बच्चों के जीवन के लिए जरूरी है जिम्मेदारी सिखाना।
6-8 साल की उम्र में सिखाएं जिम्मेदारी।
घर के काम करने के लिए कहें।
बच्चे पर भरोसा करना सीखें।
राज एक्सप्रेस। हर माता-पिता अपने बच्चे को अच्छे संस्कार देना चाहते हैं। जिसके लिए वे उन्हें अच्छे स्कूल में भेजते हैं। वहां उनकी शिक्षा से जुड़ी जरूरतें तो पूरी हो जाती हैं , लेकिन बच्चा जीवन में कठिन परिस्थितियों का सामना करना नहीं सीख पाता। किताबी ज्ञान से हटकर जिम्मेदारी का ज्ञान स्कूल नहीं बल्कि माता-पिता ही दे सकते हैं। जिम्मेदारी एक ऐसा मूल्य है, जिसे कम उम्र से ही बच्चों के व्यवहार में लाया जाना चाहिए। यह न केवल समाज के लिए बल्कि बच्चों के जीवन के लिए भी अच्छा है। इससे वह बाहर की दुनिया से लड़ना और उसका सामना करना सीखते हैं। इसके अलावा कम उम्र से ही उन्हें जिम्मेदारी का अहसास कराया जाए, तो वे सेल्फ डिसिप्लिन, टाइम मैनेजमेंट और जवाबदेही सीखते हैं। इससे उन्हें बड़े होने का भी अहसास होता है। आप भी अपने बच्चों को जिम्मेदारी सिखाना चाहते हैं, तो यहां दिए गए कुछ टिप्स आपकी मदद कर सकते हैं।
ग्रेड-स्कूल के छात्र विभिन्न जिम्मेदारियों को संभालने में काफी सक्षम हैं और वे धीरे-धीरे समझ विकसित करते हैं। जब बच्चा 6-8 साल की उम्र का हो, तभी से उसे उसकी जिम्मेदारी का अहसास कराना शुरू कर देना चाहिए।
जिम्मेदारी और स्पष्टता साथ-साथ चलती है। जिम्मेदार बनाने के लिए नियम बनाने जरूरी हैं। नियम बनाने के साथ ही उन्हें बताएं कि यह क्यों जरूरी हैं और इनका पालन न करने के क्या परिणाम हो सकते हैं।
बच्चों के लिए जिम्मेदारी का मतलब काम होता है। ज्यादातर बच्चे काम से जी चुराते हैं। इसलिए जिम्मेदारी को उनके फायदों से जोड़कर बताएं। बच्चों को बताएं कि यह उनकी भलाई के लिए है।
कई बार हम जो काम उन्हें सौंपते हैं, कुछ समय बाद खुद ही उसे करने लग जाते हें। क्योंकि जब तक काम पूरा न हो जाए, हम धैर्य नहीं रख पाते और खुद वो काम खत्म कर देते हैं। इन मामलों में, हमें उन्हें कार्य सौंपना चाहिए और उन्हें पूरा करने के लिए एक समय सीमा देनी चाहिए।
हम जो कहते और करते हैं उसके अनुरूप बने रहना जिम्मेदारी निभाने का एक और तरीका है। अगर बच्चे गलती करते हैं , तो हमें अपनी बात पर टिके रहना चाहिए और उस काम को कैसे भी पूरा करने के लिए कहना चाहिए। अगर ऐसा नहीं होता, तो हमारी बात का मूल्य खो जाता है और बच्चे भी वैल्यू नहीं करते।
रोल मॉडल के जरिए भी जिम्मेदारी सिखाई जाती है। पेरेंट्स के रूप में हम उन्हें दिखा सकते हैं कि हम खुद प्रतिबद्धताओं और दायित्वों को कैसे पूरा करते हैं और इसके क्या नतीजे हैं।
कुछ स्टडीज से पता चलता है कि घरेलू कामकाज बच्चों में जिम्मेदारी पैदा करने में मदद करते हैं। हार्वर्ड यूनिवर्सिटी की एक स्टडी में पाया गया कि "कामकाज इस बात का अच्छा संकेत होते हैं कि बच्चे बड़ होकर स्वस्थ और स्वतंत्र व्यस्क बन सकते हैं। बच्चों को काम न देने से वे किसी काम को करने का प्रयास नहीं करेंगे और जिम्मेदार बनने से वंचित रह जाएंगे।
जैसे-जैसे बच्चा बड़ा होता जाता है, वह घर से बाहर निकलना शुरू करता है, तब आपके लिए उस पर भरोसा करना चुनौतीपूर्ण है। बच्चे की चिंता माता-पिता पर हावी हो सकती है, लेकिन आपको उन्हें ज़िम्मेदार होने का मौका देना होगा। तब बच्चा फील कर सकेगा कि आप उसके फैसलों पर भरोसा करते हैं। ऐसे बच्चे आगे चलकर अच्छे डिसीजन मेकर भी बनते हैं।
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