भीलूड़ा गांव में पत्थरों से खेली जाती है होली।
सदियों से चल रही है यह परंपरा।
घायल हो जाते हैं लोग।
पत्थर फेंककर दुश्मनी निकालते हैं लोग।
राज एक्सप्रेस। भारत में होली भले ही एक त्योहार है, लेकिन इसे अलग-अलग तरह से मनाया जाता है। आपने बरसाना की लट्ठमार होली और मथुरा-वृंदावन की होली के बारे में तो सुना ही होगा। लेकिन आज हम आपको भारत के एक ऐसे गांव के बारे में बताने जा रहे हैं, जहां न रंग की, न फूल की और न ही लट्ठ से होली खेली जाती है, बल्कि यहां के लोग पत्थरों से होली खेलते हैं। इस अनोखी परंपरा के बारे में शायद ही पहले कभी आपने सुना हो। हालांकि, यह परंपरा इतनी खतरनाक है कि लोग इसमें घायल तक हो जाते हैं। फिर भी आज तक इस परंपरा को निभाया जा रहा है। तो आइए जानते हैं इस गांव के बारे में।
यह खतरनाक रिवाज दक्षिणी राजस्थान के उदयपुर संभाग में मध्य प्रदेश और गुजरात राज्य से सटे डूंगरपुर के आदिवासी इलाके के भीलूड़ा गांव में देखने को मिलता है। भीलूड़ा गांव डूंगरपुर और बांसवाड़ा जिले के बीच सागवाड़ा कस्बे के पास स्थित है। भीलूड़ा के अलावा, यह खतरनाक खेल रामगढ़ गांव में भी खेला जाता है।
आप सोच सकते हैं कि पत्थरों से होली खेलने का क्या मतलब होता है। यह इतना खतरनाक होता है कि हर साल लोग इसमें घायल हो जाते हैं। प्रशासन को होली के मौके पर घायल लोगों को अस्पताल पहुंचाने के लिए एम्बुलेंस, 108 सेवा और पुलिस को तैनात करना पड़ता है।
होली से पहले हम सभी लाेग रंग, गुलाल और फूल इकट्ठा करना शुरू कर देते हैं। वहीं यहां के लोग में होली से पहले पत्थरों को इकट्ठा करने का रिवाज है। यह खेल रात में ही होलिका दहन के बाद शुरू होता है और धुलंडी के दिन तक जारी रहता है। इस प्रथा के माहौल मेंलोग ढोल, कुंडी, चांग बजाते हैं। इस परंपरा को यहां के लोग 'राड़' कहते हैं।। राड़ का एक अर्थ शत्रुता या दुश्मनी निकालना भी है।
कहा जाता है कि यहां पत्थर से होली खेलने का रिवाज बहुत पुराना है। सालों से चली आ रही इस परंपरा के तहत लोग एक-दूसरे पर पत्थर फेंककर होली खेलते हैं। ढोल, चंग, कुंडी आदि की थाप पर नाचते हुए दो समूहों में युवा पिचकारी से पानी की बौछार करते हैं और एक-दूसरे पर जमकर पत्थर बरसाते हैं। हाथों में घोफन लिए, सुरक्षा के लिए ढाल लिए, पैरों में बंधे घुंघरुओं की झंकार के साथ वे इस तरह पत्थर बरसाते हैं कि दूसरी तरफ के लोग घायल हो जाते हैं और लहूलुहान हो जाते हैं।
होली के इस शौर्य प्रदर्शन में लोगों का उत्साह देखने लायक होता है। ढोल की थाप पर नाचते और होली के गीत गाते हुए, आदिवासी बस्तियों के लोग पारंपरिक तरीके से 'राड़' का खेल खेलने के लिए राघनाथ मंदिर के पास गर्ल्स स्कूल के खेल के मैदान में इकट्ठा होते हैं। हजारों लोग इस अनोखे खूनी खेल को देखने के लिए पहुंचते हैं। शुरुआत में लोग 'गेर नृत्य' करते हैं और एक बार जब यह नृत्य खत्म हो जाता है, तो वे 'राड़' बजाना शुरू कर देते हैं।
पारंपरिक पोशाक पहने, पैरों में घुंघरू बांधे, हाथों में ढाल और गोफाण लिए हुए, जब होरिया के जयघोष के साथ 'राड़' शुरू होती है, तो गोफांस के साथ पत्थरों की बौछार शुरू हो जाती है। इस खतरनाक और खूनी होली खेल को रोकने के लिए राज्य सरकार और जिला प्रशासन कई सालों से लोगों को समझाने का प्रयास कर रहे हैं, लेकिन आंशिक रूप से ही सफल हो पा रहे हैं।
इस गांव के लोगों का कहना है कि यह उनकी आपसी दुश्मनी से जुड़ी सदियों पुरानी परंपरा है। जो साल में केवल एक बार ही बुराइयों को जड़ से खत्म करती है, इसलिए इसे बंद नहीं किया जाना चाहिए। शैक्षिक अभियानों से यह प्रथा पूरी तरह बंद तो नहीं हुई है, लेकिन थोड़ी कम जरूर हो गई है।
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