गणतंत्र दिवस के अवसर पर हम लोकतंत्र का लेखाजोखा ले सकते हैं। 26 जनवरी-1950 के बाद ईमानदारी से आंकलन किया जाए तो अब तक हमारा गणतंत्र लगातार परिपक्व ही हुआ है। आज समाज का 90 फीसदी से अधिक हिस्सा अपने इच्छित जन प्रतिनिधियों को संसद में भेज सकता है, तो इसके लिए हमारे संविधान निर्माताओं को धन्यवाद देना ही होगा। हालांकि, चुनाव सुधारों की दिशा में बड़े स्तर पर कार्य किया जाना जरूरी है, क्योंकि इसके अभाव में आपराधिक पृष्ठभूमि के लोग तो सदन में पहुंचते ही हैं, साथ ही साथ बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार की संभावना भी जन्म लेती है। इसके साथ ही बार-बार हो रहे विभिन्न चुनाव हमारे देश में ‘चुनाव’ को एक इंडस्ट्री के रूप में तब्दील कर चुके हैं, जिसे किसी हाल में उचित नहीं कहा जा सकता है। रोज-रोज हो रहे चुनावों की बजाय इसे व्यवस्थित और एक समय पर ही किए जाने का मार्ग ढूंढा जाना चाहिए। चुनाव सुधार, जिसमें प्रत्येक तरह के चुनाव पांच साल के दौरान एक या अधिकतम दो बार में कराए जाएं। पार्टियां आरटीआई के दायरे में हों और बेनामी चंदे की दुकान बंद की जाएं।
कोरोना काल के बाद स्वास्थ्य सुविधाएं व रोजगार जैसी मूलभूत मानवीय आवश्यकताएं आज भी हमारे सामने मुंह बाए खड़ी हैं। एक तरफ तो हम सुपर पावर बनने का दम भर रहे हैं, किंतु दूसरी ओर हमारे देश में कहीं किसान आत्महत्या करते हैं तो कहीं भूख से किसी की मौत हो जाती है। 70 सालों से इस संदर्भ में सरकार की गलत नीतियों के कारण करोड़ों लोग आज भी गरीबी रेखा से नीचे हैं, पर सरकार से जरा अलग हटकर सोचा जाए तो इन समस्याओं से निपटने में ‘सामाजिक आंदोलनों’ की बड़ी भूमिका हो सकती है। हम अकसर कहते हैं कि जापानी लोग बड़े मेहनती होते हैं, तो क्या उन्हें मेहनती वहां की सरकार ने बनाया है? नहीं, वहां का सामाजिक चरित्र ही है जिसने समूचे देश की सम्पन्नता की राह खोली। इसके लिए सीधे तौर पर समाज को प्रयत्न करने की आवश्यकता है।
जीवंत और स्वस्थ लोकतंत्र की छाया में एक स्वतंत्र देश के रूप में लंबी यात्रा के बाद यह स्वीकार करना होगा कि हमारे सामने कुछ कठिन चुनौतियां हैं। यदि हमें पंथनिरपेक्ष व्यवस्था व बहुलतावादी संस्कृति को बचाए रखना है तो सेक्युलर के आत्मघाती संस्करण को तो त्यागना होगा। अगर इन मूलभूत चुनौतियों से हम पार पा सकें तो कोई कारण नहीं है कि आने वाले दशकों में हमारा देश विश्व भर में सिरमौर होगा। अन्यथा धीरे-धीरे अव्यवस्थित तरीके से हम कभी एक कदम आगे जाएंगे तो कभी दो कदम पीछे हटने को भी मजबूर हो जाएंगे! सो, इस गणतंत्र दिवस पर हम सभी बगैर सरकार से उम्मीद लगाए अपने देश और समाज के उत्थान का संकल्प लें और जो कमी रह गई है, उसे दूर करने का भरपूर प्रयास करें। तभी हमारा लोकतंत्र और मजबूती से विश्व फलक पर अपना असर और ताकत दिखा पाएगा, अन्यथा नहीं।
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