जी-7 मंच: सहमतियों पर भारी विवाद

फ्रांस के बियारित्ज में जी-7 देशों की 45वीं बैठक असहमतियों का मंच बनकर रह गई, जिन समस्याओं के समाधान के लिए जी-7, जी-20 जैसे सामूहिक मंच खड़े हुए हैं, उनका निदान नहीं हो रहा है।
फ्रांस के बियारित्ज में जी-7 देशों की 45वीं बैठक
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राज एक्‍सप्रेस। फ्रांस के बियारित्ज में जी-7 देशों की 45वीं बैठक में सम्मिलित सात देश फ्रांस, अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, जापान, इटली और कनाडा विश्व के सर्वाधिक विकसित और औद्योगिक रूप में समृद्ध देश हैं। जी-7 की वार्षिक बैठक पिछले साढ़े चार दशक से आयोजित की जा रही है। बैठक में उपस्थित सात देशों के अलावा यूरोपियन यूनियन परिषद के अध्यक्ष और दूसरे देशों को भी निमंत्रित किया जाता है। भारत और आस्ट्रेलिया सहित सात अन्य देशों को भी बैठक में बुलाया गया था। विश्वस्तरीय बैंकिंग, व्यापार को नियंत्रित करने वाले आईएमएफ, डब्‍ल्यूटीओ एवं संयुक्‍त राष्ट्र जैसे संगठन भी बैठक का महत्वपूर्ण हिस्सा होते हैं। इस बार बैठक के लिए चिन्हित प्रमुख विषयों में वैश्विक व्यापार, जलवायु परिवर्तन और प्रौद्योगिकी कंपनियों पर अधिक कर लगाना जैसे विषय शामिल थे, लेकिन इन विषयों पर व्यापक चर्चा करके प्रभावशाली कार्यकारी संकल्प इस बार भी नहीं लिए जा सके। जी-7 के देश परस्पर व्यापारिक, सामरिक विवादों के अलावा आमंत्रित देशों, जी-7 में आने को इच्छुक रूस व चीन जैसी महाशक्तियों व विश्व के दूसरे देशों की क्षेत्रीय-भौगोलिक और दूसरी समस्याओं पर ही चिंतन-मनन करने में उलझे रहे।

यद्यपि यूरोपीय परिषद जी-7 में शामिल नहीं है, लेकिन चूंकि समूह के सात में से चार सदस्य जर्मनी, फ्रांस, ब्रिटेन और इटली यूरोपियन यूनियन में हैं, इसलिए यूरोपियन यूनियन के विचारों को बैठक में प्राथमिकता दी जाती रही है, जबकि अमेरिका, जापान और कनाडा जैसे जी-7 के 3 देश यूरोपियन यूनियन के उन विचारों को बैठक का प्रमुख बिंदु बनाने पर हमेशा से आपत्ति दर्ज करते रहे हैं, जो उनके मतानुसार यूरोपियन यूनियन के हित में और शेष दुनिया के प्रतिकूल होते हैं। इसी प्रभाव में यूरोपियन यूनियन परिषद के अध्यक्ष डोनाल्ड टस्क ने कहा कि, बैठक में ईरान नाभिकीय संधि पर चर्चा होनी चाहिए। उनके अनुसार यह संधि अमेरिकी सरकार के निर्णय के कारण खतरे में पड़ गई है। इससे पहले उन्होंने वैश्विक व्यापार युद्ध को भड़काने के लिए अमेरिकी शुल्क दरों में वृद्धि पर असहमति प्रकट करते हुए ट्रंप के सम्‍मुख आपत्ति दर्ज कराई।

डोनाल्ड टस्क के अनुसार, यदि शुल्क में अमेरिका कटौती करता है तो ही संभावित वैश्विक मंदी से छुटकारा मिल सकता है। इस पर अमेरिकी राष्ट्रपति के साथ उनका तीखा विवाद भी हो गया। 24 अगस्त को बैठक शुरू होने से एक दिन पूर्व फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने जी-7 से अनुरोध किया था कि, समूह की बैठक का प्रमुख विषय अमेजन के जंगलों की आग को बनाया जाए। उनके अनुसार वर्तमान का यह पर्यावरण संकट जी-7 द्वारा अंतरराष्ट्रीय संकट घोषित किया जाए। इसके पक्ष में उन्होंने तर्क दिए कि एमेजन वन का जलना हमारे घरों के जलने के समान है और अमेजन वर्षा-वन विश्व की कुल ऑक्‍सीजन में से 20% ऑक्‍सीजन का उत्पादन करते हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अभी तक वैश्विक जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण संकट के निदान के लिए एकनिष्ठ नहीं हो पा रहे, चूंकि अमेरिका द्वारा किसी भी विषय पर रुचि नहीं दिखाने का तात्पर्य यहींं होता है कि, उस विषय के संबंध में शेष देशों का सामूहिक संकल्प समुचित ढंग से क्रियान्वित नहीं हो पाएगा, इसलिए वैश्विक पर्यावरण संकट के प्रति निरुत्साहित अमेरिका के चलते इस दिशा में ठोस काम हो ही नहीं पा रहा। अमेजन वनाग्नि के बारे में इमैनुएल के प्रस्ताव पर ट्रंप ने स्पष्ट कर दिया कि वे ब्राजील की उपस्थिति के बिना इस संबंध में कोई चर्चा करना ही नहीं चाहते।

अमेरिका के इस मत का समर्थन ब्रिटेन, इटली, जापान, स्पेन और चिली जैसे देश भी कर रहे हैं और वे ब्राजील के बिना अमेजन वनाग्नि पर जी-7 में कोई सामूहिक चर्चा करने को तैयार ही नहीं हुए। अमेरिकी राष्ट्रपति ने जी-7 की 45वीं बैठक के आयोजक फ्रांस सरकार को अमेरिकी प्रौद्योगिकी कंपनियों पर अधिक कर लगाने के संबंध में स्पष्ट चेतावनी दी कि यदि वे ऐसा करना जारी रखेंगे तो उनके पास फ्रेंच वाइन के आयात पर शुल्क बढ़ाने के अलावा कोई उपाय नहीं होगा। इस बैठक में रूस को समूह के साथ जोड़ने पर भी विचार किया गया। मार्च 2014 में यूक्रेन और क्रीमिया पर रूस की सैन्य कार्रवाई के चलते उसे जी-7 से हटा दिया गया था। तब से रूस को समूह से जोड़ने या न जोड़ने को लेकर समूह के सदस्यों के बीच अनेक किंतु परंतु होते रहे, लेकिन इस बार अमेरिकी और फ्रांसीसी राष्ट्रपति इस विचार पर सहमत हो गए कि, अगली जी-7 बैठक में रूस को आमंत्रित किया जाना चाहिए। जी-7 से में शामिल सातों देश विकसित देश हैं और उनकी प्रति व्यक्ति आय दुनिया में सर्वाधिक है। चीन प्रति व्यक्ति आय में इन देशों की तुलना में पिछड़ा है, इसीलिए अभी तक वह जी-7 का सदस्य नहीं बन सका है, हालांकि बैठक में स्पष्ट दिख रहा था कि, समूह के देशों के मध्य किसी एक विषय पर सामूहिक सहमति बनी नहीं, लेकिन फिर भी समूह ने जिन पांच बिंदुओं पर सार्वजनिक समझौता किया। वह प्रशंसनीय है, समूह ने अंतत: विश्व व्यापार संगठन, ईरान, लीबिया, यूक्रेन में वर्ष 2014 से अब तक रूसी सैन्य हस्तक्षेप, सीनो-ब्रिटिश संयुक्‍त उद्घोषणा और हांग कांग प्रत्यर्पण विरोधी विधेयक आंदोलन जैसे विषयों को हल करने की दिशा में अनुबंध हस्ताक्षरित किए, हालांकि औपचारिक निमंत्रण के बिना ईरान के विदेशी मंत्री भी बैठक की समयावधि में फ्रांस में उपस्थित थे, पर उनसे अमेरिकी राष्ट्रपति की बातचीत नहीं हुई।

बैठक के बाद हुई अंतिम प्रेस भेंटवार्ता में जहां ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ईरान को किसी भी स्थिति में नाभिकीय अस्त्र रखने की अनुमति नहीं दिए जाने पर बल दिया, वहीं अमेरिका ने भी स्पष्ट किया कि, वो अपने हितों से समझौता किए बिना ईरान से कोई बात नहीं करेगा। साथ यूरोपियन यूनियन और फ्रांस व जर्मनी जैसे देश ब्रिटेन व अमेरिकी धारणाओं के विपरीत ईरान का पक्ष समर्थन करते दिखाई दिए। ब्रेक्जिट की समस्या भी जी-7 का एक प्रमुख विषय था, हालांकि इस पर ब्रिटेन को तो संशय त्याग भविष्य में कोई न कोई ठोस निर्णय लेना ही, पर यूरोपियन यूनियन के सदस्य देश भी ब्रेक्जिट के संबंध में अपने हितों के अनुरूप ब्रिटेन से उम्‍मीद लगाए बैठे हैं कि, वह ब्रेक्जिट पर यूयू और जी-7 की सामूहिक मंशा के अनुरूप अंतिम निर्णय ले। एक ओर जहां जी-7 में वैश्विक व्यापार युद्ध से निपटने और इस कारण उत्पन्न मंदी से उबरने पर व्यापाक विचार-विमर्श किया गया, वहीं उसी समयावधि में जी-7 और ईयू काउंसिल द्वारा ट्रेड वार रोकने के समन्वित प्रयासों विपरीत ट्रंप ने चीन के उत्पादों पर नया शुल्क लगाने की घोषणा कर दी। ट्रंप ने कहा कि, अक्‍टूबर से 250 अरब डॉलर की चीनी वस्तुओं पर 30 प्रतिशत शुल्क लगाया जाएगा।

इन परिस्थितियों को देख यह अनुमान लगाया जा सकता है कि, वैश्विक समस्याओं के समाधान के लिए विकसित और विकासशील देशों के विभिन्न समूह मात्र औपचारिकताओं के लिए वार्षिक बैठक पूरी कर रहे हैं। जिन समस्याओं के समाधान के लिए जी-7, जी-20 जैसे सामूहिक मंच खड़े हुए हैं, उनका पूर्ण निदान तो हो नहीं पा रहा, लेकिन हां समस्याएं किन्हीं दो देशों के व्यापारिक, सामरिक, भौगोलिक और अन्याय संघर्ष के कारण प्रतिवर्ष पहले से अधिक घातक होकर जरूर उभर रही हैं, जो भविष्य के लिए सही नहीं है।

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