मध्य प्रदेश की राजनीति अपने आप में एक अलग इतिहास लिख रही है कांग्रेस हो या भारतीय जनता पार्टी दोनों के दिग्गज नेता एक दल से दूसरे दल में जा रहे हैं जब बड़े नेता पार्टी बदलते हैं तो उनके साथ स्थानीय पदाधिकारी एवं कार्यकर्ता भी पार्टी बदल लेते हैं इससे पार्टी को संगठनात्मक रूप से बड़ा नुकसान उठाना पड़ता है। मध्य प्रदेश की राजनीति में आपने कुछ दिन पहले देखा होगा कि किस प्रकार से पूर्व कांग्रेस नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीजेपी में आने से मध्यप्रदेश में कांग्रेस की कमलनाथ सरकार गिर गई थी।
मध्य प्रदेश के नेता प्रागी लाल जाटव सहित दो दर्जन से अधिक बसपा नेताओं ने रविवार को कांग्रेस ज्वाइन कर ली है। बता दें कि जाटव पहले शिवपुरी के करेरा निर्वाचन क्षेत्र से विधानसभा चुनाव लड़े थे। मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ से मुलाकात के बाद नेताओं ने कांग्रेस पार्टी की सदस्यता ग्रहण की। अब निकट भविष्य में राज्य में उपचुनाव जरूरी हो गए हैं क्योंकि सिटिंग विधायकों के इस्तीफा देने के बाद सीटें खाली हो गईं। उपचुनाव सितंबर में होने की उम्मीद है।
अब एक बात तो स्पष्ट है कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल हुए कमलनाथ सरकार के पूर्व मंत्रियों को बीजेपी की शिवराज सरकार में अहम भूमिका में रखा गया है इससे भारतीय जनता पार्टी के कुछ नेताओं में भी असंतोष पैदा हो गया है। अब देखना यह होगा की बीजेपी असंतुष्ट नेताओं को संभालने में कामयाब होती है या फिर निकट भविष्य में बीजेपी का दामन छोड़कर कुछ और नेता कांग्रेस को ज्वाइन करते हैं।
मध्यप्रदेश में 24 सीटों पर उपचुनाव होना है। इसमें 22 सीटें कांग्रेस विधायकों के इस्तीफा देने और दो सीटें विधायकों के निधन से खाली हुई हैं। स्पष्ट बहुमत के लिए जरूरी आंकड़ा 116 है। मौजूदा समय भाजपा के पास 107 विधायक हैं तो कांग्रेस के पास 92 की संख्या है। इस प्रकार देखें तो शिवराज सिंह चौहान सरकार को स्पष्ट बहुमत के लिए सिर्फ नौ सीटों की जरूरत है तो कांग्रेस को सभी 24 की 24 सीटें जीतनी होंगी। इससे एक बात तो स्पष्ट होती है अगर कमलनाथ सरकार को मध्यप्रदेश में वापसी करनी है तो उन्हें 24 में से 24 सीटें जितनी होगी जो कि कांग्रेस के लिए अपने आप में एक कठिन लक्ष्य है।
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