ग्लोबल हंगर इंडेक्स पर बवाल, सरकार ने किया खारिज
ग्लोबल हंगर इंडेक्स पर बवाल, सरकार ने किया खारिजSyed Dabeer Hussain - RE

ग्लोबल हंगर इंडेक्स पर बवाल, सरकार ने किया खारिज, जानिए कैसे तैयार होती है रिपोर्ट?

भारत सरकार का कहना है कि ग्लोबल हंगर इंडेक्स गलतियों का पुलिंदा है। यह भारत सरकार को बदनाम करने की साजिश का हिस्सा है।
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राज एक्सप्रेस। बीते दिनों कंसर्न वर्ल्डवाइड और वेल्ट हंगर हिल्फ द्वारा 121 देशों का ग्लोबल हंगर इंडेक्स-2022 जारी किया गया। रिपोर्ट में 121 देशों की रैंकिंग में भारत को 107वें पायदान पर दिखाया गया है, जबकि पड़ोसी देश पाकिस्तान को 99वें, बांग्लादेश को 84वें, नेपाल को 81वें और श्रीलंका को 64वें नंबर पर दिखाया गया है। इस रिपोर्ट के सामने आने के बाद भारत में बवाल मच गया है। तमाम विपक्षी दल सरकार पर हमलवार है, वहीं दूसरी तरफ भारत सरकार ने इस रिपोर्ट पर सवाल खड़ा करते हुए इसे खारिज कर दिया है। ऐसे में आज हम जानेंगे कि ग्लोबल हंगर इंडेक्स (जीएचआई) क्या है? इसे कैसे तैयार किया जाता है? और भारत सरकार ने इसे क्यों ख़ारिज कर दिया?

ग्लोबल हंगर इंडेक्स क्या है?

दरअसल ग्लोबल हंगर इंडेक्स (जीएचआई) के जरिए यह बताया जाता है किसी देश के लोगों को खाने की चीजें कैसी और कितनी मिलती हैं। जीएचआई का कुल स्कोर 100 होता है, जिसके जरिए किसी देश की भूख की स्थिति को दर्शाया जाता है। रिपोर्ट में 0 अंक को सबसे अच्छी और 100 अंक को बेहद ख़राब स्थिति माना जाता है। रिपोर्ट में भारत को कुल 29.1 अंक मिले हैं, जो गंभीर स्थिति में आता है।

कैसे बनती है रिपोर्ट?

दरअसल जीएचआई को कुपोषण, शिशुओं में भयंकर कुपोषण, बच्चों के विकास में रुकावट और बाल मृत्यु दर को आधार मानकर तैयार किया जाता है। इसमें कुपोषण का मतलब होता है खाने की पर्याप्त उपलब्धता ना होना। भयंकर कुपोषण का मतलब 5 साल से कम उम्र के ऐसे बच्चे जिनका वजन कम है। बच्चों के विकास में रुकावट से मतलब उस स्थिति से है जब बच्चा अपनी उम्र के हिसाब से सही लम्बाई हासिल ना कर सके और बाल मृत्यु दर का मतलब पोषण की कमी की वजह से पांच साल से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु की दर है। किसी भी देश में इन चारों स्थिति को देखकर ही जीएचआई को तैयार किया जाता है।

भारत ने क्यों किया खारिज?

भारत सरकार ने इस रिपोर्ट को गलतियों का पुलिंदा करार देते हुए ख़ारिज कर दिया है। सरकार का कहना है कि इसके चार मापदंड में से तीन मापदंड बच्चों से जुड़े हैं, जो सम्पूर्ण आबादी को नहीं दर्शाते हैं। इसके अलावा कुपोषित आबादी को जानने के लिए महज 3000 लोगों के बीच सर्वे किया गया, जो भारत जैसे बड़े देश की वास्तविक स्थिति जानने के लिए काफी नहीं है। साथ ही विशेषज्ञों का कहना है कि श्रीलंका और पाकिस्तान जैसे देशों में जहां भारत से कहीं अधिक महंगाई है। जहां दूध और टमाटर का दाम भी 200-300 रूपए किलो है और वहां की मुद्रा भी भारतीय रूपए के मुकाबले नीचे हैं। इन देशों की अर्थव्यवस्था भी इस समय मुश्किल दौर से गुजर रही है। ऐसे में उन देशों का इस रिपोर्ट में भारत से बेहतर होना शंका पैदा करता है।

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