नाग पंचमी विशेष : नाग रहस्य! उत्पत्ति और इतिहास

प्राचीन काल से नागों की पूजा का विधान हिन्दू धर्म में मिलता है। देशकाल, वातावरण अनुसार नागों का रहस्यात्मक विवरण भी हिन्दू धर्म ग्रंथों में वर्णित है, उन रहस्यों के बारे में जानने का प्रयास करते हैं..
नाग रहस्य! उत्पत्ति और इतिहास
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यूं तो नागों के बारे में कई रोचक किस्से-कहानियां और किवदंतियां प्रचलित हैं। हिंदी फिल्म जगत से लेकर हॉलीवुड तक नागों के विषय पर कई फिल्मों का निर्माण भी हो चुका है, जिनमें नागों के जीवन के बारे में मिले आंशिक सत्य और अंशिक भ्रमपूरित ज्ञान ने लोगों की मानसिकता पर नागों को लेकर जो छवि अंकित की है वह भयकारी भी लगती है और सन्देहास्पद भी। भारत में नागकुल और नागों के रहस्य को सुलझाना अत्यंत ही कठिन है। इच्छाधारी साँप या सर्प मानव का अस्तित्व भी एक रहस्य है क्या पहले वह सच में होते थे या सिर्फ किस्सागोओं की कल्पना मात्र हैं, यह आज भी रहस्य है।

इन सबके बाद मन में ये सवाल उठना भी लाजिमी है कि, क्या नाग सिर्फ भय का प्रतीक हैं? प्राचीन काल में नागों के राजपाट के अस्तित्व का विवरण हमें वेद पुराण ग्रंथों में पढ़ने और जानने को मिलता है, अगर उनपर विश्वास किया जाये तो नाग सिर्फ भय का कारण नहीं बल्कि श्रद्धा के पात्र अधिक प्रतीत होते हैं। ऐसा भी माना जाता है कि, सर्प जातियों के नाम के आधार पर ही मानव की जातियों का निर्माण हुआ है।

प्राचीन काल से ही नागों की पूजा का विधान भी हिन्दू धर्म में मिलता है, साथ ही काल, स्थान, प्रान्त आदि के अनुसार नागों का रहस्यात्मक विवरण भी हिन्दू धर्म ग्रंथों में मिलता है।

इस लेख में उन रहस्यों के बारे में जानने का प्रयास करते हैं...

नागों के आराध्य देव :

पुराणों के अनुसार सभी नाग प्रजातियां भगवान शिव की भक्त थीं और उनका धर्म भी 'शैव धर्म' माना गया है। शिव के गले में लिपटे वासुकी की अपनी ही महिमा है। वासुकी भगवान शिव के परम भक्त माने जाते हैं, किवदंती है कि नाग जाति के लोगों ने ही सर्वप्रथम शिवलिंग की पूजा का प्रचलन शुरू किया था। वासुकी नाग की भक्ति से प्रसन्न होकर ही भगवान शिव ने उन्हें अपने गणों में शामिल कर लिया था। समुद्र मंथन के समय वासुकी नाग को ही रस्सी के रूप में मेरू पर्वत के चारों ओर लपेटकर मंथन किया गया था, जिसके कारण उनका संपूर्ण शरीर लहूलुहान हो गया था, तब शिव जी ने वासुकी को वरदान देते हुए गले में धारण किया।

वासुकी नाग ने की थी श्री कृष्ण की रक्षा :

कथा है कि, जब भगवान श्री कृष्ण को कंस की जेल से चुपचाप वसुदेव उन्हें गोकुल लेकर जा रहे थे तब रास्ते में जोरदार बारिश हो रही थी। इसी बारिश और यमुना के उफान से वासुकी नाग ने ही श्री कृष्ण और वसुदेव की रक्षा की थी। वासुकी वासुदेव के पीछे-पीछे कृष्ण को अपने फन से ढंककर चले थे और उन्हें सुरक्षित यमुना पार करने में सहायक हुए थे, अतः वासुकी कृष्ण को भी अति प्रिय हैं। यह मान्यता भी है कि वासुकी ने ही कुंति पुत्र भीम को दस हजार हाथियों के बल प्राप्ति का वरदान दिया था। कहते हैं कि वासुकी के शीश पर ही नागमणि होती थी।

नागों की उत्पत्ति के विषय में प्रचलित मान्यता :

पुराणों के अनुसार सभी नागों की उत्पत्ति ऋषि कश्यप की पत्नि और दक्ष प्रजापति की कन्या कद्रू के गर्भ से हुई है। कद्रू कई हजार पुत्रों की माता मानी जाती हैं, जिसमें प्रमुख नाग थे- अनंत (शेष), वासुकी, तक्षक, कर्कोटक, पद्म, महापद्म, शंख, पिंगला और कुलिक।

अनंत (शेष), वासुकी, तक्षक, कार्कोटक और पिंगला- उक्त पांच नाग कुलों का भारत में वर्चस्व रहा। यह सभी ऋषि कश्यप के वंशज माने गए हैं और इन्हीं से नागवंश चला।

पुराणों के अनुसार नाग वंश या नाग कुल की पीढ़ियों में ‘शेष नाग’ को नागों का प्रथम राजा माना जाता है। शेष नाग को ही ‘अनंत’ नाम से भी जाना जाता है। शेषनाग (अनंत) को भगवान विष्णु की सेवा का अवसर मिला।

शेष नाग के बाद नागों के वंश में वासुकी हुए फिर तक्षक और पिंगला। वासुकी ने भगवान शिव की सेवा में नियुक्ति होना स्वीकार किया। वासुकी का राज्य कैलाश पर्वत के पास ही माना जाता है।

विषधर तक्षक के लिए मान्यता प्रचलित है कि, तक्षक ने ही तक्षकशिला (तक्षशिला) बसाकर अपने नाम से ‘तक्षक’ कुल चलाया था। उक्त तीनों की गाथाएं पुराणों में पाई जाती हैं।

एक मान्यता यह भी है कि ये सभी विषधर मूलत: कश्मीर के थे। कश्मीर का ‘अनंतनाग’ क्षेत्र इनका गढ़ माना जाता था। कांगड़ा, कुल्लू व कश्मीर सहित अन्य पहाड़ी इलाकों में नाग ब्राह्मणों की एक जाति आज भी मौजूद है। महाभारत काल में पूरे भारत वर्ष में नागा जातियों के समूह फैले हुए थे। विशेषतः कैलाश पर्वत से सटे हुए क्षेत्रों से असम, मणिपुर, नागालैंड तक इनका प्रभुत्व था। नगा या नागालैंड, नागवंशियों की भूमि है, इस बारे में भी यदा-कदा किवदंतिया सुनने में मिलती हैं। इन क्षेत्रों के निवासी सर्प पूजक होने के कारण नागवंशी कहलाए। कुछ मतावलम्बियों का मानना है कि, शक या नाग जाति हिमालय के उस पार की थी। अब तक तिब्बती भी अपनी भाषा को ‘नागभाषा’ कहते आए हैं।

तत्पश्चात कर्कोटक, ऐरावत, धृतराष्ट्र, अनत, अहि, मनिभद्र, अलापत्र, कम्बल, अंशतर, धनंजय, कालिया, सौंफू, दौद्धिया, काली, तखतू, धूमल, फाहल, काना इत्यादि नाम से नागों के वंश का अस्तित्व स्वीकार किया गया है। भारत के भिन्न-भिन्न इलाकों में इनका राज्य माना गया है।

अथर्ववेद में कुछ अन्य नागों के अस्तित्व का उल्लेख भी मिलता है। यह नाग हैं :- श्वित्र, स्वज, पृदाक, कल्माष, ग्रीव और तिरिचराजी नागों में चित कोबरा (पृश्चि), काला फणियर (करैत), घास के रंग का (उपतृण्य), पीला (ब्रम), असिता रंगरहित (अलीक), दासी, दुहित, असति, तगात, अमोक और तवस्तु आदि।

नागों का सम्बन्ध नागा आदिवासियों से भी जोड़ कर देखा जाता है। छत्तीसगढ़ के बस्तर में नल और नाग वंश तथा कवर्धा के फणि-नाग वंशियों का उल्लेख मिलता है। पुराणों में मध्यप्रदेश के विदिशा पर शासन करने वाले नाग वंशीय राजाओं में शेष, भोगिन, सदाचंद्र, धनधर्मा, भूतनंदि, शिशुनंदि या यशनंदि आदि का उल्लेख मिलता है।

पुराणों के एक प्राचीन मतानुसार प्राचीनकाल में नागा समुदाय का पूरे भारत (पाक-बांग्लादेश सहित) पर शासन था। उस दौरान उन्होंने भारत के बाहर भी कई स्थानों पर अपनी विजय पताकाएं फहराई थीं। तक्षक, तनक और तुश्त नागाओं के राजवंशों की लम्बी परंपरा रही है। इन नाग वंशियों में ब्राह्मण, क्षत्रिय आदि सभी समुदाय और प्रांत के सर्पमानव का अस्तित्व माना गया है। नागवंशियों ने भारत के कई हिस्सों पर राज किया था। इसी कारण भारत के कई शहर और गांव के नामों में ‘नाग’ शब्द का प्रयोग पूर्ण या आंशिक रूप में मिलता है। मान्यता है कि महाराष्ट्र का नागपुर शहर सर्वप्रथम नागवंशियों ने ही बसाया था।

यह भी माना जाता है कि महाराष्ट्र की नदी 'नाग नदी' का नाम भी नागवंशियों के कारण ही पड़ा। नागपुर के पास ही प्राचीन नागरधन नामक एक महत्वपूर्ण प्रागैतिहासिक नगर है। महार जाति के आधार पर ही महाराष्ट्र से महाराष्ट्र हो गया। महार जाति भी नागवंशियों की ही एक जाति का प्रभाग मानी जाती है।

इसके अलावा हिंदीभाषी राज्यों में भी कई शहर-गांव के नाम नागों के नाम के समान मिल जाएंगे, यथा- ‘नागदाह’। इन स्थान से भी नागों के संबंध में कई किवदंतियां जुड़ी हुई हैं।

कहा जा सकता है कि, नागों की दुनिया का रहस्य अपरिमित है, इस लेख में हमने उनके बारे में कुछ रहस्यों की जानकारी देने का सूक्ष्म प्रयास किया है, जो किसी भी रूप में पूर्ण नहीं माना जा सकता, अधिक जानकारी शोधानुसार, आगामी अंकों में प्रकाशित करने का हमारा प्रयास होगा।

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