राज एक्सप्रेस। मोदी 2.0 सरकार के दूसरे आम बजट से हर वर्ग को काफी उम्मीदें हैं। निर्मला सीतारमण जब बजट पेश करेंगी तब उनका ध्यान कृषि, शिक्षा, विनिर्माण और रोजगार सृजन पर होगा। वित्त मंत्री के पिटारे से क्या निकलेगा, यह अभी तय नहीं है, मगर हमें उम्मीद बेहतरी की ही करनी चाहिए, ताकि किसान को फसल की चिंता न करनी पड़े और छात्रों को पढ़ाई एवं रोजगार की। देखना होगा कि निर्मला का बजट उनके स्वभाव की तरह निर्मल होगा या नहीं। आज किसानों के सामने सबसे बड़ी चुनौती उनकी फसल का उचित मूल्य मिलना है। पिछले कई सालों से फसल का सही दाम नहीं मिल पाने से किसान अपनी फसल सड़क पर फेंकने को मजबूर हो जाता है।
बजट को लेकर किसानों का कहना है :
सरकार को ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए बजट में कई बड़े ऐलान करने चाहिए। आज किसानों की खरीदी क्षमता खत्म होने से ग्रामीण अर्थव्यवस्था पूरी तरह टूटी चुकी है और सरकार को बजट में इस ओर ध्यान देना चाहिए। किसानों को कर्ज के जाल से निकालने के लिए सरकार को कुछ बड़े ऐलान करने होंगे। इसके लिए देश के कुछ राज्यों में चल रही किसान कर्ज माफी योजनाओं को बाकी राज्यों तक भी पहुंचाने की जरूरत है। किसानों की इनकम गारंटी पर सोचने की जरूरत है, इसके लिए किसानों से जुड़ी सहकारी संस्थाओं को मजबूत करने के लिए बजट में ऐलान वित्तमंत्री को करना चाहिए। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना पर सरकार को गंभीर होकर काम करने की जरूरत है, ताकि किसानों को आर्थिक दुर्दशा से उबारा जा सके।
कृषि क्षेत्र को संकट से निकालने की खातिर क्वालिटी इनपुट के लिए सरकार को विशेष काम करना होगा। आज उन्नत खेती के तरीके अपनाने के लिए कृषि से जुड़ी शिक्षा को बढ़ावा देना होगा और बजट में इसके लिए अच्छी-खासी राशि का आवंटन करना होगा। यही नहीं, आज किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य नहीं मिल पाता और बंपर पैदावार होने पर बड़ी मात्रा में तैयार फसल या तो खेतों में सड़ जाती है या फिर किसान को औने-पौने दाम पर बेचने को मजबूर होना पड़ता है। ऐसे में इंडस्ट्रियल कॉरिडोर की तरह कृषि कॉरिडोर का निर्माण भी आज की जरूरत हो चला है। इसके साथ ही, बजट में किसानों के लिए फूड प्रॉसेसिंग यूनिट और फूड पार्क बनाने जैसे बड़े ऐलान सरकार को बजट में करने होंगे। पूर्व में पेश हुए बजट में किसानों के लिए की गई घोषणाओं को लागू करने की जरूरत है। किसानी संबंधित सामान पर टैक्स हटाना होगा, ताकि किसान जरूरत के सामान आसानी से कम दामों में खरीद सकें।
कृषि में अभी भी नवाचार का अभाव है। ज्यादातर किसान गेहूं-चावल और मौसम की मार में उलझे रहते हैं, जबकि हमें प्याज, फल और कई दलहन का आयात करना पड़ता है। इसका समाधान राष्ट्रीय कृषि नीति के साथ राज्यों द्वारा अपनी स्थानीय अनुकूलता को ध्यान में रखकर फसलों के निर्धारण और लीक से हटकर जैसे-अन्य फसलों को सरकारी समर्थन जैसे कदम उठाने होगें। भारत इस दरम्यान निर्माण क्षेत्र में नवाचार के संदर्भ में विश्व के अन्य देशों से पीछे रह गया था, जिसका खामियाजा बड़े पैमाने पर रोजगार सृजनता के रूप में चुकाना पड़ा है। बजट में इस ओर बड़े पैमाने पर सुधार की आवश्यकता है। यहां तक कि आज भी भारत की कई सरकारी कंपनियों में 1980 या 90 की तकनीकों का इस्तेमाल किया जा रहा है। एक अनुमान है कि भारत की सबसे बड़ी ऊर्जा उत्पादन कंपनी एनटीपीसी के दर्जनों प्लांट दशकों पुराने हो चुके हैं, फिर भी प्रयोग में लाए जा रहे हैं। इसी तरह एक बड़े पैमाने पर सुधार की गुंजाइश है जहां से हम भारत के विनिर्माण उद्योग में जान फूंक सकते हैं। आर्टीफिशियल इंटेलिजेंस, स्पेस तकनीक जैसे नवाचारी क्षेत्रों में निवेश की ओर भी हमें बढ़ना होगा, तभी हम विश्व से मुकाबला कर पाएंगे। सेवा क्षेत्र, 1991 के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था का सबसे सुनहरा पक्ष रहा, जिसमें अभी भी अपार संभावनाएं हैं। सेवा क्षेत्र का बढ़ना भारतीय अर्थव्यवस्था को तुरंत संजीवनी उपलब्ध करा सकता है।
किसानों के अलावा सरकार के सामने शिक्षा भी बड़ा मुद्दा होगा। इस क्षेत्र में काफी काम किए जाने की जरूरत है। समय-समय पर सरकार भी शिक्षा को लेकर अपनी नीति स्पष्ट कर चुकी है। ऐसे में शिक्षा के क्षेत्र में बजट में किए जाने वाले ऐलानों पर सभी की नजर होगी। कहा जा रहा है कि सरकार आम बजट में शिक्षा के बजट में पांच से आठ प्रतिशत की बढ़ोतरी कर सकती है। वित्तमंत्री सीतारमण के पिटारे से शिक्षा के लिए एक लाख 25 हजार करोड़ रुपए तक मिलने की उम्मीद जताई जा रही है। विशेषज्ञों का मानना है कि सरकार का ध्यान शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाने, रिसर्च, इनोवेशन, तकनीक, कौशल विकास और व्यावसायिक शिक्षा पर रहेगा। बजट में शिक्षकों की ट्रेनिंग, पाठ्यक्रम और कोर्स में बदलाव वाले खास बिंदुओं को शामिल किए जाने की संभावना है। फिलहाल देश की शिक्षा व्यवस्था बजट की भारी कमी से जूझ रही है। उच्च शिक्षा हो या स्कूली शिक्षा, हर जगह बजट की कमी है।
पिछले एक दशक के दौरान शिक्षा के क्षेत्र में खर्च देश के जीडीपी के तीन प्रतिशत से भी कम रहा है, जबकि प्रस्तावित वैश्विक मानक छह प्रतिशत है। आंकड़ों की बात करें, तो 2014-15 में जब मोदी सरकार ने पहली बार बजट पेश किया था तो उसमें शिक्षा क्षेत्र को 83 हजार करोड़ रुपए का बजट दिया गया था। बाद में इसे उसी साल घटाकर 69 हजार करोड़ रुपए कर दिया गया। इसके बाद शिक्षा बजट उस दर से नहीं बढ़ा, जिस तरह उसे बढ़ना चाहिए था। मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के दौरान निर्मला सीतारमण ने जब जुलाई, 2019 में बजट पेश किया तो शिक्षा क्षेत्र को 94 हजार 854 करोड़ रुपए का बजट मिला, जो वर्ष 2014 के बजट से महज 15.68 फीसदी अधिक है। जबकि इस दौरान कुल बजट 55 प्रतिशत से अधिक बढ़ा। 2014-15 में संपूर्ण बजट की राशि 17.95 लाख करोड़ रुपए थी, जो 2019-20 में बढ़कर 27.86 लाख करोड़ हो गई। विशेषज्ञों की मानें, तो भारत में जहां एक तरफ शिक्षा के क्षेत्र में बजट काफी कम है, वहीं इसका वितरण भी काफी असमान है। वर्ष 2019-20 के बजट के अनुसार, शिक्षा के क्षेत्र में जो 94 हजार 854 करोड़ जारी किए गए, उसमें स्कूली शिक्षा का बजट 56 हजार 536.63 करोड़ रुपए और उच्च शिक्षा का बजट 38 हजार 317.36 करोड़ रुपए है।
उच्च शिक्षा के 38 हजार 317.36 करोड़ रुपए में से देश के लगभग एक हजार विश्वविद्यालयों का हिस्सा 6843 करोड़ रुपए है। वहीं, देश में 50 से भी कम संख्या में स्थित आईआईटी और आईआईएम का बजट विश्वविद्यालयों के बजट से कहीं अधिक है। देश भर के 23 आईआईटी कॉलेजों का कुल बजट 6410 करोड़ रुपए, जबकि देश के 20 आईआईएम कॉलेजों को 445 करोड़ रुपया मिलता है। यही वजह है कि भारत की विश्वविद्यालयीय शिक्षा बड़ी नाजुक स्थिति में है। बजट के असमान वितरण के अलावा एक समस्या यह भी है कि, शिक्षा के क्षेत्र में जितना बजट प्रस्तावित किया जाता है, उतना खर्च नहीं हो पाता। 10 वर्षो में आठ बार ऐसा मौका आया जब शिक्षा पर प्रस्तावित बजट खर्च नहीं हो सका। 2014 से 2019 के दौरान लगभग 4 लाख करोड़ रुपए प्रस्तावित बजट शिक्षा के क्षेत्र में खर्च नहीं हो पाया। ऐसे में यह उम्मीद की जानी चाहिए कि वित्त मंत्री इस बार के बजट में शिक्षा के क्षेत्र पर कुछ ज्यादा ध्यान देंगी। यही नहीं, केंद्र सरकार को भी यह समझने की जरूरत है कि ऐसी नीतियां बनाए कि बजट में प्रस्तावित राशि का सही और पूरा खर्च हो। समय की भी यही मांग है।
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