महिलाओं को जानने चाहिए अपनी सुरक्षा से जुड़े कानून के बारे में।
कोई पीछा करे, तो आईपीसी धारा 354 डी आती है काम।
भारतीय तलाक अधिनियम 1969 के तहत पुरुष भी खत्म कर सकते हैं शादी।
अंधेरे में महिलाओं को नहीं किया जा सकता गिरफ्तार।
राज एक्सप्रेस। आज के दौर में पुरुषों की तुलना में महिलाएं ज्यादा स्वतंत्र हैं। वे डॉक्टर, पुलिस, वकील, टीचर, डिजाइनर, ट्रक ड्राइवर और कई ऐसे क्षेत्रों में काम कर रही हैं, जहां पर हमेशा पुरुषों का वर्चस्व रहा है। घर हो या बाहर वे अपनी जिम्मेदारी पूरी ईमानदारी के साथ निभा रही हैं। लेकिन महिलाओं को हर दिन किसी न किसी समस्या का सामना करना पड़ता है। इसके बावजूद भी महिलाएं आज भी अपने अस्तित्व के लिए लड़ रही हैं। क्या आप जानते हैं कि भारत में हर मिनट एक महिला अपराध का शिकार होती है। चाहे वे घर पर हों, पब्लिक प्लेस पर हों या काम पर हों, महिलाएं कहीं सुरक्षित नहीं हैं। ऐसे में जरूरी है कि उन्हें अपने हक और अधिकार के बारे में जानकारी हो। कुछ कानून उनके खिलाफ होने वाले अपराधों को देखते हुए उनकी सेफ्टी के लिए बनाए गए हें। तो आइए जानते हैं महिलाओं को संविधान और केंद्र सरकार की तरफ से कौन-कौन से अधिकार दिए गए हैं।
अगर कोई पुरुष आपका पीछा कर रहा है, तो आप आईपीसी की धारा 354 डी के तहत उस अपराधी के खिलाफ कार्यवाही कर सकती हैं। अगर व्यक्ति आपकी दिलचस्पी न होने पर भी बार-बार आपसे संपर्क करे या फिर आपके ईमेल या इंटरनेट पर नजर बनाए रखे, तो भी आप सख्त एक्शन ले सकती हैं।
एक महिला जो पत्नी है, लिव इन पार्टनर है या किसी की मां या बहन है, उसे भारतीय संविधान की धारा 498 के तहत घरेलू हिंसा से सुरक्षित किया गया है। महिलाओं पर अत्याचार करने वाले पुरुषों को भुगतान करने के अलावा पूरे तीन साल की जेल भी हो सकती है।
दहेज निषेध अधिनियम 1961 कहता है कि दुल्हन, दूल्हे या उनके माता-पिता द्वारा शादी के दौरान, पहले या बाद में दहेज न तो दिया जा सकता है और न ही स्वीकार किया जा सकता है। फिर भी आज कई महिलाएं दहेज प्रथा का सामना कर रही हैं। अगर आप किसी को दहेज देते हैं, लेते हैं या देने या लेने में मदद करते हैं, तो आपको कम से कम पांच साल की जेल और 15,000 रुपये का जुर्माना भरना होगा।
अगर शादीशुदा महिला का अपने पति के साथ रिश्ता अच्छा नहीं है, तो आपको इस कानून के बारे में भी पता होना चाहिए। भारतीय तलाक अधिनियम के तहत न सिर्फ महिला बल्कि पुरुष भी शादी के रिश्ते को खत्म कर सकते हैं। फैमिली कोर्ट ऐसे मामलों को दर्ज करने, सुनने और निपटाने के लिए बनाए गए हैं।
किसी महिला को अंधेरे और सूर्योदय के बीच हिरासत में नहीं लिया जा सकता। ऐसा तब तक नहीं हो सकता, जब तक कि कोई असामान्य परिस्थिति न हो और गिरफ्तारी फर्स्ट ग्रेड मजिस्ट्रेट द्वारा ऑथराइज्ड न हो। कानून में आगे कहा गया है कि पुलिस किसी महिला से केवल उसके घर पर महिला कांस्टेबल, उसके परिवार या दोस्तों की उपस्थिति में ही पूछताछ कर सकती है।
कई महिलाएं अन्याय सहने के बाद भी खुलकर शिकायत नहीं कर पाती। क्योंकि वे अपने परिवार की स्थिति को बनाए रखना चाहती हैं। इस प्रकार, हर किसी को गुमनाम रहने का अधिकार है। जिन लोगों पर यौन हमला या उत्पीड़न हुआ है, उन्हें खासतौर से इन कानून की जरूरत है। अपनी गोपनीयता की रक्षा के लिए, भारतीय दंड संहिता की धारा 228 (ए) के तहत मुकदमे के दौरान जिला मजिस्ट्रेट के सामने महिला पुलिस अधिकारी के सामने गुमनाम बयान दे सकती है।
यह महिलाओं की खुद की रक्षा से जुड़ा अधिकार है। जब आपको लगता है कि हमलावर आपको मार सकता है, आपको गंभीर रूप से चोट पहुंचा सकता है, आपका बलात्कार कर सकता है, आपका अपहरण कर सकता है, आपको एक कमरे में बंद कर सकता है या फिर आप पर तेजाब फेंक सकता है , तो इस कानून के तहत हमलावर को मारने की पूरी अनुमति है। ऐसा करने पर आपको किसी तरह की सजा नहीं सुनाई जाएगी।
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