झांसी पैरामेडिकल के निदेशक अंशुल जैन ने किया मां का शव दान

उत्तर प्रदेश में झांसी स्थित पैरामेडिकल के निदेशक डॉ. अंशुल जैन ने माता सरोज जैन के निधन के बाद मेडिकल कॉलेज को शव दान करने का फैसला किया ,जिसके बाद शव आज महारानी लक्ष्मीबाई मेडिकल कॉलेज पहुंचाया गया।
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झांसी। उत्तर प्रदेश में झांसी स्थित पैरामेडिकल के निदेशक डॉ. अंशुल जैन ने माता सरोज जैन के निधन के बाद परिजनों की सहमति से मेडिकल कॉलेज को शवदान करने का फैसला किया ,जिसके बाद शव आज महारानी लक्ष्मीबाई मेडिकल कॉलेज पहुंचाया गया। मेडिकल कॉलेज के प्रधानाचार्य डॉ. एन एस सेंगर ने बताया कि डॉ. अंशुल जैन के परिवार के लिए यह एक दु:खद घड़ी है, लेकिन ऐसे समय में उनके परिवार ने एक बड़ा क्रांतिकारी फैसला लेते हुए स्व. सरोज जैन का शव मेडिकल काॅलेज को दान किया है। शव मेडिकल कॉलेज के डिपार्टमेंट ऑफ एनाटॉमी में पहुंच गया है और स्वीकार भी कर लिया गया है। अब इसके एम्बामिंग की प्रक्रिया की जा रही है, जिसमें सभी खून की नसों में फार्मेलिन भर दिया जाता है। इस प्रक्रिया के कारण शव सड़ता नहीं है और इसे छात्रों के अध्ययन के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।

डॉ. सेंगर ने कहा कि यह क्रांतिकारी और बेहद वैज्ञानिक सोच को दर्शाने वाला एक साहसिक फैसला है कि मेडिकल कॉलेज के ही एक डॉक्टर ने अपनी माता का शव यहां के पोस्ट ग्रेजुएशन के छात्रों की पढाई के लिए दान किया है। उन्होंने बताया कि शवदान या मृतक के शरीर के किसी हिस्से के दान के लिए पहले से फार्म भरा जाता है, जिसमें सबकुछ परिजनों की सहमति से होता है। इस मामले में स्व. सरोज जी के पति ने यह फैसला लिया है जिसे बाद में परिजनों ने सहमति दी है। इस साहसिक फैसले के लिए मैं पूरे परिवार को धन्यवाद देना चाहता हूं। यह पार्थिव शरीर आगे चिकित्सीय प्रशिक्षण में बहुत काम आने वाला है।

इस दौरान मौजूद रहे पूर्व केंद्रीय मंत्री और वरिष्ठ कांग्रेसी नेता प्रदीप जैन ने कहा “ देहदान बहुत बड़ा दान है और डॉ. जैन व उनके परिजनों ने बहुत साहसिक और सामाजिक सोच में बदलाव लाने वाला फैसला किया है। हमारी संस्कृति में दधिचि जैसे उदाहरण हैं जिन्होंने लोकहित में देहदान किया और आज भी डॉ. जैन जैसे लोग हैं जो लोकहित में इस तरह के फैसले लेकर एक उदाहरण प्रस्तुत कर रहे हैं। ऐसे फैसले भारतीय समाज में देह को लेकर सोच में बदलाव लाने वाले है । कोराना जैसी महामारी और अन्य घातक बीमारियों के मानवदेह पर हाेने वाले प्रभाव और इसको लेकर चिकित्सकों के ज्ञान में बढावा लाने के लिए प्रशिक्षण की दरकार होती है । ऐसे साहसिक फैसलों से मिले शवों की मदद से छात्रों को दिये जाने वाले प्रशिक्षण में बड़ी मदद मिलती है। डॉ. जैन के परिवार को बहुत-बहुत साधुवाद।”

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