सैटेलाइट चित्रों से मिले संकेत, उत्तराखंड आपदा का कारण हिमस्खलन नहीं यह था!

इस बात की पुष्टि सैटेलाइट इमेज में नजर आ रहे धूल के निशान से हुई है। तस्वीरों में देखिये -
उपग्रह से प्राप्त चित्रों में नजर आये उत्तराखंड आपदा के पहले और बाद के दृश्य।
उपग्रह से प्राप्त चित्रों में नजर आये उत्तराखंड आपदा के पहले और बाद के दृश्य।- Social Media
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हाइलाइट्स –

  • सैटेलाइट इमेजेस में दिखी दरार

  • उत्तराखंड हिमस्खलन की सैटेलाइट तस्वीरें

  • Satellite Images में देखें पहले और बाद के दृश्य

  • UK Avalanche Destruction before and after

राज एक्सप्रेस। आपदा से पहले और बाद के उपग्रह चित्रों (Satellite Images) का अध्ययन करने वाले अंतरराष्ट्रीय भूवैज्ञानिकों (Geologists) एवं ग्लेशियोलॉजिस्ट्स यानी हिमनद विज्ञानियों (Glaciologists) का कहना है कि; उत्तराखंड के चमोली में प्राकृतिक आपदा का कारण भूस्खलन है न कि हिमस्खलन!

क्या कारण है?

विज्ञानियों का मानना है कि ग्लेशियर का एक हिस्सा पहाड़ से नीचे गिरने से भूस्खलन की शुरुआत हुई जो बाद में बाढ़ का कारण बनी। रविवार को उत्तराखंड के चमोली में ग्लेशियर के फटने की घटना से जुड़ी मध्यम दृश्यता वाली सैटेलाइट तस्वीरें सोशल मीडिया पर चर्चा का विषय हैं।

उत्तराखंड में ग्लेशियर फटने की घटना के जुड़ी सैटेलाइट तस्वीरों पर अध्ययन करने वालों ने कारणों पर जो राय रखी है वह सोशल मीडिया पर यूजर्स का ध्यान आकृष्ट कर रही है।

प्लानेट लैब्स की तस्वीरें -

इस ओर उच्च ऊंचाई वाले हिमनदों और भूगर्भिक वातावरण के अध्ययन में एक्सपर्ट कैलगरी विश्वविद्यालय के डॉक्टर डी. शुगर (Dr Dan Shugar) ने सैटेलाइट इमेजेस के अध्ययन से ध्यान आकृष्ट कराया है।

उन्होंने प्लानेट लैब्स (Planet Labs) की आपदा के पहले और बाद की उपग्रह छवियों (satellite images) की स्टडी के आधार पर अपनी राय रखी है।

सैटेलाइट चित्रों की स्टडी के बाद उनकी राय है कि भूस्खलन (landslide) के कारण अलकनंदा और धौलीगंगा नदियों में प्रलयकारी बाढ़ आई। उन्होने सैटेलाइट चित्रों में मौजूद धूल की मौजूदगी पर भी ध्यान खींचा है।

पूर्व कयास -

पहले की रिपोर्ट्स में कहा गया था कि प्रलयकारी बाढ़ हिमनद झील के फूटने से पैदा हुई बाढ़ का परिणाम है। यह तब होता है जब हिमनद बर्फ से प्राकृतिक झील निर्मित होती है। हालांकि उपलब्ध उपग्रह छवियों (Satellite Images) में बाढ़ की घटना से पहले हिमनदी झील की उपस्थिति के संकेत नहीं मिले हैं।

लटकता टुकड़ा -

इस तर्क के अलावा ग्लेशियोलॉजिस्ट्स और भूवैज्ञानिकों ने दरार पैदा करने में सक्षम ग्लेशियर के एक छोटे से लटकते टुकड़े की भी पहचान की है।

अध्ययन कर रहे एक्सपर्ट्स ने संभावना जताई है कि इस टुकड़े ने दरार पैदा की जिससे भूस्खलन हुआ। इसके बाद भूस्खलन से हिमस्खलन निर्मित हुआ जो प्रलयकारी बाढ़ का कारण बना।

सैटेलाइट तस्वीरों (Satellite Images ) में रविवार को उत्तराखंड (Uttarakhand/ UK) के चमोली में ग्लेशियर फटने (glacier burst) की घटना के पहले की स्थिति पर विश्लेषकों ने अपनी राय रखी है।

आपको बता दें, हिमस्खलन (Avalanche/एवलॉन्च) में 30 लोगों के मारे जाने और 170 से अधिक लोगों के लापता होने की सूचना है।

कुछ रिपोर्ट्स में दावा किया गया है कि कोपरनिकस (Copernicus Sentinel 2) के सेंटिनल 2 उपग्रह की छवियों ने नंदादेवी ग्लेशियर में दरार के गठन या शुरुआत को दिखाया है। इन छवियों से माना जा रहा है कि इससे भूस्खलन शुरू हुआ।

क्या संभावना है?

संभावना जताई जा रही है कि, त्रिशूली में नंदादेवी ग्लेशियर का एक खड़ा हिस्सा टूट गया। इसे चट्टान की ढलान का अलगाव (rock slope detachment) भी कहा जाता है।

रिपोर्ट्स में उल्लेख है कि चट्टान के इस अलगाव ने संभावित रूप से लगभग दो लाख वर्ग मीटर बर्फ को 2 किलोमीटर तक लंबवत गिरा दिया। इसके गिरने से भूस्खलन हुआ, जिससे घाटी का फर्श प्रभावित हुआ और तुरंत कांच की तरह बिखर गया।

सैटेलाइट चित्रों के हवाले से इस बात को बल दिया गया है कि इससे उत्पन्न चट्टान और बर्फ का मलबा हिमस्खलन के रूप में नीचे की ओर सरकता नजर आया। इस बात की पुष्टि सैटेलाइट इमेज में नजर आ रहे धूल के निशान से हुई है।

प्रचंड गर्मी -

राय यह भी दी गई है कि ऐसे तीव्र प्रवाह में मलबे में शामिल चट्टानों के सरकने से प्रचंड गर्मी पैदा हो सकती है। इस गर्मी से बर्फ पिघल सकती है। फिर बर्फ के पिघलने से गंदी झीलों आदि से पानी का प्रवाह हो सकता है।

एक सिद्धांत यह भी –

न्यूज वेबसाइट द प्रिंट (theprint) पर नॉर्थम्ब्रिया विश्वविद्यालय (Northumbria University) के व्याख्याता मैट वेस्टोबी (Matt Westoby) के हवाले से जानकारी दी गई है कि; वहां अधिक आइस कोर्ड मोराइन हो सकते हैं अथवा तलछट से ढंकी हुई बर्फ होगी। साथ ही स्थिर हिमनद बर्फ नीचे की ओर जाने पर ध्यान केंद्रित किया गया है।

इस सिद्धांत के मुताबिक लगभग 3.5 किमी तक फैली बर्फ की ये बड़ी मात्रा भूस्खलन और हिमस्खलन से उत्पन्न होने वाली गर्मी के कारण और पिघल जाएगी, जिससे नदियों में पानी का भारी मात्रा में प्रवाह होगा। भूस्खलन विशेषज्ञों ने भी इस सिद्धांत की पुष्टि की है।

सेती नदी का हवाला -

शेफील्ड विश्वविद्यालय के डेव पेटली के अनुसार, यह घटना नेपाल में साल 2012 में सेती नदी (Seti river) में आई बाढ़ की ही तरह है, जो (बाढ़) चट्टानों में आई गड़बड़ी के कारण सक्रिय हुई थी।

आईआईटी-रुड़की में सहायक प्रोफेसर सौरभ विजय ने सैटेलाइट चित्रों के आधार पर पिछले सप्ताह बड़ी मात्रा में ताजे गिरे बर्फ की पहचान की, जो हिमस्खलन और पानी की मात्रा बढ़ाने का कारक है।

ग्लेशियर का आकार-प्रकार -

ग्लेशियर के स्थान छोड़ने, यानी पिघलने के कारण उसके आकार में कमी आ जाती है। ऐसा होने से यह पिघले हुए मीठे पानी में मिट्टी और रेत के साथ-साथ चट्टानों, बोल्डर और बजरी के रूप में तलछट छोड़ देता है।

इन निक्षेपों से अक्सर प्राकृतिक बांध बन जाते हैं जिन्हें मोराइन (moraine- ग्लेशियर द्वारा बहा कर लाया हुआ मलबा) कहा जाता है, जिसमें पिघली बर्फ का पानी बड़ी मात्रा में होता है।

आपदा के पहले और बाद की तस्वीरें -

प्लानेट लैब्स (Planet Labs) के सैटेलाइट विजन से उत्तराखंड के जोशीमठ (Joshimath) के पास प्राकृतिक आपदा के पहले और बाद की तस्वीरें प्राप्त हुई हैं। हासिल चित्र उस स्थान से संबंधित हैं जहां से पहाड़ों से ढहकर आया बर्फ और मलबा धौलीगंगा नदी घाटी में गिरा जो कि अलकनंदा नदी में मिलती है।

एक्सपर्ट्स ने 6 और 7 फरवरी को इस इलाके में आए बदलावों के बारे में सैटेलाइट चित्रों के आधार पर अपनी राय रखी हैं। इन दो दिनों की तस्वीरों में इलाके में आए प्राकृतिक बदलावों के संकेतों को स्पष्ट तौर पर देखा जा सकता है।

प्रकृति की ताकत -

ये प्राकृतिक बांध या हिमनद झीलें अति प्रवाहित (over flow) या छिद्रित हो सकती हैं/टूट सकती हैं, जिसके कारण बाढ़ का पानी नीचे की ओर बह सकता है।

पानी के अत्यधिक दबाव के कारण हिमस्खलन से मोराइन में टूटन पैदा होती है। इससे भूकंप अथवा नैचुरल मोराइन के पतन का खतरा पैदा होता है। इसके अलावा वनों की कटाई और प्रदूषण से पड़ने वाले स्थानीय जलवायु पर प्रभाव भी आपदाओं के कारण हो सकते हैं।

यह अभी तक स्पष्ट नहीं है कि उत्तराखंड में आई आपदा का मूल कारण क्या है। हालांकि उपग्रह के नए चित्रों, सर्वेक्षण डेटा और आगामी जांच से अगले कुछ दिनों में अधिक जानकारी मिलने की उम्मीद भी जताई जा रही है।

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डिस्क्लेमर – आर्टिकल प्रचलित रिपोर्ट्स पर आधारित है। इसमें शीर्षक-उप शीर्षक और संबंधित अतिरिक्त प्रचलित जानकारी जोड़ी गई हैं। इस आर्टिकल में प्रकाशित तथ्यों की जिम्मेदारी राज एक्सप्रेस की नहीं होगी।

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