राज एक्सप्रेस। वर्ष में कुल चार नवरात्रियां होती हैं- चैत्र, आषाढ़, अश्विन व माघ माह के शुक्ल पक्ष में प्रतिपदा से नवमी पर्यंत नौ दिन नवरात्र के नाम से प्रसिद्ध है इसमें चैत्र (वासन्तिक) व आश्विन (शारदीय) के नवरात्र उजागर व प्रचलित है। आषाढ़ माह व माघ माह की नवरात्र गुप्त नवरात्र के नाम से प्रसिद्ध है, दोनों नवरात्रियों में यंत्र, तंत्र व मंत्र सिद्धियों के लिए प्रसिद्ध है, वैसे चारों नवरात्रियों में माँ भगवती की साधना व उपसना अपनी-अपनी प्रचलित पद्धतियों से की जाती है।
नवरात्र शक्ति पूजा के लिए जानी जाती है, इन्ही में संसार की मूल प्रकृति महामाया की आराधना, उपासना ही की जाती है। संसार में शक्ति की उपासना, आराधना नवरात्रियों में ही कि जाती है क्योंकि ईश्वर की सबसे बड़ी शक्ति काल है जिसे प्रकृति व महामाया भी कहा जाता है। नवरात्र महामाया की साधना का श्रेष्ठ काल माना जाता है।
आचार्य पण्डित रामचन्द्र शर्मा वैदिक, अध्यक्ष मध्यप्रदेश ज्योतिष एवम विद्वत परिषद ने जानकारी देते हुए बताया कि 22 जून सोमवार से आषाढ़ माह की गुप्त नवरात्र आरम्भ हो रही है। इस वर्ष गुप्त नवरात्र नौ दिनों की बजाय आठ दिनों की है। षष्ठी तिथि का क्षय होने से 26 जून शुक्रवार को पंचमी व षष्ठी दोनों एक ही दिन मनेगी। 26 जून शुक्रवार को पंचमी प्रात: 7 बजकर 02 मिनिट तक है बाद में षष्ठी तिथि प्रारम्भ होगी। 28 जून को महाष्टमी व 29 जून सोमवार को भड़ली नवमी के साथ गुप्त नवरात्रि का समापन होगा। भड़ली नवमी अबूझ तिथि भी मानी जाती है। इस दिन विवाह आदि मंगल कार्य बिना मुहूर्त के किये जाते हैं। यह तिथि देवशयन काल के पूर्व की महत्वपूर्ण तिथि है। देवशयनी आषाढ़ी एकादशी से चातुर्मास प्रारम्भ हो जाते हैं।
चतुर्मास, चार महीने देवशयन होने से मांगलिक कार्यों पर विराम लग जाता है, अत: भड़ली नवमी ही एक तिथि शेष रहती है जिसमे विवाह आदि शुभ कार्य किये जाते है। गुप्त नवरात्र देवी उपासना, साधना का श्रेष्ठ काल माना जाता है जिसमे यंत्र, तंत्र व मंत्र की सिद्धि की जाती है। किसी विशिष्ठ मंत्र की सिद्धि व यंत्र साधना करना हो तो गुप्त नवरात्र में करना उत्तम माना जाता है। इन नवरात्रियों का विधान भी प्रचलित नवरात्रियों जैसा ही है। दश महाविद्या साधना देवी उपासना भी की जाती है।
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