राज एक्सप्रेस। दशहरा यानी विजयादशमी का पर्व हिंदू धर्म के प्रमुख त्योहारों में से एक है। हर साल अश्विन माह में शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को यह पर्व मनाया जाता है। मान्यता है कि इसी दिन भगवान श्री राम ने रावण का वध किया था। वैसे हिन्दू धर्म से जुड़े ग्रंथों की माने तो यह पहले से तय था कि भगवान श्री राम के हाथों ही रावण का वध होगा। इसके पीछे का कारण रावण के पूर्व जन्म के कर्म हैं। तो चलिए जानते है रावण से जुड़ी इस रोचक कथा के बारे में।
मुनि ने दिया था श्राप :
धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान श्री विष्णु के दरबार में जय और विजय नाम के दो द्वारपाल थे। एक बार सनक, सनन्दन, सनातन और सनत्कुमार नाम के 4 मुनि भगवान श्री विष्णु के दर्शन करने के लिए पहुंचे। इस दौरान जय और विजय ने उनकी हंसी उड़ाते हुए उन्हें बेंत अड़ाकर रोकने के कोशिश की। इससे मुनि क्रोधित हो गए और उन्होंने कहा कि, ‘तुम्हारे कर्म तो असुरों जैसे हैं, तुम राक्षस हो जाओ।’ इस पर जय और विजय को अपनी गलती का अहसास हुआ और उन्होंने मुनि से क्षमा मांगी। इस पर मुनि ने कहा कि, ‘मैं श्राप तो वापस नहीं ले सकता, लेकिन इतना कर सकता हूँ कि तुम्हे हमेशा के लिए नही बल्कि तीन जन्मों के लिए ही राक्षस योनि में रहना होगा और तीनों ही जन्म में तुम्हे मुक्ति देने के लिए भगवान श्री विष्णु स्वयं आएंगे। उसके बाद तुम पुनः इस पद पर प्रतिष्ठित हो सकोगे।’
हिरण्यकश्यप व हिरण्याक्ष :
मुनि के श्राप के चलते ही सतयुग में जय और विजय ने हिरण्यकश्यप व हिरण्याक्ष राक्षसों के रूप में जन्म लिया। हिरण्याक्ष इतना शक्तिशाली राक्षस था कि उसने धरती को ले जाकर समुद्र में छिपा दिया था। तब भगवान विष्णु ने वराह अवतार लेकर उसका वध किया था। वहीं अपने भाई के वध से दुखी हिरण्यकश्यप ब्रह्मदेव से वरदान पाकर खुद को महाशक्तिशाली समझने लगा था, जिसके बाद भगवान विष्णु ने नरसिंह अवतार लेकर उसका भी विनाश किया था।
रावण और कुंभकर्ण :
त्रेतायुग में जय रावण और विजय कुंभकर्ण के रूप में धरती पर पैदा हुए। रावण जहां अहंकारी था, वहीं कुंभकर्ण हर बात में अपने भाई का साथ देता था। इनके अत्याचारों से लोगों को मुक्ति दिलाने के लिए भगवान विष्णु ने राम के रूप में अवतार लिया और इनका वध किया।
शिशुपाल व दंतवक्र :
द्वापरयुग में जय और विजय ने शिशुपाल व दंतवक्र के रूप में जन्म लिया। दोनों भगवान विष्णु के अवतार श्री कृष्ण की बुआ के लड़के थे। हालांकि दोनों ही भगवान श्री कृष्ण से बैर रखते थे। इन दोनों का वध भगवान श्री कृष्ण के हाथों ही हुआ था।
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