख में अपील की गई कि, जनरल डायर पर लगे आरोपों के खिलाफ कानूनी लड़ाई लड़ने के लिए मदद की जाए। इसके बाद लोगों ने दिल खोलकर मदद की। कुछ ही समय में 26000 यूरो इकठ्ठे कर लिए गए। The Morning Post अखबार के कार्यालय में जनरल डायर के लिए खत और गिफ्ट्स का अंबार लग गया। लोग जिस डायर पर इतने मेहरबान थे वो आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक 376 लोगों का हत्यारा था। जलियांवाला बाग की 105वीं बरसी पर जानते हैं, मात्र 10 मिनट में सैकड़ों लोगों को मौत के घाट उतारने के बाद जनरल डायर का क्या हुआ, क्या उसे उसके किए की सजा मिल पाई?

जनरल डायर के बारे में जानने से पहले जानते हैं जलियांवाला बाग नरसंहार की पृष्ठभूमि...।

उन दिनों पूरे देश में महात्मा गांधी द्वारा चलाए जा रहे सत्याग्रह और आंदोलन की चर्चा थी। गांधी अपने अहिंसक प्रयासों से अंग्रेजों की सत्ता को चुनौती दे रहे थे। ऐसा ही एक सत्याग्रह था “रौलट”। इस सत्याग्रह के बाद पंजाब में कुछ आंदोलनकारी हिंसक हो रहे थे। यहां ब्रिटेन सरकार का रवैया भी काफी क्रूर था। लोगों को तरह - तरह की यातनाएं दी जाती थीं। जब गांधी जी ने रौलट सत्याग्रह के लिए जनता का आवाहन किया तो अमृतसर और लाहौर में स्थिति कुछ गंभीर हो गई। रोज अखबारों में पंजाब के बारे में छपते लेख महात्मा गांधी की चिंताएं बढ़ा रहे थे। उन्होंने स्वयं पंजाब जाकर वहां की जनता को शांत करना चाहा लेकिन दमनकारी अंग्रेजी हुकूमत ने उन्हें पंजाब में कदम भी नहीं रखने दिया। इसके बाद वे मुंबई चले गए, उधर पंजाब में यथास्थिति बनी रही।

फिर आई वो तारीख जिसने स्वतंत्रता के लिए चलाए जा रहे आंदोलन की दिशा ही बदल दी। इस तारीख ने अंग्रेजों के चेहरे से उस आखिरी नकाब को भी हटा दिया जिसके पीछे छिपकर वे सभ्यता का पाठ पढ़ाने का झूठा दावा किया करते थे।

10 अप्रैल को अमृतसर में सैफुद्दीन किचलू और डॉक्टर सत्यपाल की गिरफ्तारी के विरोध में प्रदर्शन किया गया। टाउन हॉल और पोस्ट ऑफिस को निशाना बनाया गया। कुछ प्रदर्शनकारियों ने तो टेलीग्राफ तार ही काट दी। जनता को उग्र होता देख प्रशासन ने सेना की मदद ली। कुछ ही समय में पूरा अमृतसर छावनी में तब्दील हो गया। नगर के प्रशासन की जिम्मेदारी जनरल डायर को सौंप दी गई। प्रशासन को हाथ में लेने के तुरंत बाद ही जनरल डायर ने जनसभा करने और लोगों के इकठ्ठे होने पर रोक लगा दी। यहीं से शुरू होती है असली कहानी…।

पंजाब में बैसाखी पर जगह - जगह मेले का आयोजन किया जाता था। आज भी किया जाता है लेकिन 1919 को पंजाब में बैसाखी के दिन जो हुआ उसे आज भी लोग भूल नहीं पाए हैं और न ही कभी भूल पाएंगे । 13 अप्रैल को पंजाब के अमृतसर में जलियांवाला बाग में एक सभा का आयोजन किया गया। इस सभा में अधिकतर वे लोग थे जो बैसाखी के मेले में शामिल होने के लिए घर से निकले थे। गांव और कस्बों से लोग मेले का हिस्सा बनने आए थे। जनसभा पर प्रतिबंध के बावजूद इतने लोगों का एक जगह इकट्ठा होना दमनकारी शासन को आदेश की अवहेलना लगा। लोगों के यहां आने के कुछ ही समय बाद जनरल डायर यहां 25 गोरखा सैनिक, 40 गोरखा केवल खुखरी से लैस, 25 बलूची राइफल और दो बख्तरबंद गाड़ियों से लैस होकर पहुंचा। इससे पहले की कोई कुछ समझ पता फायरिंग शुरू हो गई। अगले 10 मिनट तब तक फायरिंग हुई जब तक वहां मौजूद एक - एक व्यक्ति की जान न निकल गई हो।

जलियांवाला बाग नरसंहार में आधिकारिक रिकॉर्ड्स के अनुसार 376 लोगों की मौत हुई लेकिन कुछ रिपोर्ट्स का मानना है कि, यहां उस दिन हजारों लोगों ने अपनी जान गवाई। डायर ने जलियांवाला बाग में गोली चलाने से पहले न कोई चेतावनी दी न सूचना। ऊपर से जलियांवाला बाग में निकलने का एक ही रास्ता था जिस पर जनरल और उसके सैनिक थे वहीं इस बाग में दीवारें काफी ऊंची थी लोगों को जान बचाने का कोई रास्ता नहीं दिखा तो बहुत से लोग कुंए में कूद गए। 10 मिनट में जलियांवाला बाग की जमीन निर्दोष लोगों के खून से लाल हो चुकी थी।

जनरल डायर फायरिंग करने के बाद घायलों को वहीं छोड़ कर अपने सैनिकों से साथ लौट गया। भारत में इस नरसंहार के बाद सभी स्तब्ध थे। ब्रिटेन सरकार ने इस नरसंहार से आंखें मूंद ली और पंजाब में अपना दमनकारी रवैया जारी रखा। पूरे पंजाब को मार्शल लॉ के अधीन कर दिया गया। अमृतसर में तो जनता को पेट के बल रेंगने को मजबूर किया गया। हिंसा को देखते हुए महात्मा गांधी ने 18 अप्रैल को आंदोलन वापस ले लिया।

अब जानते हैं जनरल डायर का क्या हुआ?

जनरल डायर द्वारा किए गए इस नरसंहार की खबर दुनिया भर में पहुंच गई थी। इस नरसंहार के 6 महीने तक जनरल डायर पर कोई एक्शन नहीं लिया गया न कोई सवाल किया गया। मानो कुछ हुआ ही न हो। नरसंहार के 6 महीने बाद यानी 14 अक्टूबर 1919 को भारत के राज्य सचिव एडविन मोंटागू ने जांच के आदेश दिए। आदेश के पालन में स्कॉटलैंड के पूर्व सॉलिसिटर जनरल लार्ड विलियम हंटर की अध्यक्षता में कमेटी बनी जिसने इस नरसंहार की पड़ताल कर रिपोर्ट तैयार की।

इस रिपोर्ट में 13 अप्रैल को हुई हर एक घटना का जिक्र किया गया। हंटर कमीशन की रिपोर्ट में दर्ज जनरल डायर के बयान के अनुसार जलियांवाला बाग पहुंचकर डायर ने अपने सैनिकों को फायरिंग करने के आदेश दिए थे। ये आदेश डायर ने जलियांवाला बाग में मौजूद लोगों को बिना कोई चेतावनी के दिए थे। इससे भी खतरनाक खुलासा तो ये था कि, जनरल डायर ने कहा था कि, अगर उस बाग का प्रवेश द्वार थोड़ा और बड़ा होता तो वो बख्तरबंद गाड़ी पर लगी मशीन गन से लोगों पर गोलियां बरसाता। उसने कहा कि, ' निहत्थी जनता पर बिना चेतावनी के गोली बरसाने का आदेश देकर वो लोगों को सबक सिखाना चाहता था कि,  ‘आदेश की अवहेलना करने का क्या हश्र होता है।'

रेजिनल्ड एडवर्ड हैरी डायर की मौत :

निराशाजनक रूप से, वायसराय लॉर्ड चेम्सफोर्ड ने जनरल डायर द्वारा किए गए नरसंहार को 'सच्चाईपूर्ण' और 'कर्तव्य की कठोर भावना से प्रेरित' बताया। जिस मामले को मानवता के खिलाफ अपराध की मान्यता के साथ समाप्त हो जाना चाहिए था, वह ब्रिगेड कमांडर के रूप में जनरल डायर के इस्तीफे और भारत में आगे कोई नियुक्ति नहीं होने के साथ बंद कर दिया गया था। अपने अंतिम दिनों में डायर बीमारी से जूझता रहा। उसे पैरालिसिस भी हो गया था। 23 जुलाई 1927, जलियांवाला बाग नरसंहार के करीब 8 साल बाद रेजिनल्ड एडवर्ड हैरी डायर की मौत हो गई।

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