विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस
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विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस : भारत में हर सातवां व्यक्ति मानसिक बीमारी से ग्रस्त, जानिए आंकड़े

आज की हमारी लाइफस्टाइल बहुत व्यस्त हो गई है। काम के बोझ और सामाजिक दूरियों की वजह से लोग जल्दी ही मानसिक दबाव में आ जाते हैं।
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राज एक्सप्रेस। आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में हर दूसरा व्यक्ति किसी ना किसी तरह के मानसिक दबाव में होता ही है। हालांकि अक्सर लोग इसे ज्यादा महत्व नहीं देते हैं। यही कारण है कि आगे चलकर इनमें से कई लोग मेंटल स्ट्रेस, डिप्रेशन, एंजाइटी, हिस्टीरिया, डिमेंशिया और फोबिया जैसी मानसिक बीमारियों का शिकार हो जाते हैं। मानसिक स्वास्थ्य (Mental Health) के प्रति लोगों की इसी लापरवाही को कम करने और उनमें जागरूकता लाने के उद्देश्य से हर साल 10 अक्टूबर को पूरी दुनिया में ‘विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस’ (World Mental Health Day) मनाया जाता है।

क्या है इसका इतिहास?

दुनिया में पहली बार विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस साल 1992 में मनाया गया था। यूनाइटेड नेशन्स (United Nations) के उप महासचिव रिचर्ड हंटर (Richard Hunter) और वर्ल्ड फेडरेशन फॉर मेंटल हेल्थ (World Federation for Mental Health) की पहल पर यह दिवस मनाया गया था। साल 1994 में संयुक्त राष्ट्र के तत्कालीन महासचिव यूजीन ब्रॉडी ने थीम के साथ इस दिन को मनाने का सुझाव दिया था।

विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस का महत्व :

दरअसल आज की हमारी लाइफस्टाइल बहुत व्यस्त हो गई है। काम के बोझ और सामाजिक दूरियों की वजह से लोग जल्दी ही मानसिक दबाव में आ जाते हैं। इनमें से ज्यादातर लोग इसे महत्व नहीं देते और आगे चलकर मानसिक बीमारी से घिर जाते हैं। हालांकि यदि सही समय पर डॉक्टर की सलाह ली जाए तो इससे बचा जा सकता है। ऐसे में विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस के दिन लोगों को मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूक करने के लिए कई तरह के कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। इसके अलावा लोगों को यह भी समझाया जाता है कि मानसिक बीमारी से जूझ रहे लोगों के साथ किस तरह का व्यवहार करना चाहिए।

विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस कितना जरुरी?

भारतीय चिकित्सा शोध परिषद (Indian Council of Medical Research) द्वारा साल 2017 में मानसिक रोग को लेकर किए गए एक अध्ययन में चिंताजनक बात सामने आई है। इस अध्ययन के अनुसार भारत में करीब 19.7 करोड़ लोग यानि हर सातवां भारतीय किसी न किसी तरह की मानसिक बीमारी से ग्रस्त है। साल 1990 के मुकाबले भारत में मानसिक रोगियों की संख्या दोगुनी हो गई है। इसके अलावा मानसिक रोगियों के प्रति लोगों के नजरिए को लेकर किए गए सर्वे में सामने आया है कि भारत में 47 प्रतिशत लोग मानसिक बीमारी को सामाजिक कलंक मानते हैं। यानी ये लोग मानसिक रोगियों से सहानुभूति तो रखते हैं, लेकिन उनसे दूरी भी बना लेते हैं।

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