Ramayan Epic Series: महाकाव्य रामायण के ऐसे संस्करण जिनमें बदले श्रीराम के पिता और रावण की नगरी
राज एक्सप्रेस। भारत के महाकाव्य रामायण पर चल रही श्रृंखला का यह चौथा भाग है जिसमे हम आपको बताएंगे बाहरी देशों की ऐसी रामायण जिसमे प्रभु राम के पिता और महाज्ञानी रावण की नगरी को बदला गया है। साथ ही हम आपको कुछ ऐसे देशों की भी जानकारी देंगे जिनके इतिहास, प्रतिलिपि और पुराने पत्थरों की नक्काशी में गड़ी गई है रामायण की कहानी। मूल रूप से रामायण सनातन धर्म और संस्कृति का हिस्सा है लेकिन इस महाकाव्य को भारत से बाहर अन्य देशों तक पहुंचाने का श्रेय बौद्ध धर्म और दक्षिण भारत के हिंदू शासकों को जाता है। आइए आपको बताएं अन्य देशों में स्तिथ रामायण के संस्करणों के बारे में।
लाओस– फ्रा लक फ्रा राम (Phra Lak Phra Ram)
लाओस की राष्ट्रीय भाषा लाओ में लिखी फ्रा लक फ्रा राम रामायण का एक संस्करण है जो बौद्ध धर्म के दशरथ जातक का अनुकूलन है। इस रामायण को फ्रा राम जडोक (Phra Ram Xadok) भी कहा जाता हैं। लाओ किंवदंतियों के अनुसार, दूसरी शताब्दी में लैन जांग राजवंश (Lan Xang Dynasty) के राजा चाओ फा न्गौम (Chao Fa Ngoum) द्वारा रामायण लाओस में लाई गईं थी। उन्होंने कंबोडिया देश की रामायण रीमकर का लाओ में प्रचार किया था और 18वीं शताब्दी आते तक यह रामायण लाओस के साहित्य और संस्कृति का हिस्सा बन चुकी थी। दशरथ जातक का अनुकूलन होने के बावजूद लाओस की इस रामायण में कई बदलाव किए गए है।
फ्रा लक फ्रा राम और वाल्मीकि रामायण में अंतर
नामों में अंतर
प्रभु राम– फ्रा राम (Phra Ram)
दशरथ– ठट्टराथा (Thattaratha)
माता सीता– नंग सिदा (Nang Sida)
इंद्राणी– नंग सौगदा (Nang Souxada)
भगवान ब्रह्म– फ्रा फ्रोम (Phra Phrom)
भगवान शिव– फ्रा इसौआने (Phra Isouane)
इंद्र– फ्रा इन (Phra In)
भगवान हनुमान– हौनलमने (Hounlamane)
सूर्य देव– फ्रा अथित (Phra Athit)
कहानी में बदलाव
रावण को बताया श्रीराम का चचेरा भाई।
प्रभु राम बताए गए गौतम बुद्ध के पिछले जन्म के बोधिसत्तव अवतार।
लक्ष्मी की नहीं, मां सीता को बताया भगवान इंद्र की पत्नी इंद्राणी का अवतार।
भगवान इंद्र और उनकी पत्नी इंद्राणी पर केंद्रित।
रावण को बताया भगवान ब्रह्मा का परपोता।
भगवान हनुमान अंत में बने मनुष्य।
मंगोलिया– बोलर टोली (Bolor Toli)
ओइरात भाषा में लिखी बोलर टोली, मंगोलिया देश की रामायण है जो जैन धर्म के पाठ पुष्पदंत की महापुराण पर आधारित है। इस रामायण का आगमन बौद्ध धर्म के मंगोलिया आने के बाद हुआ था। वैसे तो बौद्ध धर्म मंगोलिया में 11वीं से 12वीं शताब्दी के बीच में आया था लेकिन रामायण तिब्बत के बौद्ध भिक्षु द्वारा 19वीं शताब्दी में प्रचारित की गई थी। यह रामायण भी मंगोलिया के राष्ट्रीय साहित्य और संस्कृति का हिस्सा है। इस रामायण में तिब्बत की रामायण सुभाषित रत्ना निधि से भी कुछ कहानी और पत्रों को भी जोड़ा गया है। इस रामायण के अंदर जैन, बौद्ध, हिंदू और मंगोलिया की संस्कृति का अद्भुत मिश्रण देखने को मिलता है। इस रामायण की कहानी रावण, दशरथ और श्रीराम पर केंद्रित है।
बोलर टोली और वाल्मीकि रामायण में अंतर
नामों में अंतर
रावण– दशाग्रीव (Dashagriv)
लंका– बोलर टोली (Bolor Toli)
कहानी में अंतर
लक्ष्मण और विभीषण का कोई उल्लेख नहीं।
मां सीता रावण की बेटी।
रावण के दस सर की जगह है दस मुख्य प्रमुख।
विभीषण ने नहीं हनुमान ने की रावण को मारने में राम की मदद।
प्रभु राम को बताया गया गौतम बुद्ध का भक्त।
इस रामायण में अंत की लड़ाई में सबसे बड़े बदलाव, श्री राम ने 100 दर्पण वाले कमरे में छुपे रावण को ढूंढकर मारा जिसमे भगवान हनुमान ने की उनकी मदद।
यह कुछ ऐसे संस्करण है रामायण के जिसे किताबों के रूप में लिखा गया है लेकिन ऐसे और भी देश है जहां रामायण का अस्तित्व है लेकिन शिलालेख, मंदिरों में चित्रकारी, नृत्य एवं गीत जैसे अन्य रूपों में भी देखी जाती है। जैसे की...
वियतनाम में रामायण (Vietnam)
पहली से 16वीं सदी तक वियतनाम को नगर चंपा कहा जाता था जहां हिंदू राजवंश राज किया करता था। 7वीं से 9वीं शताब्दी तक उनकी राजधानी इंद्रपुरा वर्तमान में ट्रा कीउ (Tra Kieu) थी। चंपा के मंदिर के शिलालेखों से संकेत मिलता है कि रामायण को 7वीं शताब्दी तक जाना जाता था। राम और कृष्ण उन मंदिरों में पाए जाते हैं जो मुख्य रूप से उमा महेश्वर को समर्पित हैं। कई शासकों द्वारा खमेर स्मारकों में पाए गए कई प्राचीन शिलालेख संस्कृत या पुरानी चाम भाषा में लिखे गए थे और पूरे मध्य वियतनाम में पाए गए हैं। राजा ईशानवर्मा और प्रकाशधर्मन के समय, एक शिलालेख में ऋषि वाल्मीकि को श्रद्धांजलि दी गई है और खमेर राजाओं को कुरुंग बनम (पर्वत) कहा जाता था, जिसका अर्थ है शिलाराजा, जो पवित्र पर्वत की व्याख्या करता है जो कि उन्हें प्राचीन भारत से जोड़ता था।
तिब्बत और झिंजियांग में रामायण (Tibet and Xinjiang)
तिब्बत रामायण की पांडुलिपि, दुनहुआंग की कई पांडुलिपियों से मेल खाती है। रामायण का यह संस्करण तिब्बत और झिंजियांग में चौथी से ग्यारहवीं शताब्दी ईस्वी के बीच लोकप्रिय था। बीसवीं शताब्दी में, दुनहुआंग (सिल्क रूट का पूर्वी छोर और चीन का झिंजियांग प्रांत) की मोगाओ गुफाओं में विभिन्न पांडुलिपियों की खोज की गई थी जिसमे छह अधूरी पांडुलिपियाँ मिलीं और इन भागों से रामायण की खोज की गई। इनमें से चार पांडुलिपियां लंदन में ब्रिटिश लाइब्रेरी में इंडिया ऑफिस रिकॉर्ड्स में संरक्षित की गई हैं और अन्य दो फ्रांस की नेशनल लाइब्रेरी में हैं।
प्रभु राम और उनकी कहानियों की यही खूबी है कि वह किसी एक देश की सीमाओं तक सीमित नहीं है। प्रभु राम का नाम किसी भी सीमा, प्रांत, शहर या देश से भी परे है। रामायण के संस्करणों पर आधारित हमारी इस श्रृंखला का एक भाग और बचा है जिसमे हम आपको रामायण के और भी रोचक तथ्यों से अवगत कराएंगे लेकिन उससे पहले, इस श्रृंखला के पिछले 3 भागों को जरूर पढ़े।
पिछले भाग को यहाँ पढ़े:
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