Bad Bank : गोलमाल है, भाई सब गोलमाल है
राज एक्सप्रेस। भारत सरकार ने बैंकों के फंसे हुए सभी कर्जों की वसूली के लिए बैड बैंक बनाने का निर्णय लिया है। यह बैड बैंक सभी बैंकों से उनका एनपीए या फंसा हुआ कर्ज खरीदेगा और उसकी वसूली करेगा। यह एक नई पहल है और यह कितनी सफल होगी, कितनी प्रभाव कारी होगी और इसका भविष्य क्या होगा यह भविष्य में छिपा हुआ है। हेनरी फोर्ड का एक कथन यह बताना अनिवार्य है की अगर बैंकिंग देश के लोग बैंकिंग सिस्टम को समझ जाएं तो देश में बगावत हो जाएगी। यह बात अमूमन सभी देशों के बैंकिंग सिस्टम पर लागू हो सकता है। इस बैंक का निर्माण तो एनपीए को वसूलने के लिए हो रहा है परंतु इसकी आड़ में बैंकों को बेचने का या उनके निजी करण का रास्ता भी निकालने की तैयारी पिछले दरवाजे से की जा रही है।
फिलहाल हमने अभी भारत में डूबते बैंक, बुरे बैंक, खराब बैंक, मर्जर होते बैंक इन सभी बैंक के बारे में तो सुना होगा लेकिन पहली बार हम सब लोग बुरा बैंक सुन रहे हैं। जो कि एक नई कार्यप्रणाली के साथ आ रही है जिसे नेशनल ऐसेट डीकंस्ट्रक्शन कंपनी के नाम से जाना जाएगा। यह बैंक लगभग 8.34 लाख करोड़ के एनपीए को खरीदेगा, यानी यह बैंक बैंकिंग सिस्टम का कबाड़ी खरीदने के लिए बना है। परंतु एक समझने वाली बात यह है कि जब बैंक कर्जों की वसूली नहीं कर पाते, उस बकाया राशि के बदले अपने मुनाफे से उसके बराबर पैसा डाल देते हैं और उन पैसों को खाता से हटाया नहीं जाता परंतु बैंक उस बकाया राशि को या एनपीए को अपनी बैलेंस शीट में इसकी भरपाई करके दिखा देती हैं।
परंतु यह देखना है की अब इतनी बड़ी राशि की वसूली क्या बैड बैंक कर पाएगा, यह संदेह के घेरे में है। पहले चरण में यह बैंक दो लाख करोड़ का एनपीए खरीदेगा। बैड बैंक इन एनपीए को खरीदने के लिए अपना रेट तय करेगा। अगर किसी बैंक की बकाया राशि एक लाख करोड़ है तो बैड बैंक उसे 10 प्रतिशत या 15 प्रतिशत राशि देकर खरीदेगा, शेष राशि की सिक्योरिटी भारत सरकार देगी।
अब यह भी महत्वपूर्ण है कि बैड बैंक के प्रवर्तक या इसके मालिक कौन होंगे तो बैड बैंक देश के 12 सरकारी बैंकों और चार प्राइवेट बैंकों को मिला बनाया गया है और यही 16 बैंक मिलकर इसमें पूंजी डालेंगे, मतलब अब जो पूजी बैड बैंक एनपीए को खरीदने के लिए लगाएगी वह पैसा भी सरकार बैंकों से ही डलवाएगी। मतलब वापस डूबे पैसे को निकालने के लिए 16 बैंक अपना पैसा लगा रहे है यह खेल समझ के परे है, मतलब सारी व्यवस्था गोलमाल है क्योंकि इतनी पूजा वापस लगाने के बाद भी कल की कोई गारंटी नहीं है की कितनी वसूली होगी और यह भी संभावना है कि यह पूंजी भी डूब जाए।
मजेदार बात यह है कि सरकार भी यह मानती है की इन डूबे पैसों में से अधिकतम 20% की ही वसूली हो सकती है।
यह जानने के बावजूद भी वापिस इतना पैसा लगाना वसूली के नाम पर समझ के परे है। बैंक अपना डूबा हुआ पैसा खाते से हटा नहीं सकती उसको राइट ऑफ करती है तो बैंकों के लिए यह राहत की बात है कि बैंक यह मानकर चल रही है कि उसकी डूबी पूजी का 10 से 15 प्रतिशत उसे प्राप्त हो जाएगा। यह भारत सरकार द्वारा बैंकों के एनपीए की रिकवरी का आखिरी प्रयास है। बैंक को बचाने के लिए सरकार बैंक करेप्सी कानून भी ला चुकी है, परंतु वह ज्यादा प्रभावी नहीं हो सकी है। अगर बैंड बैंक के इतिहास की बात करें तो सबसे सफल स्वीडन में रहा है जहां पर 86% तक वसूली हो पाई थी, उसके बाद मलेशिया में 58% कोरिया में 60% और थाईलैंड में 40% वसूली हो पाई थी, परंतु अपने यहां सरकार इसको 20 परसेंट ही मानकर चल रही है। ग्रीस, रूस और इंडिया यह विश्व के सबसे बुरे टॉप देश हैं जहां कर्जों की वसूली सबसे खराब है । मतलब भारत विश्व में तीसरे स्थान पर है जहां कर्ज की वसूली का रेट विश्व में तीसरे नंबर पर है, इससे यह साफ है कि बैंकों के कार्यों को किस तरीके से और पारदर्शी करने की आवश्यकता है। सरकार का लक्ष्य कर्ज वसूली के साथ-साथ यह भी है कि बैड बैंक के द्वारा सरकार बैंकों का एनपीए खरीद कर उनके बैलेंस शीट को अच्छी की जाए और वह बाजार से दूसरी कर्ज भी ले सके और उनका बैलेंस शीट अच्छा हो जाने के बाद उनका निजी करण या बिक्री कर दिया जाए।
सरकार ने क्लियर कर दिया है कि अब वह बैंकों में कोई भी पूजी नहीं डालेगी बल्कि बैंकों का आपस में मर्जर करेगी या फिर निजीकरण करेगी । सरकार का बैंकों को कीचड़ से निकालने का यह आखिरी प्रयास है परंतु जो सबसे बड़ा खेल बैड बैंक के साथ होने की संभावना है वह यह है कि बैंक फसे कर्जों का सिर्फ 10 परसेंट भी वसूली नहीं कर पाई, उसको वह बैड बैंक को 20% में बेचने की कोशिश करेगी, मतलब बैंकों को अपने कर्ज को बैड बैंक में बेचने का एक नया और बड़ा घोटाला सामने आ सकता है। बाद बैंक के अन्य बैंक के अधिकारियों के साथ मिलकर वैसा ही घोटाला कर सकते हैं, जैसा घोटाला अमीरों ने बैंकों के साथ किया था। परंतु यह सबसे बड़ा सवाल है कि क्या बैड बैंक जो कर्ज खरीदेगी उसकी वसूली कितने समय में करेगी, साथ ही जिन्होंने कर्ज ले रखा है, भाग गए हैं, भाग जाते हैं , आते नहीं और बहुत सारे वर्गों का कर्ज सरकार खुद ही माफ करने की घोषणा करती रहती है, इन परिस्थितियों में बैंकों का चलना संदेह के घेरे में है।
सरकार ने इशारों ही इशारों में यह जता दिया है कि उसकी मंशा सिर्फ दो सरकारी बैंक और दो प्राइवेट बैंक चलाने की है बाकी का किसी और बैंक के साथ मर्जर या फिर बिक्री कर दी जाएगी, क्योंकि डूबते कर्जों की भरपाई संभव नहीं है और सरकार बहुत सारे बैंकों से छुटकारा भी पाना चाहती है। सरकार की अंतिम प्रयास है कि वह बैड बैंक के माध्यम से सभी बैंकों का बैलेंस शीट साफ कर उनके निजीकरण या बेचने की प्रक्रिया चालू करें परंतु इस पूरी प्रक्रिया में कहीं भी किसी भी बिंदु पर साफ-साफ कुछ भी बताने से सरकार पीछे हट रही है, जैसे बैड बैंक जो कर्ज खरीदेगी वह कितनी पारदर्शी होगी, बैड बैंक इन कर्जों की वसूली कितने सालों में करेगी, बैड बैंक कर्जा खरीदने के बाद अगर उसकी वसूली नहीं करती तो जिन बैंकों ने अपना पैसा लगाया है उनकी पूंजी वापिस डूब जाएगी उसके लिए सरकार क्या करेगी, बैड बैंक कितने सालों के लिए या हमेशा के लिए रहेगी, बैड बैंक की कार्यप्रणाली अभी भी पूर्ण रूप से पारदर्शी तरीके से प्रस्तुत नहीं की गई है। इसलिए वर्तमान में यही कहा जा सकता है की बैड बैंक यानी गोलमाल है भाई सब गोलमाल है।
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