राज्यसभा में पेश हुआ यूनिफॉर्म सिविल कोड बिल(UCC)
राज्यसभा में पेश हुआ यूनिफॉर्म सिविल कोड बिल(UCC)Social Media

राज्यसभा में पेश हुआ यूनिफॉर्म सिविल कोड बिल (UCC), विपक्षी पार्टियों का कड़ा विरोध

भारत: भाजपा सांसद किरोड़ी लाल मीणा ने राज्यसभा में पेश किया समान नागरिक संहिता बिल (UCC), कांग्रेस समेत कई विपक्षी पार्टियों ने किया बिल का कड़ा विरोध।
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भारत। भाजपा राज्यसभा सांसद किरोड़ी लाल मीणा (Dr.Kirodi Lal Meena) ने शुक्रवार को समान नागरिक संहिता बिल पेश किया, जिसके बाद विपक्षी पार्टियों ने इस बिल का जमकर विरोध हुआ। बिल की पेशकश के बाद विपक्षी पार्टियों का हंगामा देख खफा हुए राज्यसभा स्पीकर और उपराष्ट्रपति जयदीप धनकर कहा़ कि, बिल की पेशकश करना एक सांसद का हक, बिल के बारे में टिप्पणी करने के लिए या बहस के लिए मौका दिया जाएगा।

भाजपा अपने हर चुनाव के घोषणापत्र में समान नागरिक संहिता को लागू करने की बात करती रहती है और बार-बार यह मुद्दा नेताओ द्वारा संसद और विधानसभा सदनो में भी उठाया जाता है। भाजपा के सांसद किरोड़ी लाल मीणा ने शुक्रवार को हो रहे है संसद के शीतकालीन सत्र में सबसे ज्यादा विवादित समान नागरिक संहिता बिल को पेश कर दिया जिसके बाद विपक्ष के नेताओ ने सासन में हंगामा किया और भाजपा के सांसद का विरोध किया।

विरोध करने वाली पार्टियों में कांग्रेस के साथ ममता बनर्जी की टीएमसी, एमडीएमके, आरजेडी, समाजवादी पार्टी, सीपीआई, सीपीआई एम, और एनसीपी भी शामिल थी। पेशकश के बाद बिल पर मतदान भी किया गया, जिसमे बिल के पक्ष में 63 वोट पड़े और बिल के विरोध में 23 वोट पड़े। कांग्रेस का कहना की यह बिल को पेश करके भाजपा सिर्फ बिल को लागू करने के कारण से पैदा होने वाले खतरनाक माहोल का जायज़ा ले रही है वहीं उपराष्ट्रपति धनकर विपक्षी पार्टियों का हंगामा देख खफा हुए और कहा़ की हर सांसद को बिल पेश करने का हक है।

क्या है समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code)?

यूनिफॉर्म सिविल कोड का अर्थ होता है भारत में रहने वाले हर नागरिक के लिए एक समान कानून होना, चाहे वह किसी भी धर्म या जाति का क्यों न हो। समान नागरिक संहिता में शादी, तलाक और जमीन-जायदाद के बंटवारे में सभी धर्मों के लिए एक ही कानून लागू होगा। इसका अर्थ है एक निष्पक्ष कानून है, जिसका किसी धर्म से कोई ताल्लुक नहीं है। यह बिल को सबसे पहले 73 साल पहले सांसद में विचार विमर्श के करने के लिए रखा गया था। 23 नवंबर 1948 को इस बिल पर चर्चा हुई थी की इस बिल को एक्ट बनाकर संविधान में शामिल किया जाए या नहीं लेकिन अंततः इस पर कोई भी नतीजा सामने नहीं आया था।

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