कोटा में आईआईटी-जेईई, नीट की तैयारी हर बच्चे का सपना।
कॉम्पीटीशन के डर से छात्र करते हैं सुसाइड।
कोटा जाने से पहले अपना इंटरेस्ट जानें छात्र।
पेरेंट्स भी देख लें अपनी फाइनेंशियल कंडीशन।
राज एक्सप्रेस। हाल ही में राजस्थान के कोटा शहर से जेईई की तैयारी कर रही छात्रा के सुसाइड का मामला सामने आया है। 18 साल की छात्रा ने सुसाइड नोट में लिखा है कि - मैं जेईई नहीं कर सकती। मैं लूजर हूं। यह साल 2024 का दूसरा ऐसा मामला है। पिछले सालों में भी ऐसे कई मामले सामने आए हैं, जिसमें छात्रों ने पढ़ाई के दबाव के कारण यह खतरनाक कदम उठाया। ऐसे मामलों में विशेषज्ञों और मनोचिकित्सकों को मानना है कि बच्चाें पर कोचिंग स्ट्रेस से ज्यादा माता-पिता के सपनों को पूरा करने का दबाव होता है।
बता दें कि कोटा एक ऐसा शहर है, जो बच्चों के एम्स और आईआईटी में एंट्रेंस के दरवाजे खोलता है। लेकिन यहां का कॉम्पिटेटिव माहौल न केवल बच्चे को परेशान करता है, बल्कि उसे मानसिक रूप से भी अस्वस्थ बना सकता है। यहां आने वाले बच्चों को कई चीजें फेस करनी पड़ती हैं। अगर आप भी अपने बच्चे को कोटा भेजने की तैयारी कर रहे हैं, तो उसकी योग्यता की जांच जरूर कर लें।
कोटा जाने से पहले बच्चों को कैसे प्रिपेयर होना चाहिए यह जानने के लिए हमने कोटा में पढ़ रहे बच्चों और भोपाल के नीट मेंटोर के डायरेक्टर डॉ. अमित गुप्ता से बात की।
विशेषज्ञ मानते हैं कि कोटा में बच्चों को फैमिली एनवायरनमेंट नही मिलता। छात्र जब एक ही पढ़ाई जैसे नीट और आईआईटी , जेईई की तैयारी करने वाले लाखों छात्रों को देखता है, तो कॉम्पीटीशन के डर से उसका स्वयं का आत्मविश्वास टूटने लगता है। इसका असर उसके कॉम्पिटिटिव एग्जाम पर भी पड़ता है। प्रतियोगी परीक्षा में ना होने वाले चयन से क्या चेहरा दिखाएंगे, इस डर से एग्जाम से पहले ही आत्महत्या के लिए प्रेरित होता है।
कोटा जाने से पहले आपको एप्टीटयूड टेस्ट देना चाहिए। इससे आपको समझने में मदद कि आपके लिए सबसे अच्छा क्या है। अगर आप 90% से ज्यादा अंक हासिल कर लेते हैं, तो इसका मतलब सफलता नहीं है। आपको यह जानना होगा कि आपका इंटरेस्ट किसमें सबसे ज्यादा है आईआईटी जेईई या फिर नीट में।
कोटा में आपको अलग-अलग सिटी और बैकग्राउंड के छात्र मिलेंगे हो सकता है उनमें से कुछ लोग अपनी सफलता के प्रति उतने समर्पित न हों। अगर आप ऐसे लोगों के साथ रहते हैं, तो सिर्फ अपने बारे में सोचें। अपने सपनों के प्रति स्वार्थी बनें।
कोटा में जेईई की तैयारी कर रहे सौहार्द गुप्ता के अनुसार, कोटा के अधिकतर छात्र शहर की कैंटीन में खाना खाते हैं और 6-8 महीने में बीमार पड़ जाते हैं। हर दिन बाहर का जंक फूड खाना सेहत के लिए अच्छा नहीं होता। इसलिए हॉस्टल की मैस का खाना आपके लिए सबसे अच्छा विकल्प है। इस खाने की आदत डालें।
कोटा के हर कोचिंग इंस्टीट्यूट में प्रैक्टिस टेस्ट और होमवर्क दिया जाता है। यह एंट्रेंस एग्जाम की तैयारी में काफी मददगार होता है। अगर आप यहां आ रहे हैं, तो आपका पूरा फोकस अपने असाइनमेंट को पूरा करने पर होना चाहिए।
कोटा में स्टूडेंट्स को विचलित लिए कई सारे साइबर कैफे और मूवी हब हैं। अपनी शारीरिक स्थिति और मानसिक स्वास्थ्य को दुरुस्त रखने के लिए पढ़ाई के बीच में ब्रेक लेना जरूरी है, लेकिन ध्यान रखें कि सब कुछ नियंत्रण में हो।
कोटा के ज्यादातर कोचिंग इंस्टीट्यूट में अलग-अलग टीचर्स हैं। पढ़ाने वाले अलग और डाउट क्लियर करने वाले अलग। अगर किसी कारणवश आपका डाउट क्लियर नहीं हुआ है, तो आप इसके लिए टीचर्स की मदद ले सकते हैं। इसलिए आपको डाउट पूछने की आदत भी डालनी होगी।
विभिन्न शहरों, बैकग्राउंड और मानसिकता वाले छात्र अपने सपनों को पूरा करने के लिए कोटा आते हैं और उनमें से बहुत से लोग अपने लक्ष्य के प्रति उतने समर्पित नहीं होते जितना उन्हें होना चाहिए। ऐसे दोस्त बनाएं जिनमें अपने एजेंडे को पूरा करने का जुनून हो। याद रखें, आप अपने सपनों के कॉलेज में दाखिला लेने के लिए आए हैं, दोस्त बनाने के लिए नहीं।
डॉ. अमित गुप्ता के अनुसार पैरेंट्स को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि क्या उनकी फाइनेंशियल कंडीशन इस लायक है की वो हर साल 1 से 1.5 लाख फीस और 10 हजार होस्टल फीस दे सकें।
क्या बच्चा डॉक्टर या आईआईटियन अपनी स्वयं की इच्छा से बन रहा है या उस पर पेरेंट्स या फिर दोस्तों का दबाव है।
क्या उनका बच्चा आत्मविश्वास से भरपूर है।
कोटा भेजने से पहले बच्चे के रिकॉर्ड को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए।
कोटा के लेवल की पढ़ाई भोपाल, इंदौर जैसे शहरों में कम खर्चे में संभव है। अपने ही शहर में रह कर तैयारी करने से बच्चा कोटा की भीड़ भाड़ वाली जिंदगी से बच सकता है और माता पिता की देखरेख में बेहतर तैयारी कर पाता है।
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