प्रभु श्रीराम की आंखों में तेज देखने लायक है।
अरुण योगीराज ने 20 मिनट में पूरा किया था आंख बनाने का काम।
3 महीने बाद रिजेक्ट हुई पहली मूर्ति।
मूर्ति को तराशने के दौरान आंख में चोट का करना पड़ा था सामना।
राज एक्सप्रेस। अयोध्या के राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा समारोह ने पूरे देश को मंत्रमुग्ध कर दिया है। पूरी दुनिया ने 22 जनवरी को भगवान राम की वापसी का जो जश्न मनाया, उसे भुलाया नहीं जा सकता। वास्तव में यह दिन हम सबके लिए ऐतिहासिक दिन बन गया है। इससे भी ज्यादा लोगों को अगर किसी चीज ने आकर्षित किया, वो है रामलला की आंखें। भक्तों को रामलला की मूर्ति की आंखों में दिव्यता और मासूमियत दिखाई दे रही है। इस कल्पना को वास्तविकता का रूप देने का पूरा श्रेय जाता है मूर्तिकार अरुण योगीराज को। रामलला की आंखों के निर्माण को लेकर योगीराज ने अपने अनुभव साझा किए हैं। उनके मुताबिक भगवान राम की आंखों को आकार देना इतना आसान नहीं था। इसके लिए उन्हें कई बाधाओं को पार करना पड़ा। तो आइए जानते हैं कैसी रही योगीराज की यात्रा।
अब तक जिसने भी रामलला की मूर्ति को देखा, स्तब्ध रह गया है। भगवान की आंखों में देखते ही भक्तों की आंखों में आंसू आ जाते हैं। रामलला की आंखों में ऐसा तेज लोगों ने पहले कभी शायद ही देखा हो। योगीराज ने एक न्यूज वेबसाइट को इंटरव्यू देते हुए बताया है कि शुरू के दो महीनों में उन्हें भगवान के चेहरे को लेकर कोई आइडिया नहीं था। वह कहते हैं कि इस बार दिवाली मैंने अयोध्या में मनाई। मुझे त्योहार मनाते हुए भारतीय बच्चों की कुछ खूबसूरत तस्वीरों को देखकर भगवान का चेहरा बनाने की प्रेरणा मिली थी। जैसे ही यह विचार मन में आया, चेहरे पर काम करना शुरू कर दिया।
क्या आप साेच सकते हैं कि रामलला की इन चमत्कारिक आंखों को बनाने के लिए सिर्फ 20 मिनट काफी हो सकते हैं। लेकिन ऐसा हुआ। योगीराज ने खुलासा किया है कि भगवान की आंखें बनाने के लिए सिर्फ 20 मिनट का ही मुहूर्त था। हमें आंखों का काम पूरा करने के लिए 20 मिनट का ही समय दिया गया था। हालांकि, मैंने तय समय में यह टास्क पूरा किया।
मूर्तिकार ने बताया कि आंखों को गढ़ने का काम शुरू करने से पहले मुझे सरयू नदी में स्नान करना पड़ा और हनुमानगढ़ी और कनक भवन में पूजा के लिए जाना पड़ा। इसके अलावा, मुझे काम के लिए एक सोने की चिनाई वाली कैंची और एक चांदी का हथौड़ा दिया गया। आंख बनाते समय मैं काफी उलझन में था। लेकिन मैंने फैसला लिया और जो अच्छा लगा वही बनाया।
रामलला को अस्तित्व में लाने के लिए योगीराज ने एक नहीं बल्कि कई बाधाओं को पार किया है। योगीराज ने खुद इस बात का खुलासा किया कि उन्हें चयन प्रक्रिया के लिए इनविटेशन भी नहीं मिला था। उन्हें आखिरी दिन बुलाया गया। उन्होंने कहा कि- मुझे पता था कि चयन प्रक्रिया पिछले दो महीने से चल रही है, लेकिन मुझे इनवाइट नहीं किया गया, जिससे मैं बहुत निराश था। कई कारीगरों ने चयन प्रक्रिया के महीनों में दो बार मंदिर का दौरा कर लिया था और मैं बस कॉल आने का इंतजार कर रहा था। आखिरी दिन, मुझे फोन आया और मैं उस रात नई दिल्ली गया।
योगीराज ने बताया कि चयन प्रक्रिया के बाद मैंने एक मूर्ति बनाई जिसे पत्थर के अलावा तकनीकी समस्याओं के चलते तीन महीने बाद रिजेक्ट कर दिया गया। मैंने उस पत्थर पर लगभग 60 से 70 प्रतिशत काम पूरा कर लिया था। रिजेक्शन के बाद मैं बेहद उदास था, क्योंकि मैंने इस पत्थर पर काफी मेहनत की थी।
इस दौरान "पत्थर का एक छोटा सा हिस्सा मेरी आंख की रेटिना के अंदर घुस गया था। जिसके बाद मेरी आंख में भी चोट लग गई। मेरा इलाज हुआ और डॉक्टर ने मुझे कुछ दिन आराम करने की सलाह दी। इस तरह मुझे सात दिन तक काम को रोककर रखना पड़ा।
मैंने तीन महीने के बाद नए सिरे से काम फिर से शुरू किया। इस बार मैंने ठान लिया था कि पिछले तीन महीनों में मैंने जो बनाया है, उससे बेहतर बनाना है। इस वक्त मेरा कॉम्पीटीशन किसी और से नहीं , बल्कि खुद मुझसे था। खुशी और तसल्ली इस बात की है, कि एक निश्चित समय में मैंने यह काम सफलतापूर्वक पूरा किया। अरुण योगीराज ने खुद को दुनिया का सबसे भाग्यशाली व्यक्ति बताया है। उनका कहना है कि यह ईश्वर का आर्शीवाद है।
ताज़ा समाचार और रोचक जानकारियों के लिए आप हमारे राज एक्सप्रेस वाट्सऐप चैनल को सब्स्क्राइब कर सकते हैं। वाट्सऐप पर Raj Express के नाम से सर्च कर, सब्स्क्राइब करें।