मन को स्वस्थ रखना ही लक्ष्य होना चाहिए

स्वास्थ्य का विषय ही अपने आप में इतना वृहद है कि, अनेक दशकों से कई विशेषज्ञ, वैज्ञानिक निरंतर चिंतन तथा विभिन्न क्षेत्रों में उपचार का विकास करने के बाद भी बीमारियों पर नियंत्रण नहीं पा सके हैं।
मन को स्वस्थ रखना ही लक्ष्य होना चाहिए
मन को स्वस्थ रखना ही लक्ष्य होना चाहिएImage by RENE RAUSCHENBERGER from Pixabay
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राज एक्सप्रेस। स्वास्थ्य का विषय ही अपने आप में इतना वृहद है कि, अनेक दशकों से कई विशेषज्ञ, विद्वान, आचार्य, संत, शोधकर्ता, वैज्ञानिक इत्यादि निरंतर चिंतन तथा विभिन्न क्षेत्रों में उपचार का विकास करने के बाद भी बीमारियों पर नियंत्रण नहीं पा सके हैं। वर्तमान परिदृश्य ने हमारे स्वास्थ्य के ऊपर नियंत्रण की भूमिका को उजागर कर दिया है। आम व्यक्ति के लिए इच्छापूर्ति की दौड़ व प्राथमिकता हेल्थ से ऊपर हो गई है लोग चाह रहे हैं कि, कैसी सफलता मिल जाए। इसी प्रति में जीवन गुजार रहे हैं आज की स्थिति या मानव को प्रकृति की चेतावनी दी है कि जीवन के लिए सर्वोच्च प्राथमिकता स्वास्थ्य रक्षा की है।

ज्यादा सुविधाएं जुटाने तथा आराम तलब जीवन के नित्य नए अविष्कार मनुष्य की रोगों से लड़ने की क्षमता को निश्चित ही कम कर रहे हैं। एक तरफ आर्थिक प्रगति तथा आर्थिक क्रांति के चलते विलासिता के अनगिनत संसाधन विकसित किए जा रहे हैं। वहीं दूसरी और विलासी जीवन के उपयोग से मनुष्य की आंतरिक शक्ति का क्षरण हो रहा है। इस संदर्भ में देखा जाए तो, विलासिता के संसाधनों से रजत वित्तीय प्रगति मानव स्वास्थ्य की रक्षा के व्युत्क्रमानुपाती है। अर्थात हमारी जीवन यापन के लिए बढ़ती हुई सुविधाएं हमारे स्वास्थ्य को कमजोर कर रही हैं। इसका एक अन्य पक्ष यह भी है कि, विलासिता से प्राप्त राजस्व में बढ़ती बीमारियों से लड़ने परवह करना पड़ रहा है।

यही विचार का समय है कि, आर्थिक प्रगति बनाए रखते हुए बीमारियों पर नियंत्रण किस तरह किया जावे विलासिता के वही साधन उत्पादित हो जो जीवन को सुगम बनाने के लिए साथ-साथ शरीर को भी क्रियाशील रखें। वास्तव में अंसल अत्यंत आलसी हो गए हैं जो कि, जीवन की नैसर्गिक कार्य प्रणाली के प्रतिकूल है। अगर शरीर क्रियाशील नहीं रहेगा तो शरीर निष्क्रिय होते जाएंगे और तब रोगों से संघर्ष करने की क्षमता में कमी आना स्वाभाविक है। यहां भी आश्चर्यजनक है कि, शारीरिक गतिविधियां बढ़ाने के लिए हमें जिम जाना, सप्लीमेंट लेना तथा कई तरह के आधुनिक एक्सरसाइज करने के साधन अपनाए जा रहे हैं, जबकि यह सब निशुल्क रोजमर्रा के कार्यों से सुलभ है।

वर्तमान जीवनचर्या में श्रम का अभाव ही बीमारियों के मुख्य कारण नहीं है। अधिकांश शारीरिक रोगों की उत्पत्ति का मुख्य कारण मन है। जीवन में विलासिता को पैसे देकर आलसी होना भी मन की देन है। जो इस तथ्य को समझते हैं वह आधुनिक साधनों को अपनाने के साथ मन पर नियंत्रण रखकर उस जवान होकर शरीर को निरंतर स्वाभाविक रूप से क्रियाशील रखते हैं एक बात तो एकदम स्पष्ट है कि, स्वास्थ्य का विषय ज्ञान तथा विवेक से भी संबंधित है अपनी दिनचर्या को अपनाने का दायित्व व्यक्ति का स्वयं का है। हमारी सामाजिक तथा आर्थिक संरचना में बाजार की ताकतें तो उनके आर्थिक हितों के अनुरूप ही गतिमान रहती है, परंतु उपभोग करने वाले को भी उचित निर्णय लेना समीचीन है। अंतर्मन की भूमिका स्वास्थ्य के संधारण में अत्यंत महत्वपूर्ण है।

अनंत इच्छाओं की मृग मरीचिका ने व्यक्ति को निरंतर समाप्त नहीं होने वाली दौड़ में इस कदर व्यक्त कर दिया है कि, मन में भावनाओं के असंतुलन तथा नैसर्गिक व्यक्तियों के क्षरण का पता ही नहीं चलता, यह स्थिति लगातार शारीरिक अंगों की कार्यप्रणाली को हानि पहुंचाती रहती है। पता तब चलता है, जब शरीर जवाब देने लगता है। इस स्थिति में भी व्यक्ति अपनी व्रतियों तथा अवचेतन में पोषक धारणाओं को जिम्मेदार नहीं मानता शरीर को दांव पर लगाकर विलासिता के अनावश्यक साधन आयोजित करने को ही हम अपनी सफलता मानते हैं।

आदिकाल से तथा वर्तमान के समस्त शोध अन्वेषण सिद्धांत यह स्पष्ट रूप से मानते हैं कि, मानसिक भावनाओं का असंतुलन हार्मोन तथा रसायनों की प्रकृति तथा मात्रा के लिए जिम्मेदार होती है और यही सायन शरीर की कार्य क्षमता तथा प्रणाली का निर्धारण करते हैं। इससे स्पष्ट है कि, मानसिक स्थिति तथा मानसिक स्वास्थ्य का समग्र स्वास्थ्य का आधार है। बाहरी विषाणु के आक्रमण के सक्षम प्रतिरोध के लिए भी आंतरिक प्रणाली की दक्षता ही काम आती है। दूषित मानसिक स्वास्थ्य ना केवल अंगों को प्रभावित करता है अपितु अवचेतन को भी इस कदर प्रभावित करता है कि, जीवन के संघर्ष में व्यक्ति अपनी ऊर्जा तथा आत्मविश्वास को खोकर आत्महत्या जैसे आत्मघाती कदम उठा रहा है। वर्तमान में इस विषय पर भी चर्चाएं तथा बहस जारी है।

अत्यधिक महत्वकांक्षाओं प्रयासों का निर्धारण अपरिमितवासना जिस्मानी आकर्षक जिसको प्यार कहते हैं। मैं असफल हो जाना इत्यादि कुछ ऐसे तत्व हैं जिन्होंने युवाओं को मानसिक रूप से बीमार बना दिया है। परिवार सदा समाज के द्वारा अत्यधिक व्यक्तिगत अपेक्षाएं अथवा उपेक्षित व्यवहार भी एक मुख्य कारण है अर्थात मानसिक असंतुलन उत्पन्न करने में सब का योग सब का ही योगदान है। पारिवारिक सामाजिक शैक्षणिक व जीविका के परिवेश मुख्य कारक है जो समग्र स्वास्थ्य के सिद्धांत को निर्धारित कर सकते हैं।

स्वास्थ्य रक्षा की प्राचीन विधाएं योगसूत्र ध्यान व्यायाम तथा घरेलू कामकाज में श्रम को अपनाने तथा जीवन का अनिवार्य हिस्सा बना लेना परम आवश्यक है। अभी भी नहीं चेते तो, प्रकृति के चेतावनी को नजरअंदाज करने का अभी तो ट्रेलर ही हम सब ने देखा है, पूरी फिल्म कैसी होगी अंदाजा लगाना कठिन नहीं होगा। मन को धारण करने के लिए मेडिटेशन से बेहतर कोई विकल्प नहीं है। प्राणायाम तथा योगासन अब जीवन का हिस्सा बन जाए, इस दिशा में सब को आगे आना है। इसकी अनिवार्यता के वैधानिक प्रावधान की लाभकारी होंगे।

ध्यान एक ऐसा उपचार है जिसको यदि उचित रूप से क्रियान्वित कर सके तो, असीम मानसिक शांति, आत्मविश्वास बेशर्त प्रेम की प्राप्ति के सांसद दिव्यता की अनंत जीवन ऊर्जा का संचार भी उपलब्ध होता है। यह सब स्वास्थ्य की रक्षा की खजाने की तरह है। जिनमें कोई है नहीं है परंतु लाभ अनमोल अनंत है। तो आइए हम बढ़ चले इस निशुल्क व अमूल्य धरोहर को जीवन में उतारने के लिए जो उत्तम स्वास्थ्य के संभल के साथ-साथ वर्तमान परिस्थितियों से संघर्ष की असीम ऊर्जा प्रदान करेगा।

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