गेमिंग डिसऑर्डर से पीड़ित है बच्चा, तो जानें इसके लक्षण और बचाव के तरीके
हाइलाइट्स :
भारत में ऑनलाइन गेम्स खेलने वालों की संख्या 44.2 करोड़ है।
WHO ने गेमिंग डिसऑर्डर को इंटरनेशनल डिजीज की कैटेगरी में शामिल किया !
भारतीय हफ्ते में 8.36 घंटे मोबाइल पर सिर्फ गेम खेलते हैं।
पैरेंट्स अलर्ट रहें और गेमिंग की लिमिट सेट करें।
राज एक्सप्रेस। बच्चों में गेम खेलने का ट्रेंड बढ़ा है। आउटडोर नहीं, बल्कि इंडोर। इंडोर में भी कैरम, चैस या लूडो नही बल्कि ऑनलाइन गेमिंग चल रही है। हालांकि, स्मार्टफोन पर गेम खेलने का ट्रेंड कोई नया नहीं है, लेकिन कोविड के दौरान बच्चों को ऑनलाइन गेम खेलने की आदत लग गई है। उनकी इस आदत ने अब एडिक्शन का रूप ले लिया है। आप मानें या ना मानें, लेकिन आज 10 में से 8 माता-पिता बच्चो के ऑनलाइन गेम खेलने से परेशान हैं। यही वजह है कि अब वे उन्हें गेम की लत से बाहर निकालने के तरीके ढूंढने लगे हैं।
आपको बता दें कि ऑनलाइन गेम की लत के कारण बच्चे गेमिंग डिसऑर्डर से जूझ रहे हैं। गेमिंग डिसऑर्डर में ऐसे बच्चे आते हैं, जिनमें गेमिंग की लत इस कदर बढ़ जाती है , कि मोबाइल न मिलने पर आक्रोशित हो जाते हैं। हाल ही में WHO ने गेमिंग डिसऑर्डर को इंटरनेशनल डिजीज की कैटेगरी में शामिल किया है। तो चलिए जानते हैं क्या है गेमिंग डिसऑर्डर के लक्षण और इसकी लत छुड़ाने के तरीके।
देश में 44.2 ऑनलाइन गेमर्स
आपको जानकर हैरत होगी कि वर्तमान में गेमर्स की संख्या 44.2 करोड़ है। जो 2022 में 42.1 करोड़ थी। इसकी सबसे बड़ी वजह गेम्स में रिवॉर्ड सिस्टम लागू करना है। इससे पहले भी लोग केवल शौक के लिए गेम खेलते थे। लेकिन रिवॉर्ड पैसों और गिफ्ट से जुड़ा है, इसका लालच ही बच्चों में गेमिंग एडिक्शन को बढ़ावा दे रहा है। इंडिया मोबाइल ऑफ गेमिंग की रिपोर्ट कहती है कि भारतीय हफ्ते में 8.36 घंटे मोबाइल पर सिर्फ गेम खेलते हैं। 60 प्रतिशत गेमर्स एक बार में लगातार 3 घंटे गेम खेलते हैं। ये लोग अक्सर टाइम पास खेलने के लिए ऐसा करते हैं, लेकिन कब ये गेमिंग डिसऑर्डर के शिकार हो जाते हैं , पता नहीं चलता।
गेमिंग डिसऑर्डर के लक्षण
गेम खेलने की आदत पर नियंत्रण न रखना
स्वभाव में आक्रामकता और गुस्सैलपन आ जाना
याददाश्त में कमी आ सकती है।
सोशल लाइफ खत्म हो सकती है।
उसके सारे काम गेम के ईद गिर्द ही दिखाई देने लगेंगे।
बच्चों को गेमिंग डिसऑर्डर से कैसे बचाएं
गेमिंग बिहेवियर पर नजर रखें
इससे हमारा मतलब 'हेलीकॉप्टर पैरेंट' बनने का नहीं है। लेकिन आपको इस बात पर नज़र रखनी चाहिए कि बच्चा कब और कितनी देर तक गेम खेलता है। यदि वह गेम खेलने में घंटों समय बिता रहा है, तो टाइम लिमिट सेट करें। अपने बच्चे को समझाएं कि गेमिंग केवल एंटरटेनमेंट का जरिया है , उनके जीवन का उससे कोई लेना देना नहीं है।
आउटडोर गेम्स के लिए मोटिवेट करें
अगर बच्चा गेमिंग में इतना ज्यादा व्यस्त है कि बाकी सभी कामों को अनदेखा करने लगा है, तो उसे बाहर जाने के लिए प्रोत्साहित करें। सिर्फ माता-पिता ही नहीं, बल्कि स्कूलों की भी जिम्मेदारी है कि वे बच्चों को स्पोट़र्स में पार्टिसिपेट करने के लिए प्रोत्साहित करें।
डिजिटल डिटॉक्स
किसी भी प्रकार के डिजिटल डिवाइस को उनकी पहुंच से दूर रखना एक सही तरीका है। जब तक बच्चा 16 या 17 साल का ना हो जाए, जब तक ना कोई कंप्यूटर और न कोई मोबाइल देना है। बेहतर है कि आप उन्हें अच्छी चीजें सिखाएं या कोई क्लास जॉइन कराएं।
लत की असली वजह जानें
बच्चे गेम खेलना कैसे सीखा, वह क्यों गेम खेलने लगा है, कौन सा गेम उसे ज्यादा देर खेलने के लिए उकसाता है, कुछ ऐसे सवाल हैं, जिनके जवाब आपको पैरेंट़स होने के नाते ढूंढने होंगे। जब आप असली वजह का पता लगा लेंगे, तो प्रॉब्लम को सॉल्व करने में आसानी होगी।
प्रोफेशनल की हेल्प लें
यदि समस्या गंभीर है, तो पेशेवर प्रोफेशनल्स से मदद लेने में कोई हर्ज नहीं है। वह आपको और आपके बच्चे को इस प्रकार की लत से उबरने में मदद कर सकता है। ऐसे व्यक्ति को चुनें, जो ऑनलाइन गेम की दुनिया से परिचित हो।
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