आरएसएस, भाजपा को सिख मामलों में दखल देना बंद करना चाहिए
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आरएसएस, भाजपा को सिख मामलों में दखल देना बंद करना चाहिए : भाई गुरचरण सिंह ग्रेवाल

एसजीपीसी के महासचिव भाई गुरचरण सिंह ग्रेवाल ने मंगलवार को आरएसएस के प्रमुख मोहन भागवत को पत्र लिखकर उनसे सिख मामलों में आरएसएस और भाजपा के अनावश्यक हस्तक्षेप को रोकने के लिए कहा।
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अमृतसर। शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) के महासचिव भाई गुरचरण सिंह ग्रेवाल ने मंगलवार को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत को पत्र लिखकर उनसे सिख मामलों में आरएसएस और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के अनावश्यक हस्तक्षेप को रोकने के लिए कहा। एसजीपीसी के स्थापना दिवस पर लिखे पत्र में भाई ग्रेवाल ने कड़े शब्दों में लिखा है कि एसजीपीसी महान बलिदानों के बाद अस्तित्व में आई और इसकी स्थापना के लिए शुरू हुए संघर्ष ने देश की आजादी की नींव रखी, लेकिन दुख की बात है कि भाजपा शासित केंद्र सरकार और भाजपा नेता एसजीपीसी मामलों को जटिल बनाने के लिए सीधे हस्तक्षेप कर रहे हैं। इस हस्तक्षेप का एक ज्वलंत उदाहरण नौ नवंबर को एसजीपीसी के पदाधिकारियों के वार्षिक चुनाव के दौरान सामने आया है।

उन्होंने कहा कि भाजपा शासित हरियाणा सरकार और संवैधानिक पदों पर भाजपा नेताओं ने एसजीपीसी चुनाव में सीधे हस्तक्षेप किया है।उन्होंने कहा कि इस संस्था ने अपनी 102 साल की गौरवमयी यात्रा पूरी कर ली है, इस दौरान इसने गुरुद्वारा साहिबों के प्रबंधन के साथ-साथ सिख धर्म के प्रचार, स्वास्थ्य-शिक्षा और मानवीय कार्यों के लिए अनुकरणीय कार्य किया है। एसजीपीसी ने भी जिम्मेदारी से सिख मुद्दों को बार-बार उठाया है। श्री ग्रेवाल ने श्री भागवत को लिखा, “यदि यह (हस्तक्षेप) आपकी जानकारी के बिना हो रहा है तो आपको तुरंत हस्तक्षेप करना चाहिए और यदि यह आपके संज्ञान के साथ है तो यह आपके संगठन (आरएसएस) के लिए आपके वैचारिक दृष्टिकोण पर विचार करने का सही समय है। इस बहु-सांस्कृतिक और बहु-धार्मिक समाज में आपसी धार्मिक संबंधों में दरार पैदा कर रहा है, जो मुझे डर है कि भविष्य में गहराएगा। यह घटना सिखों के मन में अस्थिरता पैदा करेगी जो देश के लिए अच्छा नहीं है।” उन्होंने कहा कि जिस रास्ते पर आरएसएस और उसकी राजनीतिक शाखा भाजपा चल रही है, उसमें सिख विरोधी कांग्रेस वर्ग इस तरह से दखलअंदाजी करता था। एसजीपीसी के महासचिव ने सुझाव दिया कि आरएसएस और भाजपा को सिख मामलों में हस्तक्षेप बंद करना चाहिए और कौमी (समुदाय) के मुद्दों को उलझाने के लिए की गई गतिविधियों में शामिल होने से बचने के अलावा अपने दृष्टिकोण पर गहन विचार मंथन करना चाहिए।

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