UP Election 2022 : उत्तर प्रदेश में थम गया दूसरे चरण का चुनाव प्रचार
लखनऊ। उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव के दूसरे चरण के मतदान वाली 55 सीटों पर शनिवार को शाम छह बजे चुनाव प्रचार थम गया। राज्य में सात चरण में हो रहे चुनाव के दौरान दूसरे चरण में नौ जिलों की 55 विधान सभा सीटों पर 14 फरवरी को होने वाले मतदान में 2.01 करोड़ मतदाता 586 उम्मीदवारों के भाग्य का फैसला करेंगे। इस चरण के मतदान के लिये 21 जनवरी को चुनाव की अधिसूचना जारी हुई थी। दूसरे चरण में योगी सरकार के मंत्री सुरेश खन्ना शाहजहांपुर सीट पर, धर्मपाल सिंह आंवला सीट गुलाबो देवी संभल जिले की चंदौसी सीट पर और बलदेव सिंह औलख रामपुर जिले बिलासपुर सीट से चुनाव मैदान में हैं। इसके अलावा विरोधी खेमे में सपा के कद्दावर नेता आजम खान रामपुर सदर सीट पर, पूर्व मंत्री धर्मपाल सिंह सैनी सहारनपुर की नकुड़ सीट से और महबूब अली अमरोहा सीट किस्मत आजमा रहे हैं। दूसरे चरण में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के अमरोहा, सहारनपुर और बिजनौर जिले और रूहेलखंड के रामपुर, संभल, मुरादाबाद, बरेली, बदायूं और शाहजहांपुर जिले हैं। इन जिलों की अधिकांश सीटें मुस्लिम और दलित बहुल होने के कारण यह इलाका समाजवादी पार्टी (सपा) और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) का गढ़ रहा है।
जातीय समीकरणों को संतुष्ट करते हुए सभी दलों ने हर सीट पर फूंक-फूंक कर कदम रखते हुए अपने उम्मीदवार तय किये हैं। जमीनी हकीकत को भांप कर ही विभिन्न दलों ने दूसरे चरण के चुनाव में 75 से ज्यादा मुस्लिम उम्मीदवार उतारे हैं। इनमें बसपा के सबसे ज्यादा 25, सपा रालोद गठबंधन के 18 और कांग्रेस के 23 मुस्लिम उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं। वहीं एआईएमआईएम के 15 मुस्लिम उम्मीदवार भी मुकाबले को दिलचस्प बना रहे हैं। पहले चरण में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के 11 जिलों की 58 विधानसभा सीटों पर 10 फरवरी को शांतिपूर्ण तरीके से मतदान संपन्न हो चुका है। पहले चरण में पिछले चुनाव की तुलना में तीन प्रतिशत कम अर्थात 60.17 प्रतिशत मतदान होने के बाद अब सभी की निगाहें दूसरे चरण के मतदान पर टिकी हैं।
लगभग एक महीने तक चले धुआंधार चुनाव प्रचार में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के अलावा विपक्षी दल सपा, रालोद, बसपा और कांग्रेस सहित अन्य दलों ने पूरी ताकत झोंक दी। दूसरे चरण के मतदान वाली 55 सीटों में से लगभग 25 सीटों पर मुस्लिम मतदाता और 20 से अधिक सीटों पर दलित मतदाता हार जीत का फैसला करते हैं। इस इलाके में 2017 में मोदी लहर ने दलित मुस्लिम समीकरणों के कारण अतीत में भाजपा के कमजोर होने के तिलिस्म को तोड़ते हुए 55 में से 38 सीटें जीती थी। जबकि सपा को 15 और उसके सहयोगी दल कांग्रेस को दो सीटें मिली थीं। तब सपा के 15 में से 10 और कांग्रेस के दो में से एक मुस्लिम विधायक जीते थे। जानकारों की राय में दलित वोटों में विभाजन का सीधा असर यह हुआ कि पिछले चुनाव में इस इलाके से बसपा का खाता भी नहीं खुल सका।
इस चुनाव में किसानों की नाराजगी भाजपा की मुश्किलें बढ़ा सकती है। वहीं, विरोधी खेमे में सपा इस इलाके में अपने प्रदर्शन को श्रेष्ठता के शिखर पर ले जाने के लिए प्रयासरत है। इससे पहले 2012 में जब सपा ने सरकार बनाई थी, उस समय भी सपा को इस इलाके की इन 55 सीटों में से 27 सीटें मिली थी, जबकि भाजपा मात्र आठ सीटें ही जीत सकी थी।
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