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Odisha Elephant Whisperers : जिस प्रजाति ने भारत को किया अलंकृत, वह अपने अस्तित्व को बचाने की लड़ रहा लड़ाई

Odisha Elephant Whisperers : हाथी पर बनी भारतीय डॉक्यूमेंट्री फिल्म को सिनेमा जगत का सबसे बड़ा पुरस्कार ऑस्कर से नवाज़ा गया है लेकिन चलचित्र और धर्म की बातों से इतर जमीनी सच्चाई शायद कुछ और हैं...
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मयूरभंज, ओडिशा। हाथी, एक ऐसा विशालकाय जानवर जिसका महत्व दुनिया के हर धर्मों में पाया जाता है। हिंदू धर्म में हाथी भगवान गणेश का जीवित अवतार माना गया है तो बौद्ध धर्म में गौतम बुद्ध का एक अवतार हाथी को बताया गया है। हाल ही में हाथी पर बनी भारतीय डॉक्यूमेंट्री फिल्म को सिनेमा के जगत का सबसे बड़ा पुरस्कार ऑस्कर से नवाज़ा भी गया है लेकिन चलचित्र और धर्म की बातों से इतर जमीनी सच्चाई शायद कुछ और बता रही हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि जहां एक तरफ भारत जहाँ हाथी पर बनी डॉक्यूमेंट्री फिल्म को मिले इतने बड़े पुरस्कार की खुशी मना रहा है, वहीं दूसरी तरफ ओडिशा राज्य के मयूरभंज जिले में स्थित सिमिलिपाल वन जो कि एक हाथी अभयारण्य क्षेत्र भी है, फरवरी माह से आग की लपटों से घिरा हुआ है, जिससे वहां बसने वाले जानवर, पक्षी, पेड़-पौधें, अनमोल वनस्पतियों एवं जनजातियों को क्षति पहुंच रहीं है।

लेकिन लगभग हर साल आग लगने की घटना होने के बावजूद भी राज्य सरकार उस भीषण फैलती हुई आग को रोकने की स्थिति में नहीं है। हाथियों की जनसंख्या के मामले में ओडिशा, देश में पांचवे स्थान (1976 हाथी) पर है। हाथियों के लिए इतना महत्वपूर्ण क्षेत्र होने के बावजूद हर साल सिमिलिपाल वन में क्यों आग का कोहराम देखने को मिलता है? क्यों भारत और दुनिया के लिए इतना महत्वपूर्ण है सिमिलिपाल वन क्षेत्र? आखिर क्या है ओडिशा में हाथियों की दशा? चलिए आपको बताते है।...

ओडिशा के वन मंत्री द्वारा दी गई डरावनी जानकारी

बीते दिन ओडिशा विधानसभा में एक लिखित जानकारी देते हुए ओडिशा के वन एवं पर्यावरण मंत्री प्रदीप कुमार अमत ने बताया कि पिछले 10 साल (2012 से 2022) में ओडिशा के भीतर लगभग 784 हाथियों की मौत हो चुकी है। उन्होंने बताया कि हाथियों की मौत का सबसे बड़ा कारण मनुष्य और हाथी के बीच का टकराव, शिकारी गतिविधियां और बिजली के झटके है।

वन मंत्री ने आगे जानकारी देते हुए कहा कि वन विभाग और सुरक्षाकर्मियों द्वारा 39 हाथियों की मौत पर जांच हुई जिसमे 50 लोगों पर एफआईआर भी दर्ज की गई लेकिन इनमें से किसी भी मामले में किसी आरोपी को जेल नहीं हुई है। हाथियों को वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 के के तहत संरक्षित किया जाता है और इसी अधिनियम के अनुच्छेद 1 के तहत हाथी को मारने पर 7 साल की जेल का प्रावधान है। पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़ और ओडिशा में सबसे ज्यादा हाथियों की मौत रिकॉर्ड की जाती है।

फरवरी से चल रहा आग का सैलाब

ओडिशा की मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक सिमिलिपाल वन क्षेत्र में भीषण आग का कहर देखने को मिल रहा है। आग मयूरभंज जिले के पोडाडीह, पत्थरखानी, बेंगोपाटा, और चिताबनी इलाके तक पहुंच चुकी है। आग के कारण आर्किड फूल की 900 से ज्यादा प्रजाति और कई औषधीय पौधों पर खतरा मंडरा रहा है। आग पर काबू पाने के लिए वन विभाग के कर्मचारियों ने आस पास कॉलेज और स्कूल के विद्यार्थियों की मदद ली है इसके साथ ही हेलीकॉप्टर से पानी का छिड़काव भी किया गया है लेकिन आग का सैलाब रुकने का नाम नहीं ले रहा है। वन्य जीवन के अलावा स्थानीय ग्रामीण लोगों को भी आग का डर सता रहा है।

वन कर्मचारी द्वारा बताया गया कि वह इस आग को पूर्णतः रोकने के लिए सक्षम नहीं है क्योंकि उनके पास जनशक्ति और आधुनिक मशीन एवं तकनीक की कमी है। उन्होंने बताया कि यह आग जंगल के शिकारियों द्वारा लगाई गई है, जो हर साल ऐसी घटना को अंजाम देते है। वर्तमान में सिमिलीपाल वन के आसपास 25 फायर पॉइंट्स का पता लगाया गया है लेकिन पर्यावरणविदों द्वारा बताया जा रहा कि यह अकड़ा 35 के भी पार हो सकता है। आग के कारण इस वन में रहने वाले बड़े जानवरों जैसे एशियन हाथी, बाघ, चौसिंगा आदि को खतरा है जो आग से इतर शिकारियों, रेल पटरियों, बिजली की तारों जैसे अन्य दिक्कतों का सामना कर रहे है।

आग लगने के कारण

वन विभाग के कर्मचारियों के अनुसार वन में आग लगने के दो कारण बताए गए है जिसमे पहला कारण है शिकारी जो जानबूझकर सूखे पेड़ों में आग लगा कर जानवरों को मारने का प्रयास करते है और दूसरे वो ग्रामीण जो महुआ के फूल को जमीन से बिनने के बाद उसकी सुखी पत्तियों में आग लगा देते है। साल 2021 के मार्च माह में भी इसी तरह की भीषण आग का तांडव देखने को मिला था, जिसने सिमिलिपाल वन क्षेत्र को भारी नुकसान पहुंचाया था। इसी साल जनवरी महीने में वन विभाग द्वारा ऐसी जंगल की आग से निपटने के लिए जागरूकता कार्यक्रम चलाया गया था जिसके तहत उन्होंने ग्रामीण, स्कूल और कॉलेज के विद्यार्थियों, अन्य युवाओं को आग से बचने और उसने निपटने के उपायों के बारे में शिक्षित किया था। वन विभाग ने वन सुरक्षा समिति (VSS) का गठन किया था और उन्होंने दावा किया था कि भविष्य में होने वाली ऐसी दिक्कतों के लिए हम तैयार है लेकिन सभी तैयारी दो महीने बाद ही हवा हो गई।

सिमिलिपाल वन और उसका महत्व

सिमिलिपाल,ओडिशा राज्य के मयूरभंज जिले में स्तिथ 2750 वर्ग किलोमीटर में फैला एक वन क्षेत्र है। यह वन भारत सरकार के वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 के तहत रक्षित है। यह वन राष्ट्रीय उद्यान होने के साथ ही वन्यजीव अभ्यारण भी है। (भारत सरकार द्वारा) साल 1956 में सिमिलिपाल को टाइगर रिजर्व, (ओडिशा सरकार द्वारा) साल 1979 में वन्यजीव अभयारण्य, (भारत सरकार द्वारा) साल 1992 में एलीफेंट (हाथी) रिजर्व और (भारत सरकार द्वारा) साल 1994 में जीवमंडल (Biosphere) रिजर्व बनाया गया था। यह 1076 वन पौधों, 42 दुर्लभ जानवर, 242 पक्षी और 30 सरिसर्प (Reptiles) की प्रजातियों का घर है।

यह वन एशिया का दूसरा विशालतम जीवमंडल रिजर्व है, जिसकी वजह से इसे संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और संस्कृति संगठन द्वारा जीवमंडल रिजर्व के विश्व संजाल योजना के तहत संरक्षित और विश्व विरासत स्थल का दर्जा प्राप्त है। यह वन एशियन हाथियों का घर माना जाता है जिसकी वजह से यह हाथियों के पालन पोषण के लिए जरूरी क्षेत्र माना जाता है। ओडिशा में तीन हाथी अभयारण्य बनाए गए है जिसमे पहला है महानदी हाथी अभयारण्य, दूसरा संभलपुर हाथी अभयारण्य और तीसरा है मयूरभंज हाथी अभयारण्य जिसके भीतर सिमलीपाल वन क्षेत्र आता है। जानवरों और जीवों के अलावा यहां 61 गांव भी है जहां 10 हज़ार से ज्यादा आदिवासी वास करते है।

हाथियों को बुद्धिमता, संवेदनशीलता, मजबूती और शक्ति के प्रतीक के तौर पर देखा जाता है। इसके साथ ही हिंदू धर्म के सभी बड़े–बड़े ग्रंथो में हाथियों के महत्व का जिक्र किया गया है लेकिन शायद आज का भारत उनकी संवेदनशीलता और मजबूती की अग्निपरीक्षा ले रहा है। देश में फिलहाल सिर्फ 30 हजार ही हाथी बचे है जो एक समय पर लाखों में हुआ करते थे।

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