ऋषि, मुनि, महर्षि, साधु और संत में क्या अंतर होता है?
राज एक्सप्रेस। भारत देश की संस्कृति में प्राचीन काल से ही साधु-संतों का एक विशेष महत्व रहा है। जब कभी समाज के कल्याण या समाज के पथ प्रदर्शक की बातें की जाती हैं तो सबसे पहले साधु संतों को याद किया जाता है। माना जाता है कि ये साधु-संत ही अपने ज्ञान और तप की ताकत से समझ से लोगों को समस्याओं से मुक्ति दिलवाते हैं। आज भी हमें कई पवित्र जगहों पर साधु, संत, ऋषि, मुनि देखने को मिल जाते हैं। हालांकि कम ही लोग जानते हैं कि साधु, संत, ऋषि, मुनि आदि अलग-अलग होते हैं। चलिए हम बताते हैं कैसे?
साधु :
कहा जाता है कि साधु बनने के लिए ज्ञानी होना जरुरी नहीं है, क्योंकि कोई भी व्यक्ति साधना कर सकता है और जो व्यक्ति साधना करता है वह साधु कहलाता है। पुराने समय में जब भी कोई व्यक्ति किसी विशेष विषय या वस्तु की साधना करता था तो विशिष्ट ज्ञान प्राप्त करके वह साधु कहलाता था। साधु वह है जिसकी सोच सरल और सकारात्मक रहे और जो काम, क्रोध, लोभ, मोह आदि का त्याग कर दे।
संत :
सत्य का आचरण करने वाला व्यक्ति संत कहलाता है। प्राचीन समय में कई सत्यवादी और आत्मज्ञानी लोग संत हुए हैं। जैसे कबीरदास, संत तुलसीदास, संत रविदास आदि। सब कुछ त्याग कर मोक्ष की प्राप्ति के लिए जाने वाले व्यक्ति को संत नहीं कहा जाता, जबकि संत तो वह होता है जो संसार और अध्यात्म के बीच संतुलन बना सकता हैं।
ऋषि :
ऋषि उन्हें कहा जाता है जिन्होंने वैदिक रचनाओं का निर्माण किया है या वे जो वैदिक रचनाओं के रचयिता हैं। इन्हें यह उपाधि सैंकड़ों सालों तक कठोर तप करने के बाद मिलती हैं। ऋषि वह होता है जिसमें क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, ईर्ष्या आदि का वास नहीं होता। ऋषि अगर चाहे तो अपने योग से परमात्मा को भी पा सकता है।
मुनि :
मुनि शब्द में मौन छुपा हुआ है और मुनि वे होते हैं जो बहुत कम बोलते हैं और शांत रहना पसंद करते हैं। दरअसल मुनि प्राचीन वेदों और ग्रन्थों से ज्ञान अर्जित करते हैं और साथ में मौन रहने की शपथ लेते हैं। ऐसे ऋषि जो घोर तप और साधना प्राप्त करने के बाद मौन रहे वे मुनि कहलाए जबकि नारद मुनि जैसे मुनि भी हुए जिन्होंने भगवान का जप किया।
महर्षि :
हर जीव में तीन तरह के चक्षु मिलते हैं, ज्ञान चक्षु, दिव्य चक्षु और परम चक्षु। जिस किसी का ज्ञान चक्षु जागृत हो जाता है उसे ऋषि कहा जाता है। जिसका दिव्य चक्षु जागृत होता है वह महर्षि कहलाता है, जबकि जिसका परम चक्षु जागृत हो जाता है उसे ब्रह्मर्षि कहा जाता है। एक ऋषि अपने योग से ज्ञान और तप की उच्चतम सीमा तक पहुंच जाता है। इनके ऊपर केवल ब्रह्मर्षि ही होते हैं। कहते हैं कि अंतिम महर्षि दयानंद सरस्वती हुए थे, जबकि उनके बाद कोई भी महर्षि नहीं हुआ है।
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