राज एक्सप्रेस। 1 जुलाई बुधवार को देव शयनी आषाढ़ी एकादशी से श्री हरि (विष्णु ) योग निद्रा में जाएंगे। चातुर्मास प्रारम्भ होगा। इस वर्ष दो आश्विन (अधिक मास) होने से श्रीहरि चार नही पांच माह सोएंगे ,चातुर्मास भी चार नहीं पांच माह का होगा। सभी शुभ कार्य वर्जित होंगे। देवशयनी एकादशी से देव प्रबोधिनी एकादशी तक देव शयन काल, चातुर्मास होता है, जो 1 जुलाई बुधवार से 25 नवम्बर बुधवार तक अर्थात 148 दिनों तक रहेगा।
इस वर्ष 17 सितंबर से 16 अक्टूबर तक आश्विन अधिक मास भी रहेगा। अर्थात दो आश्विन । इसके चलते श्राद्ध पक्ष के बाद के सभी त्यौहार जैसे नवरात्र, दशहरा, दीपावली आदि 20 से 25 दिन बाद से प्रारम्भ होंगे। श्राद्ध व नवरात्र में लगभग एक माह का अंतर होगा। दशहरा 25 अक्टूबर तो दीपोत्सव 14 नवंबर को। देव प्रबोधिनी एकादशी 25 नवंबर को है। 19 वर्ष बाद पुन: आश्विन पुन: अधिमास के रूप में आया है, आगे फिर 19 वर्ष बाद2039 में आश्विन अधिकमास के रूप में आएगा।
आचार्य पंडित रामचन्द्र शर्मा वैदिक, अध्यक्ष, मध्यप्रदेश ज्योतिष व विद्वत परिषद, इंदौर ने उक्त जानकारी देते हुए बताया कि लीप ईयर व अधिकमास 160 वर्षों के बाद एक साथ आये है। इसके पूर्व यह संयोग सन 1860 में बना था। अधिकमास एक वैज्ञानिक प्रक्रिया के तहत है, यदि अधिक मास नहीं हो तो तीज त्योहारों का गणित गड़बड़ा जाता। अधिक मास की व्यवस्था के चलते हमारे सभी तीज त्योहार सही समय पर होते है। आचार्य पंडित रामचन्द्र शर्मा वैदिक ने बताया कि हर तीन वर्ष में अधिक मास, चांद्र व सौर वर्ष में सामंजस्य स्थापित करने हेतु हर तीसरे वर्ष पंचांगों में एक चांद्र मास की वृद्धि कर दी जाती है। इसी को अधिक, मल व पुरुषोत्तम मास भी कहा जाता है। सौर वर्ष का मान 365 दिनों से कुछ अधिक व चांद्र मास 354 दिनों का होता है। दोनों में करीब 11के अंतर को समाप्त करने के लिए 32 माह में अधिक मास की योजना की गई है, जो पूर्णत: विज्ञान सम्मत भी है।
देवशयन, चातुर्मास में क्या करें :
चातुर्मास में सत्संग, जप, तप व ध्यान साधना का विशेष महत्व है, इस समयावधि में सन्त महापुरुष एक ही स्थान पर रुक कर सत्संग आदि धार्मिक कार्य करते हैं। वर्षा ऋतु के चलते आना जाना दु:साध्य होता है। आचार्य शर्मा वैदिक ने बताया कि देव शयन, चतुर्मास में प्रजा पालक भगवान विष्णु शयन करते है तो देवाधिदेव भगवान शिव सृष्टि का भार वहन कर जागरण करते हैं। देवशयन काल मे तपस्वी भ्रमण नहीं करते व एक ही स्थान पर रहते हैं। पुराणों की मानें तो चातुर्मास में सभी तीर्थ ब्रज में आकर निवास करते हैं। इन महीनों में श्री हरि की प्रसन्नता हेतु नमो भगवते वासुदेवाय का जप करना चाहिए व चतुर्मास के नियमों का पालन भी। मंगल कार्य नहीं होंगे, सामान्यत: विवाह आदि मंगल कार्य देव शयन काल में वर्जित होंगे। इस प्रकार देव शयनी एकादशी से देव प्रबोधिनी एकादशी तक आश्विन अधिक मास के चलते श्री हरि चार नही पांच माह (147 दिन ), तक योग निद्रा में रहेंगे व देव प्रबोधिनी एकादशी को जागेंगे। देव शयनी एकादशी को हरिशयनी, पद्मा, आषाढ़ी, आदि नामों से भी जाना जाता है। इस वर्ष देव शयन काल मे दो आश्विन होने से अधिक मास का भी लाभ प्राप्त होगा।
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