Gwalior : ग्रहणकाल में भी बंद नहीं होते तारामाई के पट
ग्वालियर, मध्यप्रदेश। हम सब जानते हैं कि उज्जैन के महाकाल मंदिर को छोड़कर चंद्रग्रहण और सूर्यग्रहण के दौरान सभी मंदिरों के पट बंद हो जाते हैं, लेकिन आपको शायद ही पता होगा कि अपने ही शहर में स्थित तारामाई के पट ग्रहण के दौरान भी बंद नहीं होते है और साधक इस दौरान पूर्जा अर्चना में लीन रहते हैं। मंगलवार को चंद्रग्रहण के दौरान भी तारामाई के साधक उनके समक्ष बैठकर साधना में लीन रहे।
श्रद्धालुओं का इसे लेकर अलग-अलग मत हैं। सिद्धापीठ गंगादास की शाला के महंत रामसेवकदास महाराज कहते हैं कि ग्रहण के दौरान भगवान को राहु का कष्ट होता है। सूतक का संक्रमण भगवान के मंदिर में प्रवेश न करें, इसलिए भक्त मंदिरों के पट बंद कर भजन कीर्तन कर भगवान को कष्ट से बचाने की प्रार्थना करते हैं। वहीं तारामाई मंदिर के भक्त संजय शर्मा ने बताया कि तारा माई आदिशक्ति हैं, जहां से सारे ब्रह्मांड के ग्रह संचालित हैं। आदि शक्ति के नियंत्रण में पूरा ब्रह्मांड है, इसलिए ग्रहण का कोई भी दोष शक्तिपीठ पर प्रभाव नहीं डालता। दस महाविद्याओं में से एक तारामाई शक्तिपीठ पर उनके उपासक शक्ति की आराधना ग्रहण काल में करते हैं। ग्रहण काल में किए गए जप तप का अनंत फल मिलता है। अनंत का कोई भी गुणा भाग नहीं कर सकता, इसलिए ना कोई हवन ना कोई ब्राह्मण भोजन ना कोई दक्षिणा अनंत का कोई भी हिस्सा नहीं निकाल सकता ग्रहण काल में किया गया जप अनंत फल देने वाला होता है।
बिरला नगर स्थित तारा विद्यापीठ में नवरात्रि में भक्तों की मनोकामनाओं के लिए नौ दिनों तक सतचंडी यज्ञ का आयोजन किया जाता है। यहां यज्ञ करने वाले भक्त भी इसी मंदिर के ही होते है। दस महाविद्या में से एक तारामाई हैं। वैसे तो वर्ष भर भक्त यहां दर्शन करते हैं, लेकिन नवरात्रि के दिनों भक्तों की खासी संख्या रहती है। आम लोगों के साथ देश की बड़ी राजनीति हस्तियां भी इस मंदिर पर माथा टेकने आ चुकी हैं, जिसमें पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, पूर्व मुख्य मंत्री उमा भारती, बाबूलाल गौर, राजस्थान की मुख्यमंत्री पूर्व वसुधंरा राजे सिंधिया के नाम प्रमुख हैं। पूर्वमंत्री अनूप मिश्रा एवं भाजपा नेता वेदप्रकाश शर्मा तो तारामाई के ऐसे अनन्य भक्त हैं कि नवरात्रि में पूरे समय तारामाई की सानिध्य में रहकर जप तप और पूर्जा अर्चना में लीन रहते हैं। तारामाई में सूर्य की शक्ति विद्यमान है। ये भगवान राम की कुलदेवी है। इसलिए कहते हैं सीताराम ( सी तारा म) के बीच में तारामाई समाई हुई हैं। तारामाई की उपासना पठन-पाठन से जुड़े लोगों तथा छात्रों के लिए बहुत ही कारगार है। जिन बच्चों को पढ़ने में कम मन लगता है, वे तारामाई की उपासना कर शिक्षा के क्षेत्र में आगे बढ़ सकते हैं, इसलिए दर्शन करने वालों में यहां विद्यार्थियों की संख्या दिनोंदिन बढ़ती ही जा रही है।
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