राज एक्सप्रेस। उत्तर प्रदेश का उन्नाव जिला एक बार फिर सुर्खियों में है। इस बार भी पहले की तरह यह नाम एक लड़की के बलात्कार के बाद खबरों में आया है। उन्नाव में ज़मानत पर छूटे बलात्कार के 4 आरोपियों ने महिला को ज़िन्दा जला दिया। स्थानीय अस्पताल से दिल्ली रिफर किए जाने के बाद 23 वर्षीय पीड़िता ने 40 घंटे के भीतर दम तोड़ दिया।
पीड़ित महिला की इन चार में से एक पुरूष से शादी हो चुकी थी। दोनों में प्रेम था और 19 जनवरी 2018 को उन्होंने कानूनी रूप से रजिस्टर्ड शादी की। यह शादी अंतरजातीय थी। दोनों में अनबन हुई और बलात्कार का मामला सामने आया। दोनों के विवाह का सर्टिफिकेट भी सामने आया है। जिस कारण इस मामले पर सवाल खड़े हो रहे हैं। सवाल पीड़ित की बहन की मांग पर भी खड़े हो रहे हैं जिसमें उसने सरकारी नौकरी और अपने परिवार के हर सदस्य के लिए अलग घर की मांग की है।
भारत में लगभग हर 20 मिनिट में एक बलात्कार होता है। तेलंगाना की राजधानी हैदराबाद में एक 27 वर्षीय पशु चिकित्सक का सामूहिक बलात्कार कर जला दिया गया था। वह घर लौट रही थीं और लिफ्ट देने का नाटक कर 4 आरोपियों ने उनका बलात्कार किया और बाद में जला कर मार डाला।
इस केस में एफआईआर लिखने में देरी की गई। हालांकि, बाद में चारों आरोपियों को गिरफ्तार किया गया। पुलिस के मुताबिक, उन्होंने भागने की कोशिश और इस मुठभेड़ में उनका एनकांउटर करना पड़ा। पूरे देश में इस बात को लेकर खुशी मनाई गई, पुलिस को फूल माला पहनाई गई, उनकी तारीफ में कसीदे पढ़े गए लेकिन यहां ये भी देखने वाली बात है कि एनकांउटर करने से क्या आरोपियों में डर पैदा हुआ है? क्या त्वरित न्याय का यह तरीका हमारी कानून व्यवस्था पर सवाल नहीं खड़े कर रहा है?
- इस बीच हरियाणा में एक 17 साल की लड़की का पिछले पांच महीनों में दो बार सामूहिक बलात्कार हुआ।
- वहीं उड़ीसा में एक सातवीं कक्षा की लड़की का विद्यालय की हैडमिस्ट्रेस के पति ने बलात्कार किया। मामला लड़की के 3 माह गर्भवती होने के बाद सामने आया।
- केरल में एक लड़के ने 12 साल की नाबालिग लड़की का बलात्कार किया।
- झारखण्ड में कानून की पढ़ाई कर रही एक लड़की को सामूहिक बलात्कार कर मार दिया गया।
- दिल्ली के गुलाबी बाग में एक 55 साल की महिला को बलात्कार कर मार डाला। वहीं बिहार में एक टीनेजर का सामूहिक बलात्कार हुआ, उसे मार डाला और बाद में जला दिया।
- राजस्थान के खेरली गांव में एक छह साल की लड़की का स्कूल से लौटते वक्त पड़ोस में रहने वाले व्यक्ति ने बलात्कार किया और फिर उस ही के बेल्ट से गला दबाकर उसे मार डाला।
आज से 6 साल पहले दिल्ली में एक बस में हुए बलात्कार ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया था। निर्भया कहे जाने वाले इस केस ने भारत में बलात्कार के विरूद्ध सख्त कानून बनाने को मजबूर किया। महिलाओं की सुरक्षा पर काम करने के लिए 'निर्भया फंड' बनाया गया लेकिन हाल ही में सामने आया कि, निर्भया फंड का लगभग 90 फीसदी हिस्सा वैसा ही पड़ा हुआ है। भारत की राजधानी दिल्ली में तक इस फंड का केवल पांच प्रतिशत हिस्सा इस्तेमाल किया गया।
लोकसभा में पूछे गए एक सवाल के जवाब में सरकार ने यह जानकारी दी-
महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों को 3,600 करोड़ रुपए निर्भया फण्ड के तौर पर आवंटित किए गए थे। इसमें से 2,264 करोड़ रूपयों का इस्तेमाल नहीं किया गया है। किसी भी राज्य ने 50 प्रतिशत से अधिक इस फंड के उपयोग की जानकारी नहीं दी। भारत के 36 राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों में से 18 ने पंद्रह प्रतिशत से भी कम इस फंड का इस्तेमाल किया है।
एनसीआरबी द्वारा जारी 2017 की रिपोर्ट में सामने आया कि, महिलाओं के खिलाफ अपराधों का क्राइम रेट 13.9 फीसदी है। इस वर्ष उनके खिलाफ 86,001 अपराध हुए। इनमें से 32,334 केस बलात्कार के हैं।
उत्तर प्रदेश राज्य में इस दौरान 4,669 केस बलात्कार के हुए तो वहीं 64 महिलाओं को बलात्कार या सामूहिक बलात्कार कर मार दिया गया। असम में 2048 केस सामने आए जिनमें से 27 औरतों को मार डाला, महाराष्ट्र में 1,945 में से 26 और मध्यप्रदेश में 5,599 में से 21 औरतों के साथ यही हुआ। वहीं केन्द्र शासित प्रदेशों में दिल्ली में 1,231 महिलाओं का बलात्कार हुआ जिनमें से 6 औरतों को मार डाला गया।
उत्तर प्रदेश सरकार ने उन्नाव बलात्कार पीड़िता के घरवालों के लिए 25 लाख रूपए मुआवज़े का ऐलान किया है। वहीं फास्ट ट्रेक कोर्ट में मामले की सुनवाई कराए जाने का आश्वासन दिया है। निर्भया केस के बाद से इस तरह के केसेज़ की सुनवाई फास्ट ट्रेक कोर्ट्स में की जाने लगी लेकिन,
कि पीड़ित की मृत्यु के बाद सरकार की नींद खुलती है। यहां यह बात भी ध्यान रखने योग्य है कि, भारत के न्यायालयों में 1 लाख से अधिक बलात्कार के केस विचाराधीन हैं। उस पर पुलिस और प्रशासन की लापरवाही के कारण इन मामलों में पीड़ित और उसका परिवार न्याय की आस में इधर-उधर की ठोकरें खाता फिरता है।
बलात्कार के लिए सख्त-से-सख्त कानून होना चाहिए। कानून को और अधिक सख्त करने की आवश्यकता की मांग को लेकर दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल पिछले एक सप्ताह से अमरण अनशन कर रही हैं। अनशन के सातवें दिन, 8 दिसंबर 2019 को उन्होंने तात्कालिक गृहमंत्री अमित शाह को पत्र लिखकर महिला सुरक्षा के लिए सख्त कानून बनाने और सभी वीआईपी नेताओं की सुरक्षा हटाने की मांग की।
स्वाति मालीवाल ने ट्वीट किया और लिखा कि, "बंदूकधारी सुरक्षा के घेरों में रहने वाले VIP नेताओं को जला दी गयी बेटियों की चीख सुनाई नहीं देती क्योंकि इनके परिवार सुरक्षित हैं। अमित शाह जी को पत्र लिखकर सब नेताओं की VIP सुरक्षा हटाने की मांग की है। जब इनकी बेटियां सड़क पर अकेले चलेंगी और इन्हें डर लगेगा, तभी नींद से जागेंगे ये लोग।"
कानून की सख्ती आवश्यक है। किसी भी बलात्कार की घटना के बाद कानून में बदलाव की मांग उठती है लेकिन क्या जो कानून हैं उनके बावजूद इन मामलों में कोई कमी आई है? नहीं, बल्कि बलात्कार की घटनाएं बढ़ती हुई ही नज़र आती हैं। साल 2018 में रॉयटर्स के सर्वे ने बताया कि, "यौन हिंसा से पीड़ित महिलाओं के लिए भारत सबसे खतरनाक देश है।"
सोशल मीडिया पर भी इस मुद्दे पर लड़ाई छिड़ी हुई है। युवा लेखक गौरव त्रिपाठी कहते हैं कि, "हम बलात्कार के बाद उसके खिलाफ कदम उठाने की बात करते हैं, लेकिन इसकी रोकथाम पर काम करने के लिए हम आज भी कुछ खास नहीं कर रहे हैं। ज़रूरत है कि, इसके प्रिवेंशन पर काम हो।"
गौरव बलात्कार के पीछे की मानसिकता और इसके सांस्कृतिक पक्ष की बात करते हैं। यह समझना ज़रूरी है कि, कोई भी व्यक्ति इस जघन्य अपराध तक कैसे पहुंचता है? इसके पीछे हमारे समाज की रूढ़िवादी और पितृसत्तात्मक सोच काफी हद तक ज़िम्मेदार है। बचपन से ही लोगों में औरतों के प्रति कमतर सोच विकसित की जाती है। वे कहते हैं कि, "Rape Culture के बारे में हिंदी में लिखे जाने की आवश्यकता है। अगर यह बातचीत होगी तो ही बदलाव आएगा।"
"निर्भया के बाद जो बातें हुईं, उनसे मुझे इसकी गंभीरता का पता चला। हमें बलात्कार को आम अपराधों से नहीं जोड़ना चाहिए, इसे अलग तरह से देखने की आवश्यकता है। यह हमारे लिए सांस्कृतिक परेशानी है और हम भी कहीं न कहीं दोषी हैं। हम प्रत्यक्ष तौर पर इस जुर्म का समर्थन नहीं करते लेकिन अनजाने में हम भी इसके लिए ज़िम्मेदार हैं। साथ ही हमें कंसेंट (सहमति) के अर्थ को समझना भी ज़रूरी है। केवल 'No means No' कह देने और मान लेने भर से हमारी ज़िम्मेदारी पूरी नहीं होगी।"
गौरव त्रिपाठी, युवा लेखक
यह बातें तब और अधिक प्रमाणिक लगती हैं जब एक फिल्म निर्देशक कहता है कि, "बालिग महिलाओं को बलात्कार के बारे में शिक्षित किया जाना चाहिए और उन्हें पुरूषों की यौन इच्छाओं का विरोध नहीं करना चाहिए। उन्हें अपने साथ कॉन्डम लेकर चलना चाहिए। जब पुरूषों की यौन इच्छाएं पूरी होंगी तो वो औरतों की हत्या नहीं करेंगे।"
निर्देशक डेनियल श्रवण ने एक फेसबुक पोस्ट में यह लिखा था। जिसे बाद में हटा लिया गया है। तब भी जब एक प्रमुख मीडिया संस्थान हरियाणा के किसी गांव पहुंचता है और लोगों से बलात्कार पर बात करता है तो वे औरतों को ही इसके लिए ज़िम्मेदार ठहराते हैं। हरियाणा के विद्यालय के बच्चे कहते हैं कि, हमें स्कूल में सिखाया गया है कि लड़कियां इसके लिए ज़िम्मेदार होती हैं। एक बुज़ुर्ग आदमी का कहना है कि, ताली एक हाथ से नहीं बजती।
तब भी जब एक मंत्री कहते हैं कि, 'महिला को अपने घर नहीं पुलिस को फोन करना चाहिए था'। तब भी जब जम्मू और कश्मीर के कठुआ में 8 साल की बच्ची का बलात्कार होता है और आरोपियों के बचाव में नारे लगते हैं, यात्रा निकाली जाती है और तब भी जब एक पूर्व मुख्यमंत्री कहते हैं कि, 'लड़के हैं, उनसे गल्तियां हो जाती हैं।' हमें बलात्कार के पीछे की इस मानसिकता को समझना होगा जो हर औरतों को ही इसके लिए ज़िम्मेदार ठहरा देती है। जो औरतों की हत्या को तो जघन्य मानती है लेकिन उनके बलात्कार को नहीं। रेप कल्चर का सीधा अर्थ यही है।
यहां इसका महिमामंडन किया जाता है। सहमति का कोई अर्थ नहीं रहता और पीड़ित की आवाज़ को मार दिया जाता है। जहां बचपन से ही बच्चों में भेदभाव का बीज डाल दिया जाता है। जहां सिखाया जाता है कि औरतें तो आदमी को खुश करने की वस्तु मात्र हैं। जहां शारीरिक शोषण होने पर शिकायत करने के बजाए चुप रहना सिखाया जाता है क्योंकि बदनामी तो लड़की की होगी। जहां औरतों को घर से निकल कर सर झुका कर चलने की सलाह दी जाती है। जहां बलात्कार होने पर पीड़ित के कपड़ों, उसके राततक बाहर होने, किसी तरह का इशारा करने आदि को ज़िम्मेदार ठहराया जाता है।
हमें समझना होगा कि किसी भी तरह के शारीरिक शोषण या बलात्कार के लिए पीड़ित ज़िम्मेदार नहीं है। अपराधी ही इसके लिए ज़िम्मेदार है और ज़िम्मेदार है हमारी पितृसत्तात्मक सोच। जिसे बदलने के लिए कई ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है। सरकार को कड़े कानून बनाने के अतिरिक्त समाज की इस सोच को बदलने और इस मुद्दे पर जागरूकता लाने के लिए भी सोचना होगा। साथ ही समाज के तौर पर हमें भी इसकी ज़िम्मेदारी लेनी होगी।
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