किसान की तीनों कानून वापस लेने वाली मांग सरकार को किसी कीमत पर मंजूर नहीं

सरकार द्वारा आंदोलन खत्म कराने किसानों को भेजा गया 10 सूत्रीय प्रस्ताव खारिज होने के बाद मामले के और आगे बढऩे की उम्मीद बन गई है। यह तय है कि किसान कानूनों को रद्द कराए बिना पीछे नहीं हटने वाले।
तीनों कानून वापस लेने वाली मांग
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सरकार और किसान संगठनों द्वारा एक-दूसरे के प्रस्ताव को ठुकराने के बाद अब आंदोलन आर-पार की ओर बढ़ चला है। सरकार का लिखित प्रस्ताव किसान संगठनों को नामंजूर है, तो किसान संगठनों की तीनों कानून वापस लेने वाली मांग सरकार को किसी कीमत पर मंजूर नहीं है। हालांकि सरकार ने भेजे गए प्रस्तावों में तीन नए कानूनों को रद्द करने के अलावा कई उन आपत्तियों पर सकारात्मक और नरम रुख अख्तियार किया है जिनका डर आम किसानों को दिखाया जा रहा है। पिछले दो-ढाई महीने से पंजाब में जिस तर्ज पर आंदोलन चल रहा है, उसे दिल्ली पहुंचकर देश भर में विस्तार देने की रणनीति है। 12 और 14 दिसंबर के प्रस्तावित आंदोलन के पीछे की रणनीति और वजह यही है। 12 दिसंबर को दिल्ली-जयपुर हाईवे और दिल्ली-आगरा एक्सप्रेस-वे जाम करने की घोषणा की गई है। दिल्ली-जयपुर और दिल्ली-आगरा को अवरोध करने के पीछे राजस्थान से मिल रहे किसानों, खापों के समर्थन के साथ-साथ सियासी वजह भी है।

राजस्थान में कांग्रेस की सरकार है। राजस्थान से दिल्ली पहुंचना आसान है। पंजाब से सटे हरियाणा को न चुनने के पीछे एक वजह यह है कि हरियाणा के करीब 20 किसान संगठनों ने अतर सिंह की अगुवाई में कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर से मिलकर सरकार के नए कृषि कानून को समर्थन दे रखा है। इसके बाद 14 दिसंबर को जिला मुख्यालयों में सांकेतिक धरना-प्रदर्शन के जरिए समर्थन जुटाने की रणनीति है, लेकिन दक्षिण में किसान संगठनों के बेमियादी जम जाने की भी तैयारी है। दक्षिण में चुनाव सिर पर हैं। सवाल यह है कि जब सरकार की ओर से लिखित प्रस्ताव आया तो किसान इसे मानने के लिए तैयार क्यों नहीं हैं। सरकार की ओर से किसानों को 20 पेज का जो प्रस्ताव दिया गया है, उसे किसान संगठन भ्रामक मानते हैं। किसान जत्थेबंदियों और इनके नेताओं का कहना है कि हमारी पहली ही मांग तीन नए कानूनों को वापस लेने की है, जबकि सरकार ने इसे ही नकार दिया।

10 पन्ने पर 10 प्रस्ताव हैं जिनमें बदलाव या संशोधन की पेशकश के साथ आगे के लिए गुंजाइश छोड़ी गई है। पहले ही पन्ने पर साफ कर दिया गया है कि कृषि सुधार कानूनों को निरस्त नहीं किया जाएगा बल्कि जिन प्रावधानों पर अप्पत्ति हैं, उन पर सरकार खुले मन से विचार करने को तैयार है। आंदोलनकारियों की ओर से किसानों की जमीन पर कॉरपोरेट के कब्जे का जो अंदेशा जताया गया है, उस पर भी सरकार की ओर से साफ कर दिया गया कि किसानों की न तो जमीन ली जाएगी, न निर्माण पर खरीदार द्वारा कर्ज। किसानों की भूमि कुर्क भी नहीं होगी, न कोई जुर्माना लगेगा बल्कि खरीदार पर 150 फीसदी का जुर्माना होगा। 2020 का नया बिजली कानून पूरी तरह रद्द कर सब्सिडी की राज्य वाली पुरानी व्यवस्था बनी रहेगी। मगर किसान अपनी जिद पर अड़े हैं।

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