सोमनाथ मंदिर का इतिहास
सोमनाथ मंदिर का इतिहासRaj Express

17 बार तबाह हुआ लेकिन हर बार फिर बनकर तैयार हुआ सोमनाथ मंदिर, जानिए इसका इतिहास

सोमनाथ मंदिर भक्तों के दिलों में विशेष स्थान रखता है। यह भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में से पहले स्थान पर आता है। चलिए आपको बताते हैं इसके बारे में कुछ खास बातें।
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राज एक्सप्रेस। सावन का महीना चल रहा है और देशभर में भगवान शिव के मंदिरों में भक्तों की गूंज सुनाई दे रही है। इस दौरान देश के सभी 12 ज्योतिर्लिंगों में भगवान के दर्शन के लिए भक्तों का तांता लगा हुआ है। इनमें से प्रथम ज्योतिर्लिंग के रूप में माने जाने वाले सोमनाथ मंदिर की अपनी अलग कथा है। लेकिन जब कभी इस मंदिर का जिक्र हमारे सामने आता है तो मन में यही ख्याल आता है कि इस मंदिर को कई बार लूटा जा चुका है, लेकिन इसका वैभव आज भी बना हुआ है। आज हम आपको सोमनाथ मंदिर के वैभव, निर्माण किसने करवाया और यहां हुई लूट के बारे में बता रहे हैं।

सोमनाथ मंदिर का वैभव :

सोमनाथ मंदिर को प्रथम 12 ज्योतिर्लिंगों में पहले स्थान पर देखा जाता है। मान्यता है कि यह भगवान शिव का पवित्र स्थान है। जिसका जिक्र स्कंदपुराण, श्रीमदभागवत, शिवपुराण आदि ग्रन्थों में भी देखने को मिल जाता है। कहते हैं कि यहां आने से भक्त को सभी पापों से मुक्ति मिलती है और उसके जीवन में सुख-समृद्धि आती है। सोमनाथ मंदिर का वैभव इतना विशाल है कि देश-विदेश से यहां हर साल श्रद्धालू भगवान के दर्शन के लिए आते हैं।

किसने करवाया सोमनाथ मंदिर का निर्माण?

पौराणिक कथाओं के अनुसार सोमनाथ मंदिर को भगवान सोम ने सोने, रवि ने चांदी, श्रीकृष्ण ने चन्दन और भीमदेव ने पत्थरों से समुद्र के किनारे पर बनवाया था।

सोमनाथ मंदिर पर हुए हमले :

सबसे पहले इस मंदिर पर महमूद गजनवी ने हमला कर इसकी संपत्ति को लूटा और मंदिर को तबाह किया था। जिसके बाद इसे राजा भीम और राजा भोज ने फिर से बनवाया था। लेकिन इस वैभवशाली मंदिर पर होने वाले हमले खत्म नहीं हुए और इतिहास के अनुसार सोमनाथ मंदिर पर करीब 17 बार हमले कर इसे नष्ट कर दिया गया था। लेकिन आश्चर्य की बात है कि हर बार इसका पुर्ननिर्माण भी किया गया। फ़िलहाल हमारे सामने जो मंदिर है उसे साल 1947 को भारत के पूर्व गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने अपने कार्यकाल में बनवाया था। जिसके बाद साल 1995 में भारत के पूर्व राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा ने सोमनाथ मंदिर को राष्ट्र के नाम समर्पित कर दिया।

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