वैज्ञानिक कारण के साथ जान लें, आखिर क्यों मौजूद हैं ऐसी मान्यताएं और क्या है इन क्यों का जवाब?
राज एक्सप्रेस। कई बार आपके दिमाग में कुछ ऐसे सवाल आते होंगे कि, आखिर ऐसा क्यों होता है (Why does this things happen) ? इस तरह के कई सवाल हमेशा ही हमें परेशान करते रहते हैं परंतु हमारे पास उसका कोई जवाब नहीं होता। हिन्दू धर्म को लेकर तो ऐसी कई मान्यताये भी है जिनके बारे में सोच कर आप यही कहेंगे कि, आखिर ऐसा क्यों किया जाता है या ये करने से ऐसा क्या होता है ? तो, चलिए, आज हम इसी मुद्दे पर बात करेंगे और आपको देंगे, आपके इन क्यों का जवाब।
आपको देंगे आपके क्यों का जवाब :
कई बार आपके मन में इस तरह के सावाल आते होंगे, ऐसी मान्यताएँ क्यों मौजूद हैं? (Why do such beliefs exist?) जैसे क्यों होती है मूर्ति पूजा? क्यों पीपल के पेड़ को पूजा जाता है ? हम आपके इस तरह के अनेकों सवालों के सही जवाब देने की कोशिश करेंगे। चलिए, एक-एक करके सबके उत्तर जानें।
क्यों करते हैं व्रत-उपवास :
हिन्दू धार्मिक विचारधारा के अनुसार, व्रत-उपवास (फ़ास्ट) देवी देवताओ को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है। स्वास्थय की दृष्टि से देखे, तो कुछ दिनों में जैसे एक हफ्ते या एक माह में एक फास्ट रखकर यदि भारी पदार्थ या अन्न न खाकर खूब पानी पिया जाए, तो शरीर हल्का हो जाता है व कब्ज जैसी बीमारियों से राहत मिलती है। मोटापे को कम करने में व्रत सहायक होता है, परन्तु आज देखा जाता है कि, कई लोग फ़ास्ट तो रख लेते है पर फलाहारी के नाम पर कुछ न कुछ दिनभर खाते रहते है। यह लाभ की जगह हानि ही करता है। इसलिए, यदि आप फ़ास्ट रखें तो, फलों को आहार बनाने की कोशिश करें।
क्यों करते है हिंदू मूर्ति पूजा :
जिस इंसान का मन चंचल है और वह एकाग्र हो ईश्वर का ध्यान नहीं कर पाते , वह मूर्ति पूजन की सहायता से अपने मन पर संयम रखने का प्रयास करते है। हिन्दू धर्म के प्रारम्भ में मूर्ति पूजा नहीं थी। किन्तु क्रमशः यह इसमें शामिल होती चली गई और आज ये अपने पर है कि, यदि आप ईश्वर को सच्चे हृदय से प्रेमपूर्वक पूजे, तो इसकी आवश्यकता नहीं है। परन्तु यदि आपका मन चंचल है तो, हिन्दू धर्म के सगुन मत के अनुसार मूर्ति पूजन वैध है व निगुण मत में नहीं, सिख और इस्लाम सहित अनेक धर्मो में मूर्ति पूजन निषेध है।
क्यों होती है पीपल के वृक्ष की पूजा :
पीपल को हिंदू धर्म में ब्रह्मा भगवान का रूप माना जाता है और वृक्ष को ब्रह्मा जी का रूप मान कर ही उनकी पूजा की जाती है। इसका वैज्ञानिक कारण यह है कि, पीपल का पेड़ अनेक रोगों की दवा बनाने के काम आता है इतना ही नहीं पीपल ही एकमात्र ऐसा पेड़ है जो, रात में भी ऑक्सीजन प्रदान करता है जो जीव जंतु के लिए प्राण है। जबकि, रात में ऑक्सीजन का मुख्य स्त्रोत पेड़ पौधे कार्बन डाइऑक्साइड छोड़ते हैं। साथ ही इस वृक्ष की छाया सर्दियों में गर्म तथा गर्मियों में ठंडी रहती है।
क्यों गंगाजल और दूध को मानते हैं पवित्र :
हिंदू धर्म में गंगा को सबसे अधिक पूजनीय और पवित्र नदी माना गया है, जिसका उद्गम स्थल "गोमुख" है इसके साथ जुड़ी अनेक धार्मिक मान्यताओं के कारण इसे पवित्र नदी माना गया है। अतः यही कारण है कि, इसके जल को भी पवित्र माना गया है। वही हिंदू धर्म में गाय के दूध को गंगाजल की भांति पवित्र माना जाता है, आध्यात्मिक दृष्टि से देखें तो, गाय को मां कहा गया है- "गौ माता" गाय के दूध में रोगों से लड़ने की प्रतिरोधक क्षमता अत्यधिक मात्रा पाई जाती होती है और उसमें प्रोटीन और विटामिन की प्रचुर मात्रा होता है। अत्यधिक पौष्टिक होने के कारण ही छोटे बच्चों को मां के दूध के बाद गाय का दूध ही दिया जाता है, गाय का दूध जितना पवित्र होता है, उतना ही स्वादिष्ट भी होता है।
क्यों गोमूत्र का सेवन भी है पवित्र :
गाय के शरीर से प्राप्त होने वाली प्रत्येक वस्तु जैसे कि, दूध, गोबर, गोमूत्र पवित्र माना जाता है इसका कारण यह है कि, गाय का दूध भगवान का भोग लगाने के काम आता है गोबर पूजा स्थल को पवित्र करने के लिए और चूल्हे में ईंधन के रूप में भी काम आता है। आपने अक्सर देखा होगा त्योहारों पर घर की लिपाई-पुताई गोबर से की जाती है, ठीक उसी तरह ही गोमूत्र को भी पवित्र माना जाता है। गोमूत्र का सेवन करने से कई बीमारियां दूर होती है, ऐसा हमारा नहीं डॉक्टरों का भी कहना है। महत्वपूर्ण बात यह है कि, गाय के दूध, गोबर तथा मूत्र को विज्ञान भी शुद्ध मानता है। विज्ञान ने कहीं तरीकों से इसे सिद्ध भी किया है। डॉक्टरों का मानना है कि, गोमूत्र मैं पीलिया तथा यकृत जैसे रोगों को दूर करने की क्षमता होती है इसके अलावा गोमूत्र से मुख रोग, नेत्र रोग, खुजली अतिसार मूत्र रोग, पेट रोग वायु रोग अतिसार आदि भी ठीक किया जा सकता है। गोमूत्र का सेवन वेद की उचित सलाह से ही किया जाना चाहिए। इसे फिल्टर करने के पश्चात या अर्क के रूप में उपयोग किया जाता है।
क्यों भगवान की खंडित प्रतिमा को पूजा नहीं जाता :
सनातन धर्म से पूजा की अनेक विधियां मानी गई है, जिनमें से साकार एवं निराकार यह दो विधियां प्रमुख है साकार पूजा में भगवान यानी अपने इष्ट को मूर्ति स्वरूप भी पूजा जाता है, जिसमें साधक का ध्यान शीघ्र ही और आसानी के साथ अपनी पीठ पर चला जाता है। अब यदि मूर्ति टूटी हो यानी कोई अंग भंग हुआ हो तो, साधक की साधना में रुकावट पढ़ सकती है या यूं कहें ध्यान अपने मार्ग से विचलित हो सकता है अगर मूर्ति का कोई अंक टूटा होगा तो, पूजा-पाठ करने वाले का ध्यान मूर्ति के उस टूटे अंग पर रहेगा और उसे ठीक वैसे ही दुख होगा जैसा अपने किसी प्रिय को चोट आने पर होता है यही कारण है कि, खंडित प्रतिमा रखना अपशगुन माना जाता है और ना ही उसकी पूजा की जाती है।
क्यों होते हैं माला में 108 ही दाने (मोती) :
प्राचीन काल से ही जप करना भारतीय पूजा उपवास पद्धति का एक अभिन्न अंग माना गया है। जप करने के लिए माला की जरूरत होती है, जो रुद्राक्ष, तुलसी, वैजयंती, स्फटिक मोतियों आदि से बनी हो सकती है, इसमें रुद्राक्ष की माला को जब के लिए सर्वश्रेष्ठ माना गया है। क्योंकि, इसमें कीटाणु नाशक शक्ति के अलावा विद्युत चुंबकीय शक्ति भी पाई जाती है। अब इनकी संख्या 108 होने का कारण समझे - संसार में 9 ग्रह तथा 12 राशियां होती है। यदि 12 गुना 9 किया जाए तो वो संख्या 108 (12X9=108) होगी। इसी प्रकार 27 नक्षत्र होते हैं और प्रत्येक नक्षत्र के 4 चरण होते हैं। इस प्रकार यदि 27 गुना 4 किया जाए तो 108 (27X4=108) ही आया है। यह सब एक मनुष्य बहुत आसानी से नहीं कर सकता इसलिए माला में 108 दाने या मनके होते हैं। ऐसा माना जाता है कि, इन सब की परिक्रमा करना एक माला जपने के बराबर माना जाता है।
क्यों लगाती हैं स्त्रियां अपनी मांग में सिंदूर व :
हिंदू धर्म की मान्यता के अनुसार, स्त्रियों का मांग में सिंदूर लगाया जाना उनकी सुहागिन होने का प्रतीक मन जाता है, इस परंपरा को आर्थिक बल सीता माता तथा हनुमान जी की कथा से मिलता है। उस कथा के अनुसार, सीता माता को सिंदूर लगाते देख हनुमान जी के प्रश्न करने पर सीता माता ने जवाब दिया कि, 'यह सिंदूर भगवान राम की प्रसन्नता के लिए तथा इस सिंदूर को मांग में लगाने से पति की उम्र बढ़ती है।' सीता माता के उपयुक्त मधुर वचन के तुरंत बाद औरतों द्वारा मांग में सिंदूर लगाना शुभ माना जाने लगा। इसलिए, औरतें अपनी मांग में पति के नाम का सिंदूर लगाती है क्योंकि हिंदू समाज में पति को परमेश्वर का दर्जा दिया जाता है।
स्त्रियों के मांग भरने का वैज्ञानिक कारण :
मांग में सिंदूर लगाने का एक वैज्ञानिक कारण भी है कि, औरतें ब्रह्मरंध्र और नामक स्थान के ऊपर सिंदूर लगाती है, जिसे सामान्य भाषा में सीमांत अथवा मांग कहते हैं, सर का यह भाग पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियों का अधिक कोमल होता है। चूँकि, सिंदूर में पारा जैसी धातु अधिक मात्रा में पाई जाती है जो, शरीर की विद्युत ऊर्जा को नियंत्रित करता है तथा मरुस्थल को बाहरी दुष्प्रभावों से बचाता भी है। अतः वैज्ञानिक दृष्टि से भी स्त्रियों को मांग में सिंदूर लगाना लाभप्रद माना जाता है।
क्यों लोग लगाते हैं मस्तक पर तिलक :
वहीं, दूसरी तरफ हिंदू धर्म में तिलक धारण एक आवश्यक धार्मिक कृत्य माना गया है, तिलक के बिना ब्राह्मण तुच्छ माना जाता है, तिलक लगाए बिना पूजा अधूरी मानी जाती है, ऐसा कहा जाता है कि, बिना तिलक के पूजा नहीं हो सकती दक्षिण भारत में तो तिलक आज भी अपना विशेष स्थान बनाए हुए हैं भारतीय परंपरा अनुसार, तिलक लगाना सम्मान का सूचक भी माना जाता है। अतिथियों को तिलक लगाकर विदा करते हैं। शुभ यात्रा पर जाते समय शुभकामनाएं प्रकट करने के लिए भी इस प्रथा का इस्तेमाल किया जाता है। तिलक लगाने की प्रथा प्राचीन काल से चली आ रही है, ऐसा माना जाता है यदि कोई व्यक्ति अपने किसी विशेष काम के लिए घर से तिलक लगाकर निकलता है तो, उसका कार्य अवश्य पूरा हो जाता है।
तिलक लगाने का वैज्ञानिक कारण :
तिलक लगाने का वैज्ञानिक कारण यह भी है जब हम मस्तिक से आवश्यकता से अधिक काम लेते हैं तब ज्ञान तंतु का विचार केंद्र वृकुटी और ललाट के मध्य भाग में पीड़ा उत्पन्न हो जाती है। उस स्थान पर जहां तिलक त्रिपुंड लगाते हैं चंदन का तिलक ज्ञान संतो को शीतलता प्रदान करता है जो, प्रतिदिन प्रात काल स्नान के पश्चात चंदन का तिलक लगाता है उसे सिर दर्द की शिकायत कभी नहीं होती। इस तथ्य को डॉक्टर एवं वैद्य हकीम भी स्वीकार चुके हैं। वैज्ञानिकों का भी मानना है कि, माथे पर चंदन का तिलक लगाने से मस्तिष्क में ठंडक पहुंचती है।
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